रविवार, 27 अक्टूबर 2019

सोन भंडार गुफा, राजगीर (बिहार)

सोन भंडार गुफा – राजगीर (बिहार) – इसमें छुपा है मोर्ये शासक बिम्बिसार का अमूल्य ख़ज़ाना (Son Bhandar Caves of Rajgir)

देश में कई ऐसी गुफाएं हैं जिनमें लाखों-करोड़ों टन सोना छिपा हुआ है। बौद्धकाल में सोने का संरक्षण किया गया था। बौद्धकाल में बौद्ध और हिन्दू राजाओं ने सोने को छिपाने का कार्य शुरू किया था, क्योंकि इस काल में समाज में ज्यादा वैमनस्य और झगड़ा बढ़ गया था। राजाओं में प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ गई थी। ऐसे में कीमती वस्तुओं का मूल्य बढ़ गया और सभी अपने-अपने खजाने को छिपाने में लग गए।

Sonbhandar Cave History & Story :–

बिहार प्रांत का एक छोटा सा शहर राजगीर जो कि नालंदा जिले मे स्थित है कई मायनों मे मत्त्वपूर्ण है। यह शहर प्राचीन समय मे मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ।

बुद्ध न सिर्फ़ कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहां की धरती पर दिये थे। यही पर भगवान बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। कहते हैं कि उसका प्रशासन बहुत ही उत्तम था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। यह शहर बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

पटना से 100 किमी उत्तर में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न सिर्फ़ एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक खुबसूरत हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। यह शहर भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह रहा है।

मौर्य शासक बिंबिसार ने अपने शासन काल में राजगीर में एक बड़े पहाड़ को काटकर अपने खजाने को छुपाने के लिए गुफा बनाई थी। जिस कारण इस गुफा का नाम पड़ा था “सोन भंडार” (Son Bhandar Caves)। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि सोने को सहेजने के लिए इस गुफा को बनवाया गया था। जिसे आजतक कोई नहीं खोल पाया।

इस राजगीर की वैभरगिरी पहाड़ी की तलहटी में है सोन भंड़ार गुफ़ा जिसके बारे मे किवदंती है कि इसमें बेशकीमती ख़ज़ाना छुपा है, जिसको आज तक कोइ नही खोज पाया है। यह गुफा और इसमें छिपा ख़ज़ाना 2500 सालो से भी ज्यादा प्राचीन है। माना जाता है की ये ख़ज़ानामगध सम्राट बिम्बिसार का है जिसने अपने खज़ाने को अपने बिगड़ैल बेटे अजातशत्रु से बचाने के लिए यहाँ छिपा दिया थाै, हालांकि कुछ लोग इसे पूर्व मगध सम्राट जरासंघ का भी बताते है। जरासंध कंस का ससुर था। हालांकि इस बात के ज्यादा प्रमाण है कि यह खजाना बिम्बिसार का ही है क्योकि इस गुफ़ा के पास उस जेल के अवशेष के रूप में चट्टानों का एक घेरा आज भी मौजूद है जहाँ पर बिम्बिसार को उसके जीवन के अंतिम दिनों में उनके पुत्र अजातशत्रु ने धन और राज-पाठ के झगडे में बंदी बना कर रखा था।

सैकड़ों वर्ष पुराने लोहे के शिकंजे भी स्थल से बरामद हुए हैं, जो की कही और रखे गए हैं। गौरतलब है की बिम्बिसार ने खुद ही  कारागार स्थल चुनाव किया था ताकि वो गिद्धकुट पर्वत पर रोजाना बुद्ध को जाते हुए देख सके। शान्ति में विश्वास रखने के कारण उसने पुत्र की धृष्टता भी बर्दाशत कर लिया।

सोन भंडार गुफा : 

इस गुफा में दो कक्ष बने हुए हैं। ये दोनों कक्ष पत्‍थर की एक चट्टान से बंद हैं। कक्ष सं. 1 माना जाता है कि सुरक्षाकर्मियों का कमरा था जबकि दूसरे कक्ष के बारे में मान्‍यता है कि इसमें सम्राट बिम्बिसार का खजाना था। कहा जाता है कि अभी भी बिम्बिसार का खजाना इसी कक्ष में बंद है।

