उनाकोटी (Unakoti), त्रिपुरा
लहरदार पगडंडियां, घने जंगल, घाटियां, संकरी नदियां और स्रोतों के मनोरम दृश्य, अनोखी वनस्पतियां और वन्य जीवों के आसपास होने का अहसास, और अपनी शहरी जिंदगी की रेलमपेल से भागे हुए जंगल के अभयारण्य। ऐसा ही है उनाकोटि का प्राकृतिक भंडार, जो इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक खूबियों के रंग, गंध से पर्यटकों को अपनी ओर इशारे से बुलाता है। यह एक औसत ऊंचाई वाली पहाड़ी श्रृंखला है, जो उत्तरी त्रिपुरा के हरे-भरे शांत और शीतल वातावरण में स्थित है।
उनाकोटी कहां है
उनाकोटी भारत के पूर्वोत्तर भाग के त्रिपुरा राज्य में है। यह स्थान त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से लगभग 178 किलोमीटर दूर उनाकोटी जिले में है। उनाकोटी का जिला मुख्यालय कैलाश शहर है। यह स्थान कैलाश शहर से 8 किलोमीटर दूर है।
उनाकोटि की पहाड़ी पर हिन्दू देवी-देवताओं की चट्टानों पर उकेरी गई अनगिनत मूर्तियां और शिल्प मौजूद हैं। बड़ी-बड़ी चट्टानों पर ये विशाल नक्काशियों की तरह दिखते हैं, और ये शिल्प छोटे-बड़े आकार में और यहां-वहां चारों तरफ फैले हैं।
त्रिपुरा के इस हरे-भरे और शांत शीतल वातावरण में सैकड़ों वर्षों से जंगल के बीच रखी इन मूर्तियों को देखकर लगता है जैसे किसी शिल्पकार ने कई सालों की मेहनत के बाद देवी-देवताओं को इतने सुंदर माहौल में विश्राम के लिए छोड़ दिया हो। आप इस जंगल में कहीं पर भी चले जाइए, हर तरफ आपको मूर्तियां नजर आ जाएंगी।
उनाकोटी का अर्थ क्या है ?
कोटि का अर्थ होता है करोड़। जिस तरह से चालीस तथा तीस के पहले उन लगाने से क्रमश: उनचालीस तथा उनतीस हो जाता है। जो कि 40 और 39 से एक कम होता है। उसी प्रकार कोटी से पहले उन लगाने से उनाकोटी हो जाता है। जो की संख्या में एक करोड़ से एक कम होता है। इस प्रकार यहां पर मूर्तियों की संख्या एक करोड़ से एक कम होने के कारण इस स्थान का नाम उनाकोटी पड़ा।
बड़े-बड़े चट्टानों पर उकेरी गई इन मूर्तियों के यहां होने के पीछे की कहानी भी रोचक है। स्थानीय लोग और दंतकथाएं बताती हैं कि यहां देवी-देवताओं की एक सभा हुई थी। जिसकी निशानी के रूप में ये मूर्तियां हैं।
बनारस जाते समय भगवान शिव ने किया था यहां पर विश्राम
उनाकोटी के बनने के बारे में सबसे प्रचलित कथा और भी मज़ेदार है। शिव जी के साथ एक करोड़ देवी देवताओं का काफ़िला काशी की तरफ़ जा रहा था। यहाँ से गुजरते वक़्त रात हो आई तो भगवान शिव ने सारे अन्य देवी देवताओं को यहीं रात्रि विश्राम करने को कहा और साथ में एक सख्त हिदायत भी दी कि सुबह पौ फटने के पहले ही हम सब यह जगह छोड़ देंगे। सुबह जब भगवन तैयार हुए तो देखा कि सारे देवता गण सोए पड़े हैं। अब भगवन का मिज़ाज़ तो सर्वविदित है .. हो गए वो आगबबूला और सारे देवों को पत्थर का बना कर काशी की ओर बढ़ चले और फलस्वरूप यहाँ एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ रह गईं।
भगवान शिव और गणेश के शिल्प हैं यहां
उनाकोटी (Unakoti) में दो तरह की मूर्तियाँ हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की मूर्तियाँ। इन शिल्पों का केंद्र शिव और गणेश हैं। यहाँ चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की विशालतम छवि खड़ी चट्टान पर उकेरी हुई है, जिसे 'उनाकोटिस्वर काल भैरव' (Unakoti Kaal Bhairav) के नाम से जाना चाता है। करीब 30 फीट ऊँचे इस शिल्प के सिर को 10 फीट तक के लंबे बालों के रूप में उकेरा गया है। इसी के पास शेर पर सवार देवी दुर्गा का शिल्प चट्टान पर उकेरी हुई है, वहां दूसरी तरफ मकर पर सवार देवी गंगा का शिल्प भी है। शिल्प के निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धँसा हुआ शिल्प भी है। इसके आलावा यहाँ गणेश, हनुमान और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं।
चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी भी है
शिव के शिल्पों से कुछ ही मीटर दूर भगवान गणेश की तीन शानदार मूर्तियां हैं। चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले साराभुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेश की दो मूर्तियां स्थित हैं। इसके अलावा तीन आंखों वाला एक शिल्प भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह सूर्य या विष्णु भगवान का है।
