बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

रुद्राक्ष (Rudraksh)


रुद्राक्ष (Rudraksh)


रूद्राक्ष को शिव की आंख कहा जाता है। रुद्राक्ष दो शब्दों के मेल से बना है पहला रूद्र का अर्थ होता है भगवान शिव और दूसरा अक्ष इसका अर्थ होता है आंसू। माना जाता है की रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी।

धर्म, तन्त्र, योग एवं चिकित्सा की नजर में रूद्राक्ष काफी प्रासगिंक और प्रशसंनीय है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में रूद्राक्ष को महाऔषधि के रूप में वर्णित किया गया है। रूद्राक्ष की जड़ से लेकर फल तक सभी का अलग-अलग तरीके से प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर किया जा सकता है। रूद्राक्ष की भारतीय ज्योतिष में भी काफी उपयोगिता है। ग्रहों के दुष्प्रभाव को नष्ट करने में रूद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है, जो अपने आप में एक अचूक उपाय है। गम्भीर रोगों में यदि जन्मपत्री के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग किया जाये तो आश्चर्यचकित परिणाम देखने को मिलते है। रूद्राक्ष की शक्ति व सामथ्र्य उसके धारीदार मुखों पर निर्भर होती है। एक मुखी से लेकर एक्कीस मुखी तक जो रूद्राक्ष देखें गये है, उनकी अलौकिक शक्ति और क्षमता अलग-अलग रूप में प्रदर्शित होती है। इसकी क्षमता और शक्ति उत्पत्ति स्थान से भी प्रभावित होती हैं।

रुद्राक्ष का मानवीय जीवन में महत्व -

रूद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है तथा हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का उच्च स्थान है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, सकन्द्पुराण, लिंगपुराण, श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है। शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। स्कन्द पुराण और लिंग पुराण के अनुसार रूद्राक्ष आत्म शक्ति एवं कार्य क्षमता में वृद्धि करने वाला एंव कार्य व व्यवसाय में प्रगति करवाता हैं। जिस प्रकार सें भगवान शिव कल्याणकारी है, उसी प्रकार से रूद्राक्ष भी अनेक प्रकार की संमस्याओं का निष्पादन करने में सक्षम हैं।

रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग से कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।

रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। तंत्र शास्त्रों के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने पर भूत-प्रेतजनित बाधाओं (ऊपरी हवाओं, भूत पिशाच), अदृश्य आत्माओं तथा अभिचार प्रयोग जनित बाधाओं का समाधान होने लगता है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं। रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है।

रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापो का और विघ्नों का नाश होता है ऐसा महादेव का वरदान है, परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिए। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए।

आवले के फल के सामान रुद्राक्ष समस्त अरिष्टो का नाश करने वाला होता है। बेर के सामान छोटा दिखने वाला रुद्राक्ष सुख और सौभाग्य कीं वृधि करने वाला होता है। रूद्राक्ष को माला या लॉकेट के रूप में धारण किया जाता है। रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करने से अनंत गुना फल मिलता है। जिस माला में अपने आप धागा पिरोया जाने योग्य छेद हो वह उत्तम होता है, प्रयत्न करके धागा पिरोया जाये तो वह माध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष होता है।

धार्मिक क्षेत्र में रुद्राक्ष अनादिकाल से ‘रुद्राक्ष माला’ के रूप में प्रचलित है और मंत्र सिद्धि के लिए इसका प्रयोग होते देखा गया है। तांत्रिक प्रयोग और सिद्धियों में भी इसका प्रयोग होता है। हमारे शरीर रूपी यंत्र को सुसंचालित करने के लिए भी रुद्राक्ष उपयोगी है। धर्मशास्त्र में रुद्राक्ष अपने बहुउपयोग के कारण शिवतुल्य मंगलकारी माना गया है। चिकित्साशास्त्र में भी रुद्राक्ष के चमत्कारी उपयोग भरे है।

