राजगिरा को रामदाना या चौलाई भी कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में राजगिरा को ऐमरंथ ग्रेन कहते हैं।
इसके दानों को फुला कर कई तरह की खाने की चीजें तैयार की जाती है। इसके अलावा बेकरी में तैयार चीजें जैसे बिस्कुट, केक, पेस्ट्री वगैरह भी इससे बनाए जाते हैं। इसकी पत्तियों में औक्जलेट व नाइट्रेट की मात्रा कम होने की वजह से यह एक ताकतवर व अच्छी तरह पचने वाला हरा चारा माना जाता है।
उपवास
बात जब व्रत-उपवास की होती है, तो साबूदाने और कुट्टू के साथ-साथ रामदाना यानि राजगिरे का जिक्र भी फरियाली खाद्य सामग्री में प्रमुखता से लिया जाता है। राजगिरे का प्रयोग विभिन्न फरियाली व्यंजनों में किया जाता है और लोग इसके बने लड्डू भी चाव से खाते हैं। सिर्फ स्वाद ही नहीं यह स्वास्थ्य वर्धक गुणों से भरा हुआ है और सेहत से जुड़े बेशकीमती फायदे भी देता है राजगिरा।
अक्सर उपवास के दौरान लोग रामदाने के आटे से तैयार पूड़ी-पराठा या अन्य चीज़ें बना कर सेवन करते हैं। राजगिरा अनाज नहीं है इसलिये लोग इसे उपवास के दिनों में खाते हैं।
इसे आटे या फिर दाने के रूप में पकाया जाता है। यह रंग और वजन में हल्का होता है तथा आप इससे खीर, हलवा, कढ़ी, चिक्की, बर्फी या पूड़ी आदि बना सकते हैं।
आइये जानते हैं इसके अन्य गुणों के बारे में..
(1) हड्डियों के लिए स्वस्थ - इसमें अन्य अनाजों की तुलना में तीन गुना अधिक कैल्शियम होता है। इसे डायट में शामिल करने से आपकी हड्डियां मजबूत होती हैं और आपको ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्या का कम खतरा होता है।
(2) बाल मजबूत होते हैं - नियमित रूप से इसका सेवन करने से आपको बालों को समय से पहले झड़ने से रोकने में मदद मिलती है। इसमें लाइसिन होता है जिससे आपके बाल मोटे और मजबूत होते हैं। इसमें सिस्टीन भी होता है जिससे बाल स्वस्थ रहते हैं।
(3) पोषक तत्वों से भरपूर - यह कैल्शियम के अलावा आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन ई और विटामिन सी और फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत होता है। इसमें घुलनशील फाइवर, प्रोटीन और जिंक भी भारी मात्रा में पाए जाते हैं। सबसे बड़ी बात इसमें कम फैट होता है।
इसमें दूध या अन्य अनाज के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है।
(4) कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में सहायक - राजगिरा के बीजों में फाइटोस्टरोल (phytosterols) होते हैं जिस वजह से कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में ये मददगार होता है। ये बॉडी में शुगर लेवल को मैनेज करता है और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। यह दिल के स्वास्थ्य के लिये भी अच्छा है।
इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल और घुलनशील फाइबर होता है, जो कि ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार होता है।
(5) इन्फ्लामेशन कम करता है - चौलाई में पेप्टाइड्स होते हैं जिस वजह से ये इन्फ्लामेशन और दर्द को कम करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो शरीर से फ्री रेडिकल बाहर निकालने में सहायक होते है।
* भूख मिटाए
रिसर्च से पता चला है कि इसमें प्रोटीन होने की वजह से भूख दबाता है।
* ग्लूटन फ्री
अगर आपको ग्लूटन एलर्जी होती है तो आप इस टेस्टी आहार को अपनी डाइट में शामिल करें।
* अनाजों से बेहतर
यह पौष्टिकता के मामले में कई अनाजों से बेहतर है। गेहूं व चावल में जितनी प्रोटीन, कैल्शियम, वसा व आयरन की मात्रा पाई जाती है, उससे ज्यादा राजगिरा में होती है। राजगिरा व गेहूं के आटे को मिला कर बनी रोटी को एक पूर्ण भोजन माना जाता है। इसमें गेहूं के मुकाबले 5 गुना आयरन और 3 गुना फाइबर होता है।
* माइग्रेन में भी दिलाता है राहत
राजगिरे का आटा मैग्नीशियम से भरा होता है इसलिये यह माइग्रेन से राहत दिलाता है। यह खून की धमनियों को सिकुड़ने से रोकता है।
राजगीरा का आटा (Rajgira flour)
वर्णन
राजगीरा का आटा, राजगीरा के पेड़ के बीज से बनता है। राजगीरा परिवार के बहुत से भाग होते हैं, जिनमें से कुछ खास तौर पर बीज के लिए उगाये जाते हैं। देखा जाय तो, छोटे-छोटे बीज वानस्पतिक रुप से बीज नहीं फल है।
हालाँकि बीज को बहुत से रुप में प्रयोग किया जाता है - ताज़े, सूखे, फूले हुए, फ्लेक्स् आदि, जहाँ सूखे बीज का आटा सबसे ज़्यादा प्रयोग किया जाता है। यह कृत्रिम अनाज का आटा ग्लूटेन मुक्त आहार के लिए, साथ ही उपवास के खाने के लिए उपयुक्त है, जहाँ अनाज से बने खाना नहीं खाया जा सकता है।
राजगीरा के आटे का प्रयोग पास्ता और बेक किये हुए खाने बनाने के लिए किया जाता है। अन्य आटे के साथ, इसका प्रयोग खमीर वाले ब्रेड बनाने के लिए किया जाता है। राजगीरा के आटे के एक भाग को गेहूँ या अन्य आटे के साथ मिलाया जा सकता है। रोटी, पॅनकेक और पास्ता बनाने के लिए, 100 प्रतिशत शुद्ध राजगीरे के आटे का प्रयोग किया जा सकता है।