चतुर्मुख शिवलिंग से लेकर राम और रावण की मूर्तियां भी
चतुर्मुख शिवलिंग, नंदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियों यहां हैं। एक किंवदंती है कि अभी भी वहां कोई चट्टानों को उकेर रहा है, इसीलिए इस उनाकोटि-बेल्कुम पहाड़ी को देवस्थल के रूप में जाना जाता है, आप कहीं से भी, किधर से भी गुजर जाइए आपको शिव या किसी देव की चट्टान पर उकेरी हुई मूर्ति या शिल्प मिलेगा।
किवदंती के हिसाब से इस शिल्प को कल्लू कहार ने बनाया था
इन शिल्पों को किस कलाकार ने बनाया और क्यों बनाया ये अभी तक इतिहासकारों के लिए गूढ़ प्रश्न बना हुआ है। पर इस स्थान के बारे में अनेकों किवदंतियाँ हैं। यहाँ की जनजातियों में प्रचलित कथा को माने तो इन शिल्पों की रचना कल्लू कहार (Kallu Kahaar) ने की थी जो शिव और पार्वती का परम भक्त था और उनके साथ ही कैलाश पर्वत जाना चाहता था। देवी पार्वती कल्लू की भक्ति से प्रसन्न थीं और उसे साथ ले जाने के लिए उन्होंने शिव जी से अनुरोध किया। शिव जी ने कल्लू से पीछा छुड़ाने की गरज से शर्त रखी कि तुम्हें मेरे साथ चलने के लिए एक रात में एक करोड़ प्रतिमाएँ बनानी होंगी। कहते हैं कल्लू ने इस कार्य में पूरी जान लगा दी पर एक करोड़ से एक मूर्ति कम बना पाया और शिव भगवान उसे छोड़कर चलते बने। इसीलिए इस जगह का नाम उनाकोटि (एक करोड़ से एक कम) पड़ा।
इस जगह पर जंगल में बनी मूर्तियों की संख्या की अभी तक किसी ने गिनती तो नहीं की, लेकिन जंगल में जहां-तहां पड़ी इन मूर्तियों को देखकर यहां के नाम की सार्थकता जरूर महसूस हो जाती है।
हर साल अप्रैल के महीने में लोग सीता कुंड नहाने आते हैं
पहाड़ों से गिरते हुए सुंदर सोते उनाकोटि के तल में एक कुंड को भरते हैं, जिसे 'सीता कुंड' कहते हैं। इसमें स्नान करना पवित्र माना जाता है। हर साल यहां अप्रैल के महीने में 'अशोकाष्टमी मेला' लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु आते हैं और 'सीता कुंड' में स्नान करते हैं।
इसके विकास के लिए भी चल रहा काम
इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्री ने 2009-10 में उनाकोटि डेस्टिनेशन डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के तहत यहां 5 किलोमीटर के दायरे में पर्यटक सूचना केंद्र, कैफेटेरिया, सार्वजनिक सुविधाएं, प्राकृतिक दृश्यों के लिए व्यूप्वाइंट आदि के निर्माण के लिए 1.13 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। त्रिपुरा पर्यटन विकास के योजना अधिकारियों के अनुसार, यह योजना एएसआई को सौंप दी गई है, और जल्दी ही इस पर काम शुरू होने की संभावना है।
8वीं या 9वीं सदी के शिल्प
उनाकोटि के जंगलों में चट्टानों पर कब ये शिल्प उकेरे गए या किसी राजा ने ये मूर्तियां बनवाईं या यहां पर इतनी बड़ी तादाद में मूर्तियां क्यों बनवाई गई, इसका इतिहास नहीं मिलता। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार भिन्न भिन्न मूर्तियों से भरा पूरा ये इलाका करीब 9वीं से 12वीं शताब्दी (9th-12th Century) के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। हालांकि, इसके शिल्पों के बारे में, उनके समय-काल के बारे अनेक मत हैं। यहाँ के शिल्प में शैव कला के आलावा तंत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है। बहरहाल सरकार अब इस पुरातात्विक महत्व के स्थल के उद्धार की योजना बना रही है।
उनाकोटी पहुँचने के लिए
उनाकोटी बाँगलादेश की सीमा से महज कुछ किमी दूरी पर है। उनाकोटी पहुँचने के लिए आपको कोलकाता से त्रिपुरा की राजधानी अगरत्तला (Agartala) जाना होगा। वहाँ से उत्तरी त्रिपुरा (North Tripura) का रुख करना होगा। अगरत्तला से नॉर्थ त्रिपुरा जिले के मुख्यालय कैलाश ह्वार (Kailsahwar) मात्र 180 किमी दूर है और बस या कार से यहाँ पहुँचा जा सकता है। कुमारघाट से आधे घंटे की दूरी पर यह मनोरम स्थान है। कैलाशहर से उनाकोटि की दूरी महज 8 किलोमीटर है। उत्तरी त्रिपुरा में स्थित इस जगह के लिए निजी टैक्सी की सेवा भी उपलब्ध है। उनाकोटी का अंतिम आठ किमी का रास्ता घने जंगलों के बीच से होकर जाता है।
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