रोहतांग दर्रा - भारत देश के हिमाचल प्रदेश में पूर्वी पंजाल रेंज पर समुद्री तल से 4111 मीटर (13,050 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है यानि एवरेस्ट के लगभग आधी उंचाई पर स्थित है। 'रोहतांग दर्रा 'हिमालय का सबसे ऊँचा और एक प्रमुख दर्रा है। यह दर्रा सड़क यातायात के मामले में हिमाचल प्रदेश का सबसे खतरनाक दर्रा है। लद्दाखी भाषा (भोटी) में रोहतांग का अर्थ 'लाशों का ढेर' होता है। यह सच है कि इस दर्रे से पैदर गुजरते हुए असंख्य लोगों ने अपने प्राण गंवाए हैं। संभवत: इसीलिए इसका नाम रोहतांग रखा गया है। रोहतांग इस जगह का नया नाम है। पुराना नाम है - 'भृगु-तुंग' ! कुछ लोग तो इसे यहाँ के मौसम की विषमता (बर्फीले तूफान) के कारण ”मौत की घाटी” तक कहते हैं।
दर्रे के अर्थ है पहाड़ों के बीच कोई सपाट क्षेत्र यानी “दर” या ठिकाना। दर्रा यानी वह संकरा रास्ता, जिससे होकर पहाड़ियों को पार किया जाता है। दर्रे को स्थानीय भाषा में जोत भी कहते हैं। दरअसल तिब्बती भाषा में རོ་ (Ro, रो) का अर्थ होता है शव और ཐང་། (thang, तांग) का अर्थ होता है - मैदान (इलाका)।
दंतकथा
वैसे इसे लाशों वाला मैदान यानी रोहतांग कहे जाने के पीछे भी एक कहानी बताई जाती है। जम्मू कश्मीर रियासत के सेनापति जनरल जोरावर सिंह ने कुल्लू रियासत पर आक्रमण किया और कुल्लू को जीतकर खूब पैसा बटोरा। जोरावर सिंह के मन में लाहौल-स्पीति को जीतने की भी इच्छा आई।
जोरावर ने सेना के साथ कुल्लू से लाहौल स्पीति का रुख किया परन्तु भृगुतुंग जोत (वर्तमान रोहतांग) को पार करते करते सेना समेत जोरावर सिंह बर्फीले तूफ़ान की चपेट में आ गए। मौसम ने ऐसा कहर बरपाया कि पूरी सेना के साथ बर्फ में दबकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
गर्मियों का मौसम आया तो कुल्लू की ओर तिब्बत से आने वाले लोग यहां से होकर गुजरे। पिघली हुई बर्फ के नीचे शवों के ढेर देखकर वे डर गए। मनाली पहुंचे तो पता चला कि डोगरा सेनापति जोरावर सिंह ने यहां से आक्रमण की कोशिश की थी। तब उन्हें मामला समझ आया।
इसके बाद बहुत से लोग इकट्ठे हुए, उन्होंने शवों को यहां से निकालकर मनाली के पास एक समतल जगह पर रखा और अंतिम संस्कार किया। इसी जगह का नाम मढ़ी पड़ा। पंजाबी में श्मशानघाट या समाधि को भी मढ़ी कहते हैं। ऐसी जगह, जहां पूर्वजों का अंतिम संस्कार होता था, वहां पत्थर या ईंटों का ढेर लगाकर समाधि यानी मढ़ी सी बना दी जाती है, जिसपर परिवार के सदस्य दिये जलाया करते हैं। हिमाचल के कुछ इलाकों में भी श्मशान को मढ़ी कहा जाता है।
हालांकि यह भी कहा जाता है कि जोरावार सिंह की मौत रोहतांग में हीं, तिब्बत में हुई थी। तिब्बत में एक अभियान के दौरान बर्फीले मौसम में उन्हें और उनकी सेना को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था। ऐसे में तिब्बतियों और उनके चीनी सहयोगियों के साथ तो-यो की लड़ाई में 12 दिसंबर 1841 की लड़ाई में जख्मी हो जाने के कारण उनका निधन हुआ बताया जाता है।
मगर ऊपर बताई गई दंतकथा के अलावा भी रोहतांग में अचानक बदल जाने वाले मौसम के कारण कई लोगों ने दम तोड़ा है। और ये शव गर्मी होने पर ही सामने आते थे।तो भृगुतुंग में असंख्य शव मिलने के कारण ही इस दर्रे का नाम रोहतांग पड़ गया जो आज तक चलन में है।
**
अत्यधिक ऊँचाई के कारण यहाँ हवा का घनत्व (विरलता) कम होता हैं इस कारण वातावरण में आक्सीजन की मात्रा घट जाती हैं। कभी-कभी साँस लेने में भी परेशानी उठानी पड़ती हैं और थकावट हो जाती हैं।
यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। रोहतांग दर्रा के उत्तर में मनाली, दक्षिण में कुल्लू शहर हैं। रोहतांग - मनाली-लेह राष्ट्रिय राजमार्ग 21 (NH-21) पर पड़ता हैं और मनाली (जिला-कुल्लू) से लगभग 52 किलीमीटर दूर हैं। रोहतांग को लाहुल-स्पीति का प्रवेश द्वार भी कहा जाता हैं क्योकि लाहुल-स्पीति केवल इसी मार्ग से जाया जा सकता हैं।
पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार पिछले वर्ष 2008 में करीब 100,000 विदेशी पर्यटक यहां आए थे। यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसा नजारा दिखता है, जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले। रोहतांग दर्रे में स्कीइंग और ट्रेकिंग करने की अपार संभावनाएँ हैं। हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ। रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 किमी दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है।
प्रदूषण की समस्या -: पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण इस क्षेत्र में गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ रही है। यह भी प्रदूषण बढ़ाने में एक कारक सिद्ध हो रही हैं यहाँ के स्थानीय वैज्ञानिक जेसी कुनियाल के मुताबिक पूरे सीजन में 10000 गाड़ियाँ यहाँ से गुजर चुकी होती हैं व्यस्त समय में यहाँ से प्रतिदिन 2000 किलो कचरा निकलता है तो यहाँ के वातावरण को खराब कर रहा है। पर्यावरणविदों के अनुसार अगर स्थिति नहीं बदली तो इस क्षेत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है।
मौसम की समस्या -: अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक बर्फ के कारण इस मार्ग को बंद कर दिया जाता है। तब इस जिले में रहने वाले लगभग 30 हज़ार निवासी दुनिया से कट जाते हैं। रोहतांग दर्रा बंद होने का सबसे ज्यादा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। हेलीकॉप्टर से ही आवागमन संभव हो पाता है और जब मौसम खराब हो तब यह भी संभव नहीं हो पता। अक्सर 5-6 महीने के लिए ऐसी स्थिति हो जाती है, सोचिये वहां जीवन कितनी कठिनाई में गुजरता होगा। उन सभी दिनों राज्य सरकार सब्सिडी पर राशन देती है।
यहाँ के लोग मुख्यत आलू मटर की खेती पर अपना गुजारा करते हैं।
प्रयटन हेतु अनुकूल समय - जून से अक्टूबर। यह दर्रा लगभग साल के आधे दिन तो बंद ही रहता है। दर्रे को सिर्फ़ मई से नवंबर के बीच में ही खोला जाता है। कुल्लु-लाहौल और स्पीति घाटी को जोड़ता यह रोहतांग दर्रा भारत के लिए सामरिक महत्व रखता है।
यहां हर कोई नहीं जा सकता जब तक की उसके गाड़ी की परमिशन सरकार की तरफ से नही मिल जाती है। हर दिन के लिये हिमाचल प्रदेश सरकार की तरफ से गाड़ियों की एक लीमिट तय की गयी है। जिसमें 800 पेट्रोल की गाड़िया और 400 डीजल की गाड़िया ही जायेगी। इसके बाद एक भी गाड़ी नहीं जायेगी। रोहतांग दर्रे पर एजीटी द्वारा 1200 वाहनों को ही जाने की अनुमति दी गई है। जिसके लिये हिमाचल प्रदेश की एक वेबसाईट है जिसके जरिये ऑन लाइन परमिशन लेनी पड़ती है उसके बाद ही कोई जा सकता है। आपको बता दे कि इस परमिशन के लिये 6 दिन पहले अप्लाइ किया जा सकता है लेकिन जब सीजन चलता है यानि की जून से अक्टूबर तक काफी भीड़ होती है इसलिये पास के लिये शुरु मे ही अप्लाई कर देना चाहिए वर्ना पास नही मिलता है। पर्यटको की भीड़ को देखते हुये ही पास सिस्टम की व्यवस्था की गयी है। वहां के टैक्सी वाले पहले ही पास बुक कर लेते है इसके वजह से भी अगर आप लेट करते है तो आप को दिक्कत होगी। वही लद्दाख जाते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिये की वहां किसी भी तरह की गंदगी न फैलायी जाय क्योंकि उस पर वहां हाई जुर्माना है। वही हिमाचल प्रदेश में पालिथिन बंद है और 2 ऑक्टूबर 2010 से ही हिमाचल प्रदेश में सिगरेट पर बैन लगा दिया गया है आप वहां पर पब्लिक प्लेस पर सिगरेट नही पी सकते वर्ना आपका चालान काट दिया जायेगा। हर जगह सिगरेट मिलती भी नही है लोग चोरी छिपो खुली सिगरेट बेचते है।