सूखे राजगीरा के बीज को, व्यंजन के अनुसार, दरदरा या मुलयाम पीसा जा सकता है। रोटी और ब्रेड बनाने के लिए, आपको अकसर बारीक पीसे हुए आटे का प्रयोग करना पड़ेगा। राजगीरे के आटे को दरदरा भी पीसा जा सकता है, जो अपकी पसंद और व्यंजन पर निर्भर करेगा।
चुनने का सुझाव
• राजगीरा का आटा, साफ, धूल से मुक्त और बिना किसी कीड़े या बदबु के होना चाहिए।
• हो सके तो, जैविक दाने या आटा को चुनना बेहतर होता है।
रसोई में उपयोग
• राजगीरा के आटे से अकसर चपाती, पराठे या रोटी बनाकर, सब्ज़ीयों के साथ परोसा जाता है।
• ग्लूटेन के प्रति संवेदशील राजगीरा चुनते हैं और इसे अकसर पकाकर पॉरिज बनाया जाता है और अन्य खने के साथ परोसा जा सकता है।
• राजगीरा के आटे से फ्लेटब्रेड के साथ मोटे खमीर वाले ड़ोसा और पतले बिना खमीर के पॅनकेक बाने के लिए किया जाता है।
• आप इससे चिक्की (मीठे बार) या फूले हुए राजगीरे से लड्डू भी बना सकते हैं।
• गोवा में, राजगीरा बेहद मशहुर है और इससे अकसर सातवा, पोल (ड़ोसा), भाकरी और अम्बील (खट्टा पॉरिज) बनाए जाते हैं।
• पुदिना के स्वाद वाले छाछ में राजगीरा और ओटस् एक पौष्टिक सुबाह का नाश्ता है।
संग्रह करने के तरीके
राजगीरा के आटे को हवा बंद डब्बे में रखकर ठंडी और सूखी जगह पर रखें।
स्वास्थ्य विषयक
• राजगीरा का आटा अकसर उपरी छिलके के साथ खाया जाता है, जिसमें बहुत से पौषण तत्व होते हैं।
• यह रेशा और लौह से भरपुर होता है, जिसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन होता है। यह इसे रोज़ के खाने के लिए उपयुक्त बनाता है।
• राजगीरा का आटा कॅलशियम और ऑक्सीकरण रोधी से भी भरपुर होता है।
• यह ग्लूटेन के प्रति संवेदशील के लिए उपयुक्त विकल्प है।
खेती
सूखा सहन करने की कूवत की वजह से इसके उत्पादन पर बढ़ती गरमी का असर कम पड़ता है। इसलिए राजगिरा की खेती को फायदेमंद माना जाता है।
राजगिरा की खेती खासतौर से उत्तरपश्चिमी हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन अब देश के कई भागों में इसे बोया जाता है। इसकी खेती गुजरात और राजस्थान में भी की जाती है। राजस्थान में करीब 70 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। वहां जालोर व सिरोही इसकी खेती के लिए खास हैं। गुजरात के डीसा में राजगिरा की बहुत बड़ी मंडी है। सिद्धपुर में भी राजगिरा काफी मात्रा में होता है।
राजगिरा की खेती की जानकारी
बोआई :- इसकी बोआई अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले पखवाड़े तक करना ठीक रहता है।
उन्नत किस्में :- आरएमए 4 व आरएमए 7।
खेत की तैयारी :- राजगिरा का बीज काफी छोटा होता है। इसके लिए खेत को अच्छी तरह जुताई करके तैयार करें। खेत में ढेले नहीं होने चाहिए।
खाद व उर्वरक :- अच्छी सड़ी हुई 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 1 महीने पहले कम से कम 3 साल में 1 बार जरूर डालें। अच्छी फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय डालें। बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा 2 भागों में बांट कर पहली व दूसरी सिंचाई के साथ दें।
बीज की मात्रा व बोआई :- बोआई के लिए 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी होता है। बीज बिलकुल हलका व बारीक होता है, इसलिए बीज में बारीक मिट्टी मिला कर बोआई करने से बीज की मात्रा काबू में रहेगी। कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखें और बीजों को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर गहरा बोएं।
सिंचाई :- राजगिरा को 4-5 सिंचाइयों की जरूरत होती है। बोआई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिनों बाद और बाद में 15 से 20 दिनों के अंतर पर जरूरत के हिसाब से करें।
निराईगुड़ाई :- खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 15-20 दिनों बाद पहली और 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराईगुड़ाई करें। अगर पौधे ज्यादा हों तो पहली निराई के साथ बेकार के पौधों को निकाल कर पौधों के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर दें।
कटाई :- फसल 120 से 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। पकने पर फसल पीली पड़ जाती है। समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का खतरा बना रहता है। फसल को काटते व सुखाते समय ध्यान रखें कि दानों के साथ मिट्टी न मिले।
उपज :- राजगिरा की औसत उपज 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
Sir up mein ramdana ki kheti barabanki ke alanwa kidhar ki jati hair?
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