बुढ़वा मंगल (Budhwa Mangal)(बड़ा मंगल / बड़वा मंगल)
बुढ़वा मंगल उत्सव हनुमान जी के वृद्ध (बूढ़े) रूप को समर्पित है। यह उत्सव हर साल भाद्रपद / भादौं माह के अंतिम मंगलवार को आयोजित किया जाता है, जिसे प्रचलित भाषा में बूढ़े मंगल के नाम से भी जाना जाता है।
बुढ़वा मंगल दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत मे ज्यादा प्रमुखता से मनाया जाता है। परंतु उत्तर भारत में ही कहीं-कहीं यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के पहले मंगलवार को बूढ़ा मंगल के नाम से मनाया जाता है, जिनमे कानपुर, लखनऊ एवं वाराणसी प्रमुख हैं।
बुढ़वा मंगल का इतिहास
रामायण और महाभारत काल से इसका महत्व बहुत ही खास माना जाता है।
प्रथम मत:
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में हजारों हाथियों के बल को धारण किए कुंती पुत्र भीम को अपने शक्तिशाली होने पर बड़ा अभिमान और घमंड हो गया था। एक बार भीम श्वेत कमल की तलाश में गंधमादन पर्वत पर चले गए वहां उन्होंने एक बुढ़े वानर को रास्ते में लेटे हुए देखा और उससे अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए रूद्र अवतार हनुमानजी ने कहा कि यदि तुम ताकतवर हो तो तुम्हीं हटा लो। भीम ने अपनी पूरी शक्ति से पूंछ हटाने का प्रयास किया लेकिन नहीं हटा पाया। तब भीम का घमंड चूर चूर हो गया। जब यह घटना घटी थी तब मंगलवार था। इसीलिए इस मंगलवार को बुढ़वा मंगल कहा जाता है।
द्वितीय मत:
एक अन्य मत के अनुसार रामायण काल में माता सीता को खोजते हुए जब हनुमानजी लंका पहुंचे तो रावण ने बंदर कहकर उनका अपमान किया। तब बजरंगबली ने विराट रूप धारण किया और अपनी पूंछ में बड़वानल (अग्रि) पैदा करके लंका को जलाकर लंकापति रावण का घमंड चकनाचूर किया था। उस दिन हनुमानजी ने वृद्ध वानर का रूप धारण किया था। जिस दिन हनुमानजी ने यह रूप धारण किया था, उस दिन भाद्रपद मास का आखिरी मंगलवार था। जिससे उस मंगलवार को बुढ़वा मंगल नाम मिला।
सीताजी की खोज करते हुए भगवान श्री रामजी से हनुमानजी का मिलन विप्र (पुरोहित) के रूप में इसी दिन हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ मास के मंगलवार को बुढ़वा मंगल या बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है।
* दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार सीताजी की खोज करते हुए भगवान श्री रामजी से हनुमानजी का मिलन विप्र (पुरोहित) के रूप में पहली बार जेष्ठ महीने के एक मंगलवार को मिले थे और एक को हनुमानजी का जन्म। यही वजह है कि इस महीने के चारों मंगलवारों को बड़े मंगलवार कहा जाता है। ज्योतिष व वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार ऐसा इसलिए भी कहते हैं क्योंकि ये मंगलवार जेष्ठ महीने में पड़ता है और जेष्ठ यानी ‘बड़ा’। इस महीने के दिन बड़े-बड़े होते हैं। इसलिए इसे बुढ़वा या बड़वा मंगल के रूप में जाना जाता है।
क्यों कहते हैं बड़ा मंगलवार :-
ज्येष्ठ मास के इस मंगलवार को हनुमान जी को अमरत्व का वरदान मिला था, इसी कारण ज्येष्ठ के मंगल को बड़ा मंगल और बूढ़वा मंगल कहते हैं। उत्तरप्रदेश में ज्येष्ठ मास में आने वाले हर मंगलवार को बहुत ही शुभ माना जाता है उनमें भी पहले आने वाले मंगलवार को विशेष मान कर पूजा-अर्चना की जाती है। वैसे तो पूरे ज्येष्ठ मास में हनुमान मंदिर सजे रहते हैं और हर मंगलवार को जगह-जगह पर भंडारे लगते हैं पर बड़ा मंगलवार की बात खास है। यह दिन केवल एक ही धर्म का परिचायक नहीं है बल्कि सर्वधर्म एकता का प्रतीक है।
इतिहास :-
कुछ लोगों के अनुसार बड़ा मंगलवार की शुरुआत करीब 400 साल पहले अवध के नवाब ने की थी। नवाब मोहम्मद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गया। उनकी बेगम रूबिया ने कई जगह उसका इलाज करवाया, लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। लोगों ने उन्हें बेटे की सलामती के लिए लखनऊ के अलीगंज स्थित पुराने हनुमान मंदिर में मन्नत मांगने को कहा। यहां मन्नत मांगने पर नवाब का बेटा स्वस्थ हो गया। इसके बाद नवाब की बेगम रूबिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। वहीं नवाब ने ज्येष्ठ की भीषण गर्मी के दिनों में प्रत्येक मंगलवार को पूरे शहर में जगह-जगह गुड़ और पानी का वितरण करवाया और तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई।
बुढ़वा मंगल का महत्व
बुढ़वा मंगल को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन हनुमान चालीसा, बजरंगबाण का पाठ करने और सुंदरकांड को पढ़ने से भक्तों को हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और बजरंगबली प्रसन्न होते हैं। अगर आपकी कोई मनोकामना अधूरी है या फिर कोई महत्वपूर्ण कार्य पूरा होने में बार-बार बाधाएं आ रही हैं तो बुढ़वा मंगल के दिन हनुमानजी के मंदिर में चोला चढ़ाएं। ऐसा करने से आपकी सारी अधूरी इच्छाएं पूर्ण होंगी और आपको पुण्य की प्राप्ति होगी।
ऐसे करें हनुमानजी की पूजा
इस दिन सुबह स्नान करके हनुमानजी की तस्वीर के सामने लाल फूल चढ़ाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके साथ ही हनुमानजी की पूजा करें और भगवान को लाल चंदन का टीका लगाएं। इसके बाद शाम को बजरंग बली को चूरमा या फिर बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और प्रसाद को बांट दें।
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