मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बदला जाएगा किलोग्राम का मानक

फ्रांस के वर्साइल्स में 'वेट एंड मेज़र्स' में आयोजित वैज्ञानिकों के एक बड़ा सम्मलेन में वैज्ञानिकों ने वोटिंग करके किलोग्राम की परिभाषा बदलने का निर्णय लिया गया है। 16 नवंबर 2018 को सर्वसम्मति से लिए गए इस निर्णय के तहत नई परिभाषा के परिणामस्वरूप फ्रांस की राजधानी पेरिस में 1889 में अपनाए गए "प्लैटिनम अलॉय सिलिंडर" का उपयोग बंद हो जाएगा। ये नए बदलाव 20 मई, 2019 से “वर्ल्ड मेट्रोलोजी डे” से प्रभावी होंगे।

वैज्ञानिकों ने फैसले के लिए दशकों इंतज़ार किया, जैसे ही फैसला आया, वहां तालियां बजाईं और खुशी जाहिर की, यहां तक कि कुछ प्रतिनिधियों की आंखों में आंसू भी आ गए। इस कदम को मानवता के मापन और गुणन के लिए विश्व में क्रांति के रूप में देखा जा रहा है।

वैज्ञानिकों का पक्ष था कि किलोग्राम को यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा के आधार पर परिभाषित किया जाए।

किब्बल या वाट बैलेंस में मापा जाएगा किलोग्राम

मापतौल को लेकर 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों के हाल ही में हुए एक सम्मलेन में 1 किलोग्राम वज़न के बराबर की वस्तु के प्रोटोटाइप में बदलाव करने तथा 1 किलोग्राम के बाट को और अधिक वैज्ञानिक बनाने हेतु ‘किब्बल बैलेंस फ़ॉर्मूला’ बनाने का निर्णय लिया गया है। प्लैंक कांस्टेंट द्वारा पुनर्परिभाषित इस नए सिस्टम में द्रव्यमान की यूनिट इलेक्ट्रिकल फोर्स के ज़रिए निर्धारित होती है। प्लैंक्स कांस्टेंट (Planck's constant) एक गणितीय मात्रा है।

अब किलोग्राम बाट की बजाए एक सिलिंडर इलेक्ट्रान पंप से नापा जाएगा। यह पंप प्लेटिनम इरीडियम धातु का बना है, जो इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक एनर्जी से काम करेगा। इस इकाई को प्लैंक कॉन्स्टेंट नाम दिया गया है।

यूके के राष्ट्रीय मानक प्रयोगशाला के शोध निदेशक और ब्रिटेन में पैमाइश मानकों के उत्तरदायी थिओडोर जैनसेन कहते हैं, "वैज्ञानिक पैमाइश में एसआई को पुन: परिभाषित करना एक यादगार क्षण है। एक बार लागू होने के बाद सभी एसआई यूनिट फंडामेंटल कंस्टेंट की प्रकृति पर आधारित होंगी, जिसके मायने हमेशा के लिए तय हो जाएंगे और ये और भी अधिक सटीक पैमाइश कर पाएगा।

मुख्य बिंदु:

* वैज्ञानिकों द्वारा 130 वर्ष बाद किलोग्राम की परिभाषा बदने का निर्णय लिया गया है।

* भविष्य में किलोग्राम को किब्बल या वाट बैलेंस का उपयोग करके मापा जाएगा। यह एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का उपयोग करके सटीक गणना करता है।

* इसके ज़रिये हल्की से हल्की तथा भारी से भारी वस्तु का द्रव्यमान बिल्कुल सटीक तरीके से निर्धारित किया जा सकेगा।

* वर्तमान में इसे प्लेटिनम से बनी एक सिल के वज़न से परिभाषित किया जाता है जिसे ‘ली ग्रैंड के’ (Le Grand K) कहा जाता है। ऐसी एक सिल पश्चिमी पेरिस में ‘इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स’ (बीआईपीएम) के पास वर्ष 1889 से रखी हुई है।

