सोमवार, 8 जुलाई 2013

एलीफेंटा की गुफाएं

एलीफेंटा की गुफाएं

एलिफेण्टा भारत में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के गेट वे आफ इण्डिया से लगभग 12 किमी दूर स्थित एक स्थल है जो अपनी कलात्मक गुफ़ाओं के कारण प्रसिद्ध है। 5वीं और 7वीं शताब्दी में निर्मित यहां सात गुफाएं हैं। हालांकि 9वीं से 13वीं शताब्दी में सिल्हारा वंश (8100 – 1260) के राजाओं द्वारा मूर्ति निर्माण के भी प्रमाण हैं। कई शिल्पाकृतियां मान्यखेत के राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवायीं हुई हैं। (वर्तमान कर्नाटक में)।

यह पाषाण-शिल्पित मंदिर समूह लगभग 6000 वर्ग फीट के क्षेत्र में फैला है, जिसमें मुख्य कक्ष, दो पार्श्व कक्ष, प्रांगण व दो गौण मंदिर हैं। इन भव्य गुफाओं में सुंदर उभाराकृतियां, शिल्पाकृतियां हैं व साथ ही हिन्दू भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर भी है। ये गुफाएँ ठोस पाषाण से काट कर बनायी गई हैं।

यहां की मुख्य गुफा में 26 स्तंभ हैं, जिसमें भगवान शिव को अनेक रूपों में उकेरा गया है। पहाड़ों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित हैं।

एलीफेंटा की गुफाओं को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहले हिस्से में पांच बड़ी हिन्दू गुफाएं और जबकि दो छोटी गुफाएं पर बौद्ध धर्म की छाप है।

यहां का ऐतिहासिक नाम घारपुरी है। यह नाम मूल नाम अग्रहारपुरी से निकला हुआ है। इन गुफाओं पर बने हाथियों की आकृति की वजह से 1534 में पुर्तगालियों द्वारा इसका नाम एलीफेंटा रखा गया। यहां पर हिन्दू देवी-देवताओं के अनेक मंदिर और मूर्तियां भी हैं। ये मंदिर पहाड़ियों को काटकर बनाए गए हैं।

भगवान शंकर के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दर्शाती नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं, जिनमें त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह मूर्ति 23 या 24 फीट लम्बी तथा 17 फीट ऊँची है। इस मूर्ति में भगवान शंकर के तीन रूपों का चित्रण किया गया है। इस मूर्ति में शंकर भगवान के मुख पर अपूर्व गम्भीरता दिखती है।

दूसरी मूर्ति शिव के पंचमुखी परमेश्वर रूप की है जिसमें शांति तथा सौम्यता का राज्य है। एक अन्य मूर्ति शंकर जी के अर्धनारीश्वर रूप की है जिसमें दर्शन तथा कला का सुन्दर समन्वय किया गया है। इस प्रतिमा में पुरुष तथा प्रकृति की दो महान शक्तियों को मिला दिया गया है। इसमें शंकर तनकर खड़े दिखाये गये हैं तथा उनका हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है। उनकी जटा से गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिधारा बहती हुई चित्रित की गई है। एक मूर्ति सदाशिव की चौमुखी में गोलाकार है। यहाँ पर शिव के भैरव रूप का भी सुन्दर चित्रण किया गया है तथा तांडव नृत्य की मुद्रा में भी शिव भगवान को दिखाया गया है। इस दृश्य में गति एवं अभिनय है। इसी कारण अनेक लोगों के विचार से एलिफेण्टा की मूर्तियाँ सबसे अच्छी तथा विशिष्ट मानी गई हैं। यहाँ पर शिव एवं पार्वती के विवाह का भी सुन्दर चित्रण किया गया है।

एलीफेंटा की इन गुफाओं को सन् 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।


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