अगर रोहतांग में गेम की बात करे तो जब वहां पर बर्फ पड़ती है तब रोहतांग में स्कैटिंग का मज़ा लिया जा सकता है रोहतांग से नीचे उतरते समय वहां पर पैराग्लाइडिंग की भी मज़ा लिया जा सकता है इसके अलावा ब्यास नदी में राफ्टिग और ट्रैकिंग का इंजाय कर सकते है। लेकिन अगर शिला जाते है तो वहां जाने से पहले इन बातो का खास ख्याल रखे ताकि किसी भी तरह की कोई दिक्कत ना हो। रोहतांग जाते समय अगर आप के पास कैमरा है तब आप रास्ते की बेहद खूबसूरत तस्वीरे ले सकते है क्योंकि खतरनाक के साथ साथ रास्ते का नज़ारा बेहतरीन होता है अगर आप जून जुलाई से लेकर सितम्बर तक जाते है तो आप को रास्ते के दोनो तरफ सेब के बांग देखने को मिलेंगे जिस पर सेब के फल भी लगे होगे। उसके साथ ही जब आप रोहतांग जाये तो रास्ते से गरम कपड़ो लेना ना भूले।
रोहतांग पास जाने के लिए मनाली-रोहतांग रास्ते में से सर्दी में पहनने वाले कोट और जूते किराये पर ले लें। क्योंकि वहां बर्फ है तो आप को बिना इनके वहां घूमने में परेशानी आएगी।
कैसे जाएँ - रोहतांग पास जाने के लिए मनाली या कुल्लू से आप जीप ले सकते हैं या अपनी गाड़ी में भी वहां जा सकते हैं। मनाली 570 किलोमीटर दिल्ली से और 280 किलोमीटर शिमला से दूर है।
हिमाचल रोडवेज की बसें विभिन्न स्थानों से केलंग तक चलती हैं। निजी वाहन से इसी मार्ग से होकर लेह तक पहुंचा जा सकता है। हालांकि रोहतांग व उससे आगे कई स्थानों पर आक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। यह समस्या रात में और बढ़ जाती है,इसलिए कुछ लोग इसे रात में प्रेतात्माओं के भटकने के अंधविश्वास से जोड़कर भी देखते हैं। दुर्गम एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रास्ता होने के कारण इसके रखरखाव की जिम्मेदारी सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के जिम्मे है।
सभी पर्यटकों से विनती है इन प्राकृतिक स्थलों को साफ़ सुथरा रखने में मदद करें।
यहाँ देखने के लिए विशेष स्थल है -: ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि मंदिर।
इसी दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है। ब्यास कुंड ब्यास नदी के उदगम का स्थान है। वहां के कुंड के पानी का स्वाद का वर्णन शब्दों में संभव ही नहीं है। शायद अमृत का स्वाद ऐसा ही होता होगा? यह कुंड वेद ब्यास ऋषि के मंदिर में स्थित है। 'ब्यास नदी' कुल्लू - मनाली ही नहीं, वरन फिरोजपुर में 'हरी का पटन' की नदी में मिलकर पंजाब और सतलुज नदी में मिल कर पाकिस्तान की ज़मीन को भी हरा भरा करती है फिर अरब सागर में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 460 किलोमीटर है।
कहते हैं, लाहोल -स्पीती और कुल्लू खेत्र आपस में अलग थे तब इन्हें जोड़ने के लिए स्थानीय लोगों ने यहाँ एक मार्ग बनाने के लिए अपने इष्ट देव भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने भृगु तुंग पर्वत को अपने त्रिशूल से काट कर यह भृगु -तुंग मार्ग यानि रोहतांग पास बनाया। इस दर्रे के दक्षिण में व्यास नदी का उदगम कुंड बना हुआ है। यहीं पर हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महर्षि वेद व्यास जी ने तपस्या की थी। इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है। इसलिए आध्यात्मिक रूप से भी इस स्थान का अलग ही महत्व है। सभी धाराएँ मनाली से 10 किलोमीटर दूर पलाचन गाँव में मिल जाती हैं और ब्यास नदी बनाती हैं। पहले इस नदी को 'अर्जीकी' कहा जाता था। महाभारत के बाद इस नदी का नाम ब्यास नदी पड़ा।
रैला फॉल और नेहरु कुंड - रोहतांग से लौटते समय रास्ते में रैला फॉल एक छोटा सा झरना है पर नजारा बड़ा दिलकश है। मनाली से रोहतांग के रास्ते में एक नेहरू कुंड नामक जगह है। कहा जाता है कि यहां के सोते का पानी पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु पीने के लिए मंगवाते थे।
Nice blog, Get instigative deals and offers. Spend some quality time with your musketeers in a serene atmosphere and have an audacious vacation. Well, we're then going to give you the Stylish "KULLU MANALI". The falls and passes are very notorious to explore in Manali. Kindly Visit: Manali Family Tour Package
जवाब देंहटाएं