जब कभी रविवार-गुरूवार या सोमवार को पुष्य नक्षत्र पर चंद्रमा हों तो ऎसे सिद्ध योग में रूद्राक्ष का पूजन कर, रूद्राक्ष को शिव स्वरूप मानकर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। रूद्राक्ष दाने को गंगाजल में घिसकर प्रतिदिन माथे पर टीका लगाने से मान-सम्मान तथा यश और प्रतिष्ठा बढ़ती है। विद्यार्थी वर्ग इस प्रकार टीका लगाएं तो उनकी बुद्धि एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।

रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त -

मेष संक्रांति, पूर्णिमा, अक्षय त्रितय, दीपावली, चेत्र शुकल प्रतिपदा, अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल, गुरु पुष्य, रवि पुष्य, द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।

रुद्राक्ष धारण करने की विधि -

यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल धागे में पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ का जाप कर के चन्दन विल्व पत्र लाल पुष्प, धुप, दीप, दिखा कर।
''ॐ तत्पुरुशाये विदमहे महादेवाये धिमिही तन्नो रुद्र:प्रचोदयात''
इस से अभिमंत्रित कर के धारण करे और यथा शक्ति दान ब्राहमण को देवे।

रुद्राक्ष से जुडी कथाएं -

वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। एक कथा अनुसार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से रुद्राक्ष के विषय में जानना चाहा तो नारायण भगवान ने उनकी जिज्ञासा को दूर करने हेतु उन्हें एक कथा सुनाते हैं। वह बोले, हे देवर्षि नारद एक समय पूर्व त्रिपुर (असुर त्रिप्पुरा सुर) नामक पराक्रमी दैत्य ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था तथा देवों को प्राजित करके तीनो लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है। दैत्य के इस विनाशकारी कृत्य से सभी त्राही त्राही करने लगते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता उससे मुक्ति प्राप्ति हेतु भगवान शिव की शरण में जाते हैं भगवान उनकी दारूण व्यथा को सुन उस दैत्य को हराने के लिए उससे युद्ध करते हैं त्रिपुर का वध करने के लिए भगवान शिव अपने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन करते हैं इस प्रकार दिव्य सहस्त्र वर्षों तक प्रभु ने अपने नेत्र बंद रखे अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर पृथ्वी पर गिर गईं तथा उन अश्रु रूपी बूंदों से रुद्राक्ष के महान वृक्षो की उत्पति हुई।

एक अन्य मान्यता अनुसार एक समय भगवान आशुतोष शंकर जी हजारों वर्षों तक समाधि में लीन रहते हैं लंबे समय पश्चात जब भगवान भोलेनाथ अपनी तपस्या से जागते हैं, तब भगवान शिव की आखों से जल की कुछ बूँदें भूमि पर गिर पड़ती हैं। उन्हीं जल की बूँदों से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।

इस प्रकार एक अन्य कथा अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने जब एक महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने अपनी पुत्री सती व अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया इस पर शिव के मना करने के बावजूद भी देवी सती उस यज्ञ में शामिल होने की इच्छा से वहाँ जाती हैं किंतु पिता द्वारा पति के अपमान को देखकर देवी सती उसी समय वहां उस यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देती हैं। पत्नी सती की जली हुई देह को देख भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु की धारा फूट पड़ती है। इस प्रकार भगवान शिव के आँसू (अर्शुविंद) जहाँ-जहाँ भी गिरे वहीं पर रूद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो जाते हैं।

कहाँ पाए जाते हैं रुद्राक्ष -

प्राकृतिक वनस्पतियों में रूद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। रुद्राक्ष के पेड़ भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं। मुख्यतः यह पेड़ नेपाल, मलेशिया, मलाया, इंडोनेशिया, चीन, बर्मा और भारत में पाया जाता है। भारत में रुद्राक्ष के पेड़ पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में पाया जाता है। भारत के हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं। रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजू की भांति होता है। गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं।

