गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

बुढ़वा मंगल

बुढ़वा मंगल (Budhwa Mangal)

बुढ़वा मंगल उत्सव हनुमान जी के वृद्ध / बूढ़े रूप को समर्पित है। यह उत्सव हर साल भाद्रपद / भादौं माह के अंतिम मंगलवार को आयोजित किया जाता है, जिसे प्रचलित भाषा में बूढ़े मंगल के नाम से भी जाना जाता है।
बुढ़वा मंगल दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत मे ज्यादा प्रमुखता से मनाया जाता है। परंतु, उत्तर भारत में ही कहीं-कहीं यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के मंगलवार को बूढ़ा मंगल के नाम से मनाया जाता है, जिनमे कानपुर, लखनऊ एवं वाराणसी प्रमुख हैं।

बुढ़वा मंगल का इतिहास
रामायण और महाभारत काल से इसका महत्‍व बहुत ही खास माना जाता है।

प्रथम मत:
महाभारत काल में हजारों हाथियों के बल को धारण किए भीम को अपने शक्तिशाली होने पर बड़ा अभिमान और घमंड हो गया था। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए रूद्र अवतार भगवान हनुमान ने एक बूढ़े बंदर का भेष धारण कर उनका घमंड चूर-चूर किया, यही दिन आगे चलकर बुढ़वा मंगल कहलाने लगा।

द्वितीय मत:
एक अन्य मत के अनुसार रामायण काल में भाद्रपद महीने के आखिरी मंगलवार को माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान जी की पूंछ में रावण ने आग लगा दी थी। हनुमान जी ने अपने विराट स्वरूप को धारण कर लंका को जलाकर रावण का घमंड चूर किया।

बुढ़वा मंगल का महत्‍व
बुढ़वा मंगल को लेकर ऐसी मान्‍यता है कि इस दिन हनुमान चालीसा, बजरंगबाण का पाठ करने और सुंदरकांड को पढ़ने से भक्‍तों को हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है और बजरंगबली प्रसन्‍न होते हैं। अगर आपकी कोई मनोकामना अधूरी है या फिर कोई महत्‍वपूर्ण कार्य पूरा होने में बार-बार बाधाएं आ रही हैं तो बुढ़वा मंगल के दिन हनुमानजी के मंदिर में चोला चढ़ाएं। ऐसा करने से आपकी सारी अधूरी इच्‍छाएं पूर्ण होंगी और आपको पुण्‍य की प्राप्ति होगी।

ऐसे करें हनुमानजी की पूजा
इस दिन सुबह स्‍नान करके हनुमानजी की तस्‍वीर के सामने लाल फूल चढ़ाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके साथ ही हनुमानजी की पूजा करें और भगवान को लाल चंदन का टीका लगाएं। इसके बाद शाम को बजरंग बली को चूरमा या फिर बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और प्रसाद को बांट दें।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें