शलमाला नदी में एक साथ बने है हज़ारों शिवलिंग
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड ज़िले के एक छोटे से शहर सिरसी में शलमाला (शामला) नाम की नदी बहती है। ये नदी सिरसी जिले से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। इस नदी को बेहद पवित्र माना जाता है क्योंकि इस नदी में एक साथ हजारों प्राचीन शिवलिंग बने हुए हैं। ये सभी शिवलिंग नदी के बीचों बीच उभरी हर चट्टान पर बना हुआ है। यहां की काली चट्टानों में शिवलिंगो के साथ-साथ नंदी, सांप (नाग), चंद्रमा, भगवान शिव के प्रियजनों और शिव से संबंधित चिन्हों की सुंदर आकृतियां भी बनी हुई हैं। साथ ही चट्टानों के नदी के बीच होने के कारण नदी स्वयं ही इन लिगों का जलाभिषेक करती है। इस कारण भी इसे बेहद पवित्र माना जाता है। हजारों शिवलिंग एक साथ होने की वजह से इस स्थान का नाम सहस्त्रलिंग पड़ा अर्थात् हज़ारों लिंग (भगवान शिव के हजारों शिवलिंग)।
घने जंगलों के बीच से होकर बहने वाली शलमाला नदी दूर से बिल्कुल शांत सी बहती दिखाई देती है। जब नदी के पास जाते हैं तो पानी की धारा के बीच मौजूद चट्टानों पर बने हुए ये शिवलिंग दिखाई देते हैं। यह शिवलिंग नदी के घटते जलस्तर के साथ ही दिखने लगते हैं और कई बार तो नदी के बहाव के साथ-साथ ही बहने भी लगते हैं। कुछ छोटे आकार के और कुछ बड़े आकार के शिवलिंग यहां आसानी से देखे जा सकते हैं।
राजा सदाशिवाराय ने करवाया था इनका निर्माण
ये शिवलिंग इतनी बड़ी संख्या में कहां से आए किसी को ठीक से पता नहीं, लेकिन इन्हें लेकर कई कहानियां जरूर प्रचलित हैं।
उत्तर कन्नड़ पर्यटन विभाग की मानें तो 16वीं सदी में सिरसी में सदाशिवाराय (सदाएश्वर्य (1678-1718)) नाम के एक राजा थे। वे भगवान शिव के बड़े भक्त थे और हर वक्त ही उनकी तपस्या में लीन रहना चाहते थे। शिव भक्ति में डूबे रहने की वजह से वे अपने आराध्य भगवान शिव की अद्भुत रचना का निर्माण करवाना चाहते थे। इसलिए महा शिवभक्त राजा सदाशिवाराय ने शलमाला नदी के बीच में भगवान शिव और उनके प्रियजनों की हजारों आकृतियां बनवा दीं। नदी के बीच में स्थित होने की वजह से सभी शिवलिंगों का अभिषेक और कोई नहीं बल्कि खुद शलमाला नदी के द्वारा किया जाता है।
यहां के अन्य जानकारों की मानें तो राजा सदाशिवाराय ने संतान प्राप्ति की चाहत में शलमला नदी में शिवलिंगों का निर्माण करवाया था।
कहा जाता है कि जहां शिवलिंग बनवाए गए थे, उस जगह अब नदी बहने लगी है। जिस कारण कई शिवलिंग पानी के नीचे छिप गए। लेकिन जैसे ही पानी का स्तर कम होता है यह शिवलिंग दिखाई देने लगते हैं।
माना जाता है कि राजा सदाशिवराया ने यहां पर एक हजार शिवलिंग का निर्माण कराया था जिनका नदी की धारा प्रतिदिन अभिषेक किया करती थी। समय के प्रभाव से इनमें से अधिकांश अतीत की यादों में खो गए। अब कुछ ही बचे हैं, परन्तु जो हैं वे भी दर्शकों को अंचभित कर देते हैं कि किस प्रकार पानी के तेज बहाव में स्थिर रहकर इनको बनाया गया होगा।
वहीं कुछ लोगों के मुताबिक यहां के कई शिवलिंग कम्बोडिया के मंदिरों से लाए गए हैं।
सहस्त्रो शिवलिंग का महाभारत काल की घटना से सम्बन्ध
हालाँकि पूर्ण तथ्य तो नही है लेकिन इन शिवलिंगो के निर्माण के पीछे महाभारत काल की घटना हो सकती है, जो की जुडी हुई है हनुमान, भीम और पुरुषमृगा से। पुरुषमृगा शिव के परम भक्त थे और उनके नाम के अनुरूप उनके निचे का शरीर हिरन का और ऊपर का पुरुष का था।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था, युधिष्ठर ने तब राजसूय यज्ञ आयोजित किया। आयोजन को भव्य बनाने के लिए युधिष्ठर ने यज्ञ में भगवान शिव के परम भक्त पुरुषामृगा को आमंत्रित करने का फैसला किया।
उन्हें ढूंढने और बुलाने का जिम्मा भीम को सौंपा गया, भीम भाई की आज्ञा पाके निकल पड़ा पुरुषमृगा की खोज में। जंगल में जाते ही भीम को हनुमान जी मिले जो की पहले भी भीम का घमंड चूर कर चुके थे, दोनों वायु पुत्र थे और एक तरह से भाई भी थे। हनुमान ने भीम को अपने तीन बाल दिए और कहा की ये तुम्हारे काम आएंगे, और भीम फिर बढ़ चला तलाश में।
कुछ दूर जाके ही भीम को पुरुषमृगा मिल गए जो को भगवान शिव की आराधना कर रहे थे, भीम ने उन्हें प्रणाम किया और आने का प्रयोजन बताया। पुरुषमृगा ने जाने के लिए हाँ तो कर दी पर एक शर्त भी रखी। शर्त ये थी की भीम को उनसे पहले हस्तिनापुर पहुँचाना है और अगर वो ऐसा न कर सका तो पुरुषमृगा भीम को खा जायेंगे।
भीम ने भाई की इच्छा को ध्यान में रखते हुए हाँ कर दी और हस्तिनापुर की तरफ पुरे बल से दौड़ पड़ा, काफी दौड़ने के बाद भीम ने भागते भागते ही पलट कर देखा की पुरुषमृगा पीछे आ रहे है या नहीं, तो चौंक गया की पुरुषमृगा उसे बस पकड़ने वाले ही है। तभी भीम को हनुमान के बाल याद आये और उनमे से एक को गिरा दिया, गिरा हुआ बाल हजारो शिवलिंगो में बदल गए।
ऐसे में इसकी पूरी सम्भावना है की वही शिव लिंग आज भी शलमाला नदी के बीच मौजूद है, इसका एक और सबुत है। नदी के बीच और पास पुरुषमृगा और हनुमान की भी मुर्तिया खुदी हुई है जो की इस संयोग को और दृढ करती है।
शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार को उमड़ता है भक्तों का सेलाब
वैसे तो इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए यहां पर रोज ही अनेक भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार पर यहां शिवभक्त विशेष रूप से यहां पूजा-अर्चना करने के लिए एकत्रित होते हैं और भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। यहां पर आकर भक्त एक साथ हजारों शिवलिंगों के दर्शन और अभिषेक का लाभ उठाते हैं। यहां के लोगो का मानना है की सहस्त्रलिंग के दर्शन मात्र से भक्त के सभी दुख मिट जाते है।
सावन के महीने में एवं सार्वजनिक अवकाश के दिन दूर दूर से हजारों श्रद्धालु यहां इन शिवलिंगों के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। आसपास हरियाली और शांति होने के कारण यह कर्नाटक घूमने आने वाले पर्यटकों के भी आकर्षण का केन्द्र है। इस अद्भुत नज़ारे को देखने के लिए भक्तों को नवंबर से मार्च के समय के बिच जाना चाहिए। वहीं इन दो महीनों में जाना यहां सबसे अच्छा माना जाता है। यह स्थान अद्भुत है तो विदेशी पर्यटकों की भी कमी नही रहती। यह स्थान धार्मिक ही नहीं एेतिहासिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। यहां रोज अनेक पर्यटक आते हैं जो भ्रमण के साथ शिवजी का प्राकृतिक अभिषेक देखते हैं और राजा सदाशिवराय की श्रद्धा को नमन करते हैं।
कैसे पहुंचे
अगर आप भी इस स्थान में घुमना चाहते हैं तो सिरसी से सबसे पास लगभग 104 किमी की दूरी पर हुबली ऐयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से सिरसी पहुंचा जा सकता है। यदि आप रेल मार्ग से सिरसी जाना चाहते हैं तो लगभग 54 किमी की दूरी पर तलगुप्पा नामक शहर है। वहां तक रेल के द्वारा आकर सड़क मार्ग से सिरसी पहुंचा जा सकता है।
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