बुधवार, 6 जून 2018

शालिग्राम (Shaligram)

वैज्ञानिक तौर पर शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जो नेपाल के मुक्तिनाथ के पास काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड (Ammonoid) जीवाश्म है। लेकिन सफेद और नीले शालिग्राम को भी पूजा जाता है। शालिग्राम पर चक्र भी होते हैं, जिन्हें सुदर्शन चक्र कहा जाता है। धार्मिक आधार पर शालीग्राम का प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान विष्णु का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है।

शालीग्राम को प्रायः 'शिला' कहा जाता है। शिला शालिग्राम का छोटा नाम है जिसका अर्थ "पत्थर" होता है। शालीग्राम विष्णु का एक कम प्रसिद्ध नाम है। इस नाम की उत्पत्ति के सबूत नेपाल के एक दूरदराज़ के गाँव से मिलते है जहां विष्णु को "शालीग्रामम्" के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शालीग्राम को 'सालग्राम' के रूप में जाना जाता है। शालीग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गाँव से भी है जो गंडकी नामक नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहां से ये पवित्र पत्थर भी मिलता है। शालिग्राम को सालिग्राम भी कहते हैं।

उपयोग

हिंदू धर्म में आमतौर पर मानवरूपी धार्मिक मूर्तियां प्रतिनिधित्व करती हैं हालांकि प्रतीक चिन्हों का भी समान रूप से प्रयोग होता है। शालीग्राम के रूप में भगवान विष्णु के अमूर्त रूप का प्रतिनिधित्व किया जाता जिस पर मानव आसानी से ध्यान केंद्रित कर सकें।

शालिग्राम को जानिए :-

शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी बहुत दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।

शालिग्राम के प्रकार :-

भगवान शालिग्राम श्री नारायण का साक्षात् और स्वयंभू स्वरुप माने जाते हैं। आश्चर्य की बात है की त्रिदेव में से दो भगवान शिव और विष्णु दोनों ने ही जगत के कल्याण के लिए पार्थिव रूप धारण किया। जिस प्रकार नर्मदा नदी में निकलने वाले पत्थर नर्मदेश्वर या बाण लिंग साक्षात् शिव स्वरुप माने जाते हैं और स्वयंभू होने के कारण उनकी किसी प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।

ठीक उसी प्रकार शालिग्राम भी नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहते हैं। स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं।

विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। यदि गोल शालिग्राम है तो वह विष्णु का रूप गोपाल है। यदि शालिग्राम मछली के आकार का है तो यह श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो यह भगवान के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। इस तरह लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।

शालिग्राम भिन्न भिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं। दुर्लभ रूप से कभी कभी पीताभ युक्त शालिग्राम भी प्राप्त होते हैं।

जानकारों व् संकलन कर्ताओं ने इनके विभिन्न रूपों का अध्ययन कर इनकी संख्या 80 से लेकर 124 तक बताई है।

शालिग्राम को एक विलक्षण व मूल्यवान पत्थर माना गया है। इसे बहुत सहेज कर रखना चाहिए क्योंकि मान्यता है कि शालिग्राम के भीतर अल्प मात्रा में स्वर्ण भी होता है। जिसे प्राप्त करने के लिए चोर इन्हें चुरा लेते हैं।

शालिग्राम पूजन से चमत्कारी लाभ

भगवान् शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।

श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप, दुःख और रोग दूर हो जाते हैं।

तुलसी शालिग्राम विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है।

दैनिक पूजन में श्री शालिग्राम जी को स्नान कराकर चन्दन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना। यह उपाय मन, धन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है।

जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।

मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है।

जिस घर में शालिग्राम का नित्य पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती है।

पुराणों में शालिग्राम :-

ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है वहां भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है।

भगवान शिव ने भी स्कंद पुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है।

पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है।

पुराणों के अनुसार श्री शालिग्राम जी का तुलसीदल युक्त चरणामृत पीने से भयंकर से भयंकर विष का भी तुरंत नाश हो जाता है।

पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है।

शालिग्राम की पूजा :-

* घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।
* विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
* शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
* प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
* जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।
* शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
* शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

शालिग्राम का मंदिर :-

शालिग्राम का प्रसिद्ध मंदिर मुक्तिनाथ में स्थित है यह वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी मुश्किल है। माना जाता है कि यहां से लोगों को हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

मुक्तिनाथ नेपाल में स्थित है। काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना होता है। वहां से यात्रा शुरू होती है। पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्‍यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर पोखरा पहुंचने के लिए कुल 200 कि.मी. की दूरी तय करनी होती है।

क्यों की जाती है शालिग्राम की पूजा

शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही एक अवतार माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु के दस अवतार समाहित हैं। पुराणों के अनुसार जिस घर में शालिग्राम स्थापित हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ माना जाता है। शालिग्राम को विभिन्न पूजाओं को शामिल किया जाता है। खासतौर से सत्यनारायण की कथा में भगवान विष्णु के समीप शालिग्राम को स्थापित किया जाता है।

यह आमतौर पर काला और लाल रंग का होता है, जो गंडक नदी के किनारे ही पाया जाता है। 

भगवान विष्णु के शालिग्राम में परिवर्तित होने की दो कथाएं हैं। और अन्य कथा के अनुसार शंखचूड़ को  विष्णु जी द्वारा छल पूर्वक मार दिए जाने पर यह शाप दिया था।

शालिग्राम की पहली कथा 

एक बार मां लक्ष्मी और सरस्वती के बीच लड़ाई हो गई और गुस्से में माता सरस्वती ने लक्ष्मी को श्राप दिया कि तुम धरती का एक पौधा बन जाओ। मां लक्ष्मी स्वर्ग से पृथ्वी पर तुलसी के पौधे के रूप में विराजमान हो गई। 

मां लक्ष्मी को स्वर्ग में ले जाने के लिए भगवान विष्णु गंडक नदी में उनका इंतजार कर रहे थे, उस नदी के कुछ शिला पर भगवान विष्णु की दशावतारों के छाप पड़ गए और वे पत्थर शालिग्राम के नाम से प्रसिद्ध हुए। 

शालिग्राम की दूसरी कथा 

जालंधर: शिव का एक भाग :-
एक समय जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर (दैत्य) था। जो शिव की तीसरी आँख से उत्पन्न हुआ था। यही कारण था कि वह अत्यंत शक्तिशाली योद्धा था। इसका विवाह वृंदा नामक कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। इसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था।

जालंधर और शिव का युद्ध :-
जालंधर ने तीनों लोको में हाहाकार मचा रखा था। इसने एक युद्ध में भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग के देवताओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। क्योंकि जालंधर को तभी हराया जा सकता जब पत्नी वृंदा पवित्रता को भांग कर दिया जाए।

वृंदा: विष्णु की सबसे बड़ी भक्त :-
एक असुर की बेटी और पत्नी होने के बावजूद वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उन पर उसे पूरा विश्वास करती थी। जब जलंधर स्वर्ग में देवताओं पर आक्रमण के लिए जा रहा था तो वृंदा ने पति की विजय के लिए एक अनुष्ठान रखा। इस अनुष्ठान के कारण देवता जालंधर को पराजित करने में असमर्थ थे।

विष्णु का विश्वासघात  :-
सभी देवताओं ने देखा कि शिव भी उसे हरा नहीं पाये तो वे विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलांधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया।

वृंदा का अभिशाप :-
जब वृंदा ने भगवान विष्णु को छुआ तब उसे पता चला कि वह जालंधर नहीं है। और उसने पूछा कि वह कौन हैं। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। वृंदा ने पति के संग प्राण त्याग दिए।

भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे इसलिए वृंदा के शाप को जिवित रखने के लिए उन्होनें अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।

तुलसी :-
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

भगवान विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी का पौधा और गंडकी नदी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। मैं यहीं गंडकी नदी के किनारे तुम्हारे साथ रहूंगा।

शालीग्राम तुलसी का विवाह :-
वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

पूजन का शुभ फल 

स्कन्द पुराण के अनुसार शालिग्राम और तुलसी की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की द्वादशी को तुलशी और शालिग्राम की पूजा की जाती है। इस पूजा का फल व्यक्ति के समस्त जीवन में पुण्यों और दान के फल के बराबर होता है।

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