जावा, बाला और मलयद्वीप में उत्पन्न रूद्राक्ष तथा भारत और नेपाल में उत्पन्न रूद्राक्षों से कहीं अधिक सामर्थयवान एवं ऊर्जाशील होते है। हिमालय तथा तराई-क्षेत्र में उत्पन्न रूद्राक्ष, दक्षिण भारत में उत्पन्न रूद्राक्षों की अपेक्षा अधिक प्रभावशली होते है। नेपाल में उत्पन्न गोल और कांटेदार एक-मुखी रूद्राक्ष बेहद ऊर्जावान एवं शक्तिशाली होता है। एक मुखी, दस मुखी तथा चैदहमुखी रूद्राक्ष मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। पन्द्रह से इक्कीस मुखी तक रूद्रास बाजार में उपलब्ध नहीं है। जहाँ कहीं पर भी उपलब्ध है। वे पूजनघर में स्थान पाये हुये हैं।

रुद्राक्ष के पेड़ की लम्बाई 50 से लेकर 200 फिट तक होती है। वृक्ष में रूद्राक्ष फल के रूप में उत्पन्न होता है। इसके फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से मजबूत गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है।

रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीत और कृष्ण इन चार रंगों में प्राप्त होता है। यह एकमुखी से चौदहमुखी तक प्राप्त होता है। विश्व में इसकी 123 जातियां उपलब्ध है। भारत में 25 जातियां पाई जाती है। यह गुणों में गुरु और स्निन्ध, स्वाद में मधुर और वीर्य में शीतवीर्य होता है। रुद्राक्ष वेदनाशामक, ज्वरशामक, अंगों को सुद़ृढ करने वाला, श्वासनलिकाओं के अवरोध को दूर करने वाला, विषनाशक और उदर कृमिनाशक है। यह एक उत्तम त्रिदोष शामक है। रुद्राक्ष वातनाशक तथा कफनाशक है। अनेक रोगों में यह बहुत उपयोगी है।

रुद्राक्ष के प्रकार -

आकार भेद से रूद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। रूद्राक्ष दाने पर उभरी हुई धारियों के आधार पर रूद्राक्ष के मुख निर्धारित किये जाते हैं। रूद्राक्ष के बीचों-बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक रेखा होती है जिसे मुख कहा जाता है। रूद्राक्ष में यह रेखाएं या मुख एक से 14 मुखी तक होते हैं और कभी-कभी 15 से 21 मुखी तक के रूद्राक्ष भी देखे गए हैं। आधी या टूटी हुई लाईन को मुख नहीं माना जाता है। जितनी लाईनें पूरी तरह स्पष्ट हों उतने ही मुख माने जाते हैं। पुराणों में प्रत्येक रुद्राक्ष का अलग-अलग महत्व और उप‍योगिता उल्लेख किया गया है -

एक मुखी - सूर्य, दो मुखी - चंद्र, तीन मुखी - मंगल, चार मुखी - बुध, पांच मुखी - गुरू, छः मुखी - शुक्र, सात मुखी - शनि, आठ मुखी - राहू, नौ मुखी - केतू, 10मुखी - भगवान महावीर, 11मुखी - इंद्र, 12मुखी - भगवान विष्णु, 13मुखी - इंद्र, 14मुखी - शनि, गौरी शंकर और गणेश रूद्राक्ष पाए जाते हैं।

एकमुखी रुद्राक्ष - एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात रुद्र स्वरूप है। इसे परब्रह्म माना जाता है। सत्य, चैतन्यस्वरूप परब्रह्म का प्रतीक है। साक्षात शिव स्वरूप ही है। इसे धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी उसके घर में चिरस्थायी बनी रहती है। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