इसी सिलिंडर के वजन को 1 किग्रा माना जाता है। जिसे हर 30-40 साल में जांच के एक बहुत बड़े अभ्यास के लिए बाहर निकाला जाता है और दुनिया भर के बहुत से बांटों और मापों को इससे नापा जाता है।

* ऐसा होने पर किलोग्राम की परिभाषा न बदली जा सकेगी और न ही इसे कोई नुकसान पहुँचाया जा सकेगा। यह न केवल फ्रांस में बल्कि दुनिया में कहीं भी वैज्ञानिकों को एक किलो का सटीक माप उपलब्ध करवाएगा।

अब इसे कैसे बदला जाएगा?

वैज्ञानिक अब माप के तौर पर प्लांक कॉन्स्टैंट का प्रयोग करने वाले हैं। यह क्वांटम मैकेनिक्स की एक वैल्यू है। यह ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकेट्स का भार होता है। इसकी मात्रा 6.626069934*10-34 जूल सेकेण्ड है। जिसमें सिर्फ 0.0000013% की ही गड़बड़ी हो सकती है। इससे एम्पियर, केल्विन और मोल जैसी ईकाईयों में भी बदलाव आ सकता है।

केल्विन (तापमान यूनिट) को पारिभाषित करने के लिए ध्वनि के लिए इस्तेमाल होने वाले थर्मामीटर का उपयोग किया जायेगा, जो एक निश्चित तापमान पर गैस से भरे क्षेत्र में ध्वनि की गति का माप लेता है।

पदार्थ की मात्रा को मापने के लिए मोल, यूनिट का इस्तेमाल कर फिर से परिभाषित किया जायेगा जो शुद्ध सिलिकॉन-28 में सही परमाणुओं की मात्रा निर्धारित करेगा।

अंतरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली (SI पद्धति) में किलो सात बेसिक यूनिट्स में से एक है

* किलो अंतरराष्ट्रीय मानक प्रणाली की 7 आधारिक या बेसिक यूनिट्स में से एक है; जिनमें से चार हैं - किलो, एंपियर (विद्युत प्रवाह/इलेक्ट्रिक करंट), केल्विन (ताप/थरमोडायनामिक टेमपिरेचर) और मोल (पार्टिकल नंबर)।

- किलोग्राम (किग्रा)

गणना: मास 
आवश्यकता पड़ती है: पलैंक्स कॉन्सटेंट (ली ग्रैंड) 
परिभाषा: किलोग्राम भार की SI इकाई है। यह एक किलोग्राम भार के बराबर है, जो कि एक लीटर जल के भार के एकदम बराबर है। यह इकलौती SI इकाई है, जिसका उपसर्ग किलो, उसके नाम का भाग है।

- एम्पियर (ए)

गणना: करंट
आवश्यकता पड़ती है: इलेक्ट्रॉन पर चार्ज
परिभाषा: एम्पियर, लघु रूप में विद्युत धारा, या विद्युत आवेश की मात्रा प्रति सेकेंड की इकाई है। एम्पियर SI की मूल इकाई है और इसका नाम विद्युतचुम्बकत्व को खोजने वाले वैज्ञानिक आंद्रे-मैरी एम्पीयर के नाम पर रखा गया है।

- कैल्विन (के)

गणना: तापमान 
आवश्यकता पड़ती है: बेल्ट मेंस कॉन्सेंट
परिभाषा: कैल्विन तापमान की मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहां, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन भी कहते हैं। 

- मोल (एमओएल)

गणना: पदार्थ की मात्रा
आवश्यकता पड़ती है: आवोगाद्रो कॉन्सटेंट
परिभाषा: मोल एक एसआई मूल इकाई है, जो पदार्थ की मात्रा मापन करता है। यह एक गण्य इकाई है। एक मोल में एवोगाद्रो संख्या के बराबर (लगभग 6.02214×1023) परमाणु, अणु, अन्य आरम्भिक कण होते हैं।

एसआई के सात बेस यूनिट में से 4 यूनिट पर पड़ेगा प्रभाव

एसआई के सात बेस यूनिट में से 4 यूनिट (किग्रा, एम्पियर, केल्विन व मोल और इससे व्युत्पन्न वोल्ट, ओम और जूल) पर अब प्रभाव पड़ने के आसार हैं।

किलोग्रामः यह प्लांक कॉन्स्टैंट यानी ‘h’ से परिभाषित होगा।

एम्पियरः इलेमेंट्री इलैक्ट्रिकल चार्ज से यानी ‘e’ से परिभाषित होगा।

केल्विनः बोल्ट्जमैन कॉन्स्टैंट से यानी ‘k’ से परिभाषित होगा।

मोलः अवाग्रादो कॉन्सटैंट से यानी ‘NA’ से परिभाषित होगा।

हालांकि इन यूनिट्स की साइज में कोई बदलाव नहीं किए जाएंगे (किग्रा अभी भी किग्रा ही रहेंगे)। इस बदलाव के बाद तकनीक, पर्यावरण, व्यापार, स्वास्थ्य और विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार के अवसर बढ़ेंगे और वैश्विक स्तर पर जुड़ सकेंगे।

बदल चुका है मीटर का भी पैमाना

कुछ दशक पहले, मीटर को भी ऐसे ही एक भौतिक ईकाई से हटा कर, प्रकाश जितना एक सेकेंड में ट्रेवेल करता है, उसके 30 करोड़वां भाग के बराबर बना दिया गया था।

बदलाव के कारण :--

* किलोग्राम अंतिम एसआई बेस यूनिट है जो अभी तक एक फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट द्वारा परिभाषित होता है।

* वैज्ञानिकों का मत है कि फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट सरलता से परमाणु को खो सकते हैं अथवा हवा से अणुओं को अवशोषित कर सकते हैं, इसी कारण इसकी मात्रा माइक्रोग्राम में कई बार बदली गई। अर्थात् किलोग्राम और स्तर मापने के लिए विश्वभर में प्रोटोटाइप का उपयोग किया जाता है। सामान्य जीवन में इसे मापा नहीं जा सकता है किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए यह समस्या पैदा कर सकता है।

किलोग्राम में हुए बदलाव का लोगों के सामान्य जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।  इसका सबसे ज्यादा असर उन क्षेत्रों में पड़ेगा जहां एक माइक्रोग्राम (1 ग्राम का 10 लाखवां हिस्सा) का वजन भी मायने रखता है।

अब इसका हो रहा है क्षरण जिसकी वजह से हुआ मानक में बदलाव

अब इस बाट का क्षरण हो रहा है। कुछ साल पहले ही इसमें 30 माइक्रोग्राम की कमी आई है। यह कमी चावल के एक दाने जितनी है। वैज्ञानिकों ने यह भी फैसला लिया है कि माप के लिए प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही माना ये भी जा रहा है कि मई 2019 के बाद मीटर और सेकेंड समेत अन्य इकाइयों के मानकों में भी बदलाव किया जाएगा।

क्या है ‘ली ग्रैंड के’ (Le Grand K)?

‘ली ग्रैंड के’ लंदन में निर्मित 90 प्रतिशत प्लेटिनम (Platinum) और 10 प्रतिशत इरिडियम (Iridium) से बना है। 19वीं शताब्दी में फ्रांस के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेज़र्स (BIPM) के दफ्तर में एक कांच के कटोरे में प्लेटिनम इरीडियम धातु (Le Grand K) का एक टुकड़ा रखा गया था जिसे ‘ली ग्रैंड के’ कहा जाता है। यह 4 सेंटीमीटर बड़ी तथा एक सिलेंडर के आकार की धातु है। 1889 से लेकर अब तक एक किलोग्राम की माप इसी प्लेटीनियम-इरीडियम के अलॉय से बने सिलिंडर के द्रव्यमान से तय होती रही है। यह पश्चिमी पेरिस के सीमांत सेवरे में इंटरनेश्नल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स (BIPM) के वॉल्ट में वर्ष 1889 से रखी हुई है।

दुनिया में आदर्श भार वाले धातु के बक्से को खोलने की है 3 चाबी

इस बक्से को खोलने की दुनिया में 3 ही चाबी हैं। तीनों अलग-अलग जगह रखी गई हैं।

किलोग्राम को पहली बार 1795 में परिभाषित किया गया था और 1889 में इसे बदला गया।

1875 में तय हुए थे मानक

आज से 143 साल पहले 1875 में 17 देशों ने मिलकर फ्रांस में इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेजर्स (बीआईपीएम) की स्थापना की थी। इसका काम अलग-अलग चीजों के सात मानकों की इकाई तय करना था और इसी के आधार पर 7 स्टैंडर्ड (एसआई) इकाई तय हुईं।

ये सात इकाई तय की गईं

* लंबाई के लिए मीटर
* भार के लिए किलोग्राम
* समय के लिए सेकंड
* करंट के लिए एम्पियर
* तापमान के लिए केल्विन
* पदार्थ की मात्रा के लिए मोल
* प्रकाश की तीव्रता के लिए कैंडेला

भारत के पास भी है ल ग्रैंड के = नंबर 57

भारत के पास भी पेरिस में रखे इस ‘ल ग्रैंड के’ की एक आधिकारिक कॉपी है जो दिल्ली के नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी में रखा हुआ है। लेकिन इसे भारत में नंबर 57 कहा जाता है। नंबर 57 भारत का सटीक किलोग्राम है। नंबर 57 को कुछ सालों के अंतराल में पेरिस भेजा जाता है और वहीं इसे तौला जाता है। भारत में किसी भी चीज को नंबर 57 के हिसाब से ही तौला जाता है। आज होने वाले किलोग्राम के फैसले से आम लोगों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा लोग पहले की ही तरह खरीदारी करेंगे।

द्रव्यमान क्या है?

द्रव्यमान किसी वस्तु अथवा पदार्थ के भीतर उसकी मात्रा को कहते हैं। द्रव्यमान की मात्रा किसी भी स्थान पर बदलती नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि, धरती या चंद्रमा पर आपका भार बदल जायेगा पर द्रव्यमान एक ही रहेगा। ऐसा दोनों जगह अलग-अलग गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है।

भारत के सन्दर्भ में:

नए अंतर्राष्ट्रीय फ़ॉर्मूले के अनुरूप देश में 1 किलोग्राम का नया बाट तैयार करने में तीन से चार वर्ष का समय लगेगा और इस कार्य पर लगभग 60 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। उपभोक्ता मामलों और राष्ट्रिय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार देश में एक ग्राम का बाट तैयार कर लिया गया है।

हालांकि, यूके में नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री की वैज्ञानिक पेर्डी विलियम्स ने इसके बारे में मिलीजुली राय जाहिर की है। वो कहती हैं, "मैं लंबे वक्त से इस प्रोजेक्ट के साथ नहीं जुड़ी हूं और मैं किलोग्राम का माप पसंद करती हूं लेकिन ये अपने आप में महत्वपूर्ण पल है और मैं एक अच्छा कदम है ये नया तरीका बेहतर तरीके से काम करेगा।"

हमारे एक किलो सब्जी खरीदने पर इसका क्या असर होगा?

दरअसल कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। सब्जी के ठेले पर सब्जीवाला आपको उसी काले लोहे के बाट से सब्जी तौलकर देगा। यह बस एक तौल को ज्यादा से ज्यादा सटीक बनाने का तरीका है, जिससे किसी भौतिक ईकाई से नापने की बजाए, नाप की ईकाई को प्राकृतिक बना दिया जाए।

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