अंदर जाते ही 10 मीटर लंबा चट्टान का कमरा मौजूद है

सोन भण्डार गुफा मे प्रवेश करते ही 10.4 मीटर लम्बा, 5.2 मीटर चोडा तथा 1.5 मीटर ऊंचा एक कक्ष आता है, यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए था। इसी कमरे कि पिछली दीवार से खजाने तक पहूँचने का रास्ता जाता है। इस रास्ते का प्रवेश द्वार पत्थर की एक बहुत बडी चट्टान नुमा दरवाज़े से बन्द किया हुआ है। इस दरवाज़े को आज तक कोइ नही खोल पाया है।

दोनों ही गुफाये तीसरी और चौथी शताब्दी मे चट्टानों को काटकर बनाई गई है। दोनों ही गुफाओं के कमरे पोलिश (चिकनी और परिष्कृत) किये हुए है जो कि इन्हे विशेष बनाती है, क्योकि इस तरह पोलिश कि हुईं गुफाये भारत मे बहुत कम है। सामान्य तौर पर गुफाएं खुरदरी होती हैं लेकिन सोन भंडार गुफाओं का चिकना होना पूरी तरह असामान्य है। पुरातत्व वैज्ञानिकों का कहना है कि ये दोनों ही गुफाएं लगभग एक ही समय के आसपास बनाई गई हैं।

पुरातत्व विभाग के अनुसार इन गुफाओं को अलग-अलग पत्थरों से नहीं, बल्कि केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। यही कारण है कि इनमें कहीं कोई जोड़ नजर नहीं आता और इसलिए वे गुफाएं सदियों से संरक्षित हैं।

गुफा की चट्टान पर शंख लिपि में छिपा है रहस्य 

गुफा के कमरे में चट्टान की एक दीवार पर शंख लिपि में कुछ लिखा है। इसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। ऐसा माना जाता है चट्टान पर शंख लिपि में अंदर के कमरे को खोलने का रहस्य छिपा है। गुफाओं पर सोनेनुमा पेंट किया गया है, जो सदियों से संरक्षित है। माना जाता है कि यह असली सोने की पर्त है।

सोन भंडार गृह के पास ही उस जैसी और गुफाएं हैं जिन्हें बराबर की गुफाएं कहा जाता है। इन गुफाओं के कमरे भी सोन भंडार गुफा की तरह ही बनाए गए हैं। इन गुफाओं के अंदर और बाहर ऐसे कई अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो ये बताने के लिए काफी है कि इनका निर्माण 5वीं-6वी शताब्दी (सेंचुरी) के आसपास हुआ है। यह अभिलेख वहां आए तीर्थयात्रियों द्वारा लिखे गए हैं।

किंवदंतियों के मुताबिक, गुफाओं की असाधारण बनावट ही लाखों टन सोने के खजाने की सुरक्षा करती है। इन गुफाओं में छिपे खजाने तक जाने का रास्ता एक बड़े प्राचीन पत्थर के पीछे से होकर जाता है।

गुफा के दरवाजे को तोप से उड़ाने का हुआ था प्रयास

अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान इस गुफा को तोप से उड़ाने का प्रयास किया गया, मगर अंग्रेज इस प्रयास में सफल नहीं हुए थे। आज भी इस गुफा पर तोप के गोले के निशान मौजूद हैं। अंग्रेजों की कोशिश गुफा में छुपे खजाने को प्राप्त करने की थी।

भारत के अन्य कई राजाओ ने भी इसे तोड़ने की कोशिश की पर असफल रहे। वैज्ञानिकों ने भी पड़ताल किया तो पाया की यदि इसे तोडा तो हो सकता है गर्म पानी जैसा कुछ निकले जो खज़ाने तक पहुंचने न दे इसलिए इसे तोड़ने का प्रयास बंद कर दिया गया। कुछ लोगो का मानना है की खज़ाने तक पहुँचने का रास्ता वैभरगिरि पर्वत से होकर सप्तवर्णी तक जाता है जो गुफा के दूसरी तरफ है। लोगो ने यहाँ से भी कोशिश की पर असफल रहे।

एक बार वैज्ञानिकों ने पुरे गुफे के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए इसे बम से उड़ाने के बारे सोचा था, लेकिन यहाँ के चट्टानों में गंधक जैसे ज्वलनशील तत्त्व पाये जाने के कारण कोई जोखिम नहीं लिया गया।