द्विमुखी रुद्राक्ष - शास्त्रों में दोमुखी रुद्राक्ष को अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। शिवभक्तों को यह रुद्राक्ष धारण करना अनुकूल है। यह तामसी वृत्तियों के परिहार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इसे धारण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। चित्त में एकाग्रता तथा जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। स्त्रियों के लिए इसे सबसे उपयुक्त माना गया है।

तीनमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष ‍अग्निस्वरूप माना गया है। सत्व, रज और तम- इन तीनों यानी त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप यह भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी, कमजोरी नहीं रहती। व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही कार्यसिद्धी होती है।

चतुर्मुखी रुद्राक्ष - चतुर्मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म का प्रतिनिधि है। यह शिक्षा में सफलता देता है। जिसकी बुद्धि मंद हो, वाक् शक्ति कमजोर हो तथा स्मरण शक्ति मंद हो उसके लिए यह रुद्राक्ष कल्पतरु के समान है। इसके धारण करने से शिक्षा आदि में असाधारण सफलता मिलती है।

पंचमुखी रुद्राक्ष - पंचमुखी रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतिनिधि माना गया है। यह कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। शत्रुनाश के लिए पूर्णतया फलदायी है। इसके धारण करने पर साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का डर नहीं रहता। मानसिक शांति और प्रफुल्लता के लिए भी इसका उपयोग किया होता है।

षष्ठमुखी रुदाक्ष - यह षडानन कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने से खोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है। कार्यों में पूर्ण तथा व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है।

सप्तमुखी रुद्राक्ष - सप्तमुखी रुद्राक्ष को सप्तमातृका तथा ऋषियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह अत्यंत उपयोगी तथा लाभप्रद रुद्राक्ष है। धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है साथ ही कार्य, व्यापार आदि में बढ़ोतरी कराने वाला है।

अष्टमुखी रुद्राक्ष - अष्टमुखी रुद्राक्ष को अष्टदेवियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह ज्ञानप्राप्ति, चित्त में एकाग्रता में उपयोगी तथा मुकदमे में विजय प्रदान करने वाला है। धारक की दुर्घटनाओं तथा प्रबल शत्रुओं से रक्षा करता है। इस रुद्राक्ष को विनायक का स्वरूप भी माना जाता है। यह व्यापार में सफलता और उन्नतिकारक है।

नवममुखी रुद्राक्ष - नवमुखी रुद्राक्ष को नवशक्ति का प्रति‍‍निधि माना गया है। इसके अलावा इसे नवदुर्गा, नवनाथ, नवग्रह का भी प्रतीक भी माना जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला तथा सुख-शांति में सहायक होकर व्यापार में वृद्धि कराने वाला होता है। इसे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इसके धारक की अकालमृत्यु नहीं होती तथा आकस्मिक दुर्घटना का भी भय नहीं रहता।

दशममुखी रुद्राक्ष - दशमुखी रुद्राक्ष दस दिशाएँ, दस दिक्पाल का प्रतीक है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले को लोक सम्मान, कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। धारक की सभी लौकिक-पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं।

एकादशमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष रूद्र का प्रतीक माना जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से किसी चीज का अभाव नहीं रहता तथा सभी संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं। यह रुद्राक्ष भी स्त्रियों के लिए काफी फायदेमं रहता है। इसके बारे में यह मान्यता है कि जिस स्त्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति न हो रही हो तो इस रुद्राक्ष के धारण करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है|

द्वादशमुखी रुद्राक्ष - यह द्वादश आदित्य का स्वरूप माना जाता है। सूर्य स्वरूप होने से धारक को शक्तिशाली तथा तेजस्वी बनाता है। ब्रह्मचर्य रक्षा, चेहरे का तेज और ओज बना रहता है। सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा मिट जाती है तथा ऐश्वर्ययुक्त सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।

त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष साक्षात विश्वेश्वर भगवान का स्वरूप है यह। सभी प्रकार के अर्थ एवं सिद्धियों की पूर्ति करता है। यश-कीर्ति की प्राप्ति में सहायक, मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने परम उपयोगी तथा कामदेव का भी प्रतीक होने से शारीरिक सुंदरता बनाए रख पूर्ण पुरुष बनाता है। लक्ष्मी प्राप्ति में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है।

चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष - इस रुद्राक्ष के बारे में यह मान्यता है कि यह साक्षात त्रिपुरारी का स्वरूप है। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य लाभ, रोगमुक्ति और शारीरिक तथा मानसिक-व्यापारिक उन्नति में सहायक होता है। इसमें हनुमानजी की शक्ति निहित है। धारण करने पर आध्यात्मिक तथा भौतिक सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

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स्वरुप - एक मुखी रुद्राक्ष शिव का स्वरुप है।
लाभ - एक मुखी रुद्राक्ष ब्रहम हत्या आदि पापो को दूर करने वाला है।
मंत्र - एक मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप - दो मुखी रुद्राक्ष देवता स्वरुप है, पापो को दूर करने वाला और अर्धनारीइश्वर स्वरुप है।
लाभ - दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अर्धनारीइश्वर प्रस्सन होते है।
मंत्र - दो मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ नमः'' का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप- तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि स्वरुप है।
लाभ - तीन मुखी रुद्राक्ष हत्या आदि पापो को दूर करने में समर्थ है, शौर्य और ऐश्वर्या को बढाने वाला है।
मंत्र - तीन मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ क्लीं नमः'' का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप - चतुर्मुखी रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्म जी का स्वरुप है।
लाभ - चतुर्मुखी रुद्राक्ष के स्पर्श और दर्शन मात्र से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, की प्राप्ति होती है।
मंत्र - चतुर्मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मन्त्र का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप - पञ्च मुखी रुद्राक्ष पञ्च देवो (विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और देवी) का स्वरुप है।
लाभ - ''पञ्च वक्त्रं तु रुद्राक्ष पञ्च ब्रहम स्वरूप्कम'' इस के धारण मात्र से नर हत्या का पाप मुक्त हो जाता है, इस को धारण करने से काल अग्नि स्वरुप अगम्य पाप दूर होते है।
मंत्र - पञ्च मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप - छह मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिके स्वरुप है।
लाभ - छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से श्री और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मंत्र - छह मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।
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स्वरुप - सप्त मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कामदेव स्वरुप है।
लाभ - सप्त मुखी रुद्राक्ष अत्यंत भाग्य शाली और स्वर्ण चोरो आदि पापो को दूर करता है।
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स्वरुप - अष्टमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष साक्षात् साक्षी विनायक देव है।
लाभ - इस के धारण करने से पञ्च पातको का नाश होता है।
मंत्र - इस को ''ॐ हम नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करने से परम पद की प्राप्ति होती है।
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स्वरुप - नवममुखी रुद्राक्ष - इसे भेरव और कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है। नौ रूप धारण करने वाली भगवती दुर्गा इस की अधीश्तात्री मानी गई है।
लाभ - जो मनुष्य भगवती परायण हो कर अपनी बाई हाथ अथवा भुजा पर इस को धारण करता है, उस पर नव शक्तिया प्रसन्न होती है।
मंत्र - वह शिव के सामान बलि हो जाता है इसे ''ॐ ह्रीं हुं नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहये।
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स्वरुप - दश मुखी रुद्राक्ष साक्षात् भगवान जनादन है।
लाभ - इस के धारण करने से ग्रह, पिचाश, बेताल, ब्रम्ह राक्षश, और नाग आदि का भय दूर होता है।
मंत्र - इसे मंत्र ''ॐ ह्रीं नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहिए।
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स्वरुप - एकादश मुखी रुद्राक्ष एकादश रुदर स्वरुप है।
लाभ - शिखा पर धारण करने से पुण्य फल, श्रेष्ठ यज्ञो के फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र - एकादश मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं हम नमः'' का जाप कर के धारण करने से साधक सर्वत्र विजय होता है।
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स्वरुप - द्वादश मुखी रुद्राक्ष महा विष्णु का स्वरुप है।
लाभ - इसे कान में धारण करने से द्वादश आदित्य भी प्रस्सन होते है।
मंत्र - इस रुद्राक्ष को ''ॐ क्रों क्षों रों नमः'' का जाप कर के धारण करने से साधक साक्षात् विष्णु जी को मही धारण करता है।
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स्वरुप - तेरह मुखी रुद्राक्ष काम देश स्वरुप है।
लाभ - इस रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त कामनाओ की इच्छा भोगो की प्राप्ति होती है।
मंत्र - इसे ''ॐ ह्रीं हुम नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहये।
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स्वरुप - चौदह मुखी रुद्राक्ष अक्षि से उत्पन हुआ है, यह भगवान का नेत्र स्वरुप है।
लाभ - इस को धारण करने से साधक शिव तुल्य हो कर सब व्यधियो और रोगों को हर लेता है और आरोग्य प्रदान करता है।
मंत्र - इस रुद्राक्ष को ''ॐ नमः शिवाय'' का जाप कर के धारण करना चाहिए।

अन्य दुर्लभ रुद्राक्ष --

गणेश रुद्राक्ष -
एक मुखी से लेकर चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के बाद भी कुछ अन्य रुद्राक्ष होते हैं जैसे गणेश रुद्राक्ष। गणेश रुद्राक्ष की पहचान है उस पर प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। यहाँ रुद्राक्ष आपकी विघ्न-बाधाओं से रक्षा करता है।

गौरीशंकर रुद्राक्ष -
यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। यह रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से वृक्ष से ही जुड़ा हुआ उत्पन्न होता है। गौरी शंकर रूद्राक्ष धारण करने वाले व्यकित से शिव व पारवती दोनो एक साथ प्रसन्न रहते हैं। इस रूद्राक्ष का नित्य पूजन करने पर अन्न व धन और अन्त में मोक्ष भी प्राप्त करता है। ''ऊँ शिव शकित रूद्राक्ष्यै नम:'' इस मंत्र के द्वारा जाप करने पर प्रत्येक व्यकित लाभानिवत होता है।

शेषनाग रुद्राक्ष -
जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।

एक मुखी सवार रूद्राक्ष -
यह रूद्राक्ष अन्य रूद्राक्ष पर अलग से निकला रहता है। इस रूद्राक्ष को एक मुखी सवार रूद्राक्ष कहते हैं, जिस तरह से मानव के हाथ में पाच उंगलियाँ होती है उसके अलावा छठीं उगली भी निकल आती है उसी प्रकार से रूद्राक्ष को एक मुखी सवार रूद्राक्ष कहा जाता है, ये बहुत ही दुर्लभ रूद्राक्ष है।

सर्वमुखी रूद्राक्ष -
इस रूद्राक्ष में भी जो भाग निकला रहता है उसका आकार सर्प की तरह होता है। सभी प्रकार के रूद्राक्ष में इस रूद्राक्ष को रखने वाले को आशा से अधिक संतोष धन प्राप्त होता है और सभी कार्य सफल होते हैं।

किस व्यवसाय में कौन सा रूद्राक्ष -

प्रशानिक अधिकारी  -- तेरह मुखी, एक मुखी
कोषाध्यक्ष -- आठ मुखी, बारह मुखी
जज न्यायधीश -- चौदह मुखी, दो मुखी
पुलिस तथा मिलेट्री वाले -- आठ मुखी, चार मुखी
बैंक कर्मी -- ग्यारह मुखी, चार मुखी
डाक्र, वैध -- ग्यारह मुखी
नर्स, केमिस्ट, कम्पाउन्डर -- तीन मुखी
वकील -- तेरह मुखी
नेता मंत्री, विधायक सांसद -- चौदह मुखी, एक मुखी
अध्यापक, धर्म प्रचारक -- चौदह मुखी, एक मुखी
लेखक, क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टैनो -- ग्यारह मुखी, आठ मुखी
सिविल इन्जीनियर्स -- आठ मुखी, चौदह मुखी
कम्प्यूटर इंजीनियर्स -- साल मुखी, ग्यारह मुखी
रेल-बस चालक -- चौदह मुखी, गौरी शंकर
व्यवसायी दुकानदार -- चौदह मुखी, तेरह मुखी
उधोग पति, कारखाने दार -- चौदह मुखी, बारह मुखी
संगीतकार, कवि -- चौदह मुखी, नौ मुखी
डाक्टर, सर्जन -- चौदह मुखी, चार मुखी
डाक्टर, फिजीशियन -- दस मुखी, ग्यारह मुखी
होटल स्वामी -- चौदह मुखी, ग्यारह मुखी
ठेकेदार -- चौदह, तेरह व ग्यारह मुखी
नोट :-- पांचमुखी रूद्राक्ष साथ में अवश्य होना चाहिए।

उपयोगः- रूद्राक्ष का उपयोग तीन प्रकार से किया जाता है।
1- पूजन में । 2- शरीर में धारण करने में, 3- औषिध के रूप में ।
एकमुखी रूद्राक्ष को शिवरूप मानकर विधिवत पूजन करने का विधान है। दो मुखी से चैदहमुखी तक के रूद्राक्ष को शरीर में धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष को बाजू में, शिखा में, हाथों में व माला रूप में तथा औषधी आदि के रूप में रूद्राक्षा का उपयोग किया जाता है। रूद्राक्ष को भस्म बनाकर घिसकर तथा रूद्राक्ष को गंगाजल से शुद्ध करके खाया-पिया और चाटा जाता हैं। रूद्राक्ष का सर्वोत्कृष्ट और गोपनीय उपयोग तन्त्र साधना में भी किया जाता है| रुद्राक्ष तन्त्र साधना में कुण्डली जाग्रत कराने का मुख्य साधन है।

रूद्राक्ष भ्रांतियां और असली रुद्राक्ष की पहचान -

रूद्राक्ष किसी फैक्टरी में तैयार नहीं किया जाता। यह एक फल है जो पेड़ पर उगता है। इसलिए रूद्राक्ष नकली नहीं हो सकता भले ही कच्चा हो। पांच मुखी रूद्राक्ष बहुतायत में उगते हैं इस कारण यह सस्ते मिलते हैं लेकिन रूद्राक्ष की कुछ किस्में कम मिलती हैं इसी कारण इनका मूल्य काफी अधिक होता है।

शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है -

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके आलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है।

सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।

1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।
2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।
3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा।

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1) प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है। लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

2) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

3) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।

4) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

5) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

6) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

7) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।

8) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।

9) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है।

10) कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है। प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।

11) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

12) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।

यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा। वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।

रुद्राक्ष का औषधीय उपयोग

रूद्राक्ष का धार्मिक महत्व होने के साथ ही इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाईयों में भी होता है। इसमें इतने चुंबकीय गुण होते हैं कि असली रूद्राक्ष की माला पहनने पर ब्लड प्रेशर और हृदय रोगों में भी लाभ होता है।

असली और पके हुए रूद्राक्ष में विद्युत शक्ति होती है तथा शरीर के साथ रगड़ खाने पर इसमें से निकलने वाली उर्जा मनुष्य को शारीरिक व मानसिक से लाभ देता है। यहां तक की चील जैसे विभिन्न पक्षी पके हुए रूद्राक्ष को अपने घोंसले में रखते हैं।

* शिरशूलः सिर के दर्द में इसे पानी में घिसकर माथे पर चंदन की तरह लेप करने से तुरंत फायदा होता है।

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