जैन धर्म के हैं अवशेष :

सोन भंडार की इस गुफा में जैन धर्म के अवशेष भी मिलते हैं। इस सोन भंड़ार गुफ़ा के पास ऐसी ही एक और गुफा है जो कि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इसका सामने का हिस्सा गिर चुका है। इस गुफा की दक्षिणी दीवार पर 6 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यहां पर जैन धर्म के अनुयायी भी रहे होंगे।

इनमें से एक पहाड़ी के भीतर से प्राप्त अभिलेखों के अनुसार यह जानकारी मिली है कि तीसरी-चौथी शताब्दी में महान जैन संत, मुनि वैरादेवी ने अन्य जैन योगियों के लिए इन गुफाओं का निर्माण किया था।

यह गुफा वैष्णव संप्रदाय के अधीन भी था :

इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि यह गुफा कुछ समय के लिए वैष्णव संप्रदाय के अधीन भी रही होंगी, क्योंकि इन गुफाओं के बाहर गरुडासन में बैठे भगवान विष्णुु की प्रतिमा मिली थी। विष्णु की यह प्रतिमा गुफा के बाहर स्थापित की जानी थी, मगर मूर्ति की फिनिशिंग का कार्य पूरा होने से पहले की काम में लगे लोगों किसी कारणवश यह जगह छोड़कर जाना पड़ा होगा। जिसके कारण यह मूर्ति बिना स्थापित किये ही रह गयी। फिलहाल विष्णु भगवान की यह मूर्ति नालंदा म्यूजियम में रखी हुई है।

राजगीर

बिहार एक ऐसा राज्य जहां पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों की कतार लंबी है। उसी लंबी कतार में बिहार का ऐतिहासिक तीर्थ स्थल भी है जो अपने आप में मशहूर है और वो है प्रसिद्ध राजगीर भूमि जो कि नालंदा जिले में स्थित है।

बिहार की राजधानी पटना से करीब 100 किमी दूर स्थित पांच पहाडि़यों से घिरा राजगीर प्रसिद्धा धार्मिक तीर्थस्थल है। दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। राजगीर कई धर्मों की संगमस्थली है। जैन, हिंदू सहित बौद्ध धर्म से इस तीर्थस्थल का पुराना संबंध है। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। कहा जाता है कि जैन धर्म में 11 गंधर्व हुए और उन सभी का निर्वाण राजगीर में हुआ। यहां प्रकृति की अनुपम छटा मनमोहक है। पहले यहां सरस्वती नदी भी बहती थी।

राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केंद्र, जैन तीर्थकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। इसका जिक्र ऋग्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय पुराण, वायु पुराण, महाभारत, बाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था।

राजगीर का मतलब है “राजा का घर”। लगभग 5वीं शताब्दी के दौरान मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। उस वक्त इस शहर का नाम राजगृह हुआ करता था। प्राचीन में राजगीर को बसुमति, बारहद्रथपुर, गिरिवगज, कुशाग्रपुर एवं राजगृह के नाम से जाना गया है।

विम्बिसार बुद्घ और बौद्ध धर्म के प्रति काफी श्रद्धा रखते थे। पांचवीं सदी में भारत की यात्रा पर आए चीनी तीर्थ यात्री फाहियान ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा था कि राजगीर की पहाड़ियों के बाहरी हिस्से में राजगृह नगर का निर्माण विम्बिसार के पुत्र आजातशत्रु ने ही करवाया था। भारत में मौर्य साम्राज्य का उद्गम यही हुआ था जिसने भारतवर्ष को महान योद्धा जैसे राजा दिए और चाणक्य जैसे विद्वान।

राजगीर और इसके आसपास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों में सप्तपर्णि गुफा, रत्नागिरी पहाड़ पर बौद्ध धर्म का विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार गुफा, मणियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, बिंबिसार की कारागार, आजातशत्रु का किला, नौलखा मंदिर, जापानी मंदिर, रोपवे, बाबा सिद्धनाथ का मंदिर, घोड़ाकटोरा डैम, तपोवन, जेठियन बुद्ध पथ, वेनुवन, वेनुवन विहार, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय, जैन मंदिर, श्रीकृष्ण भगवान के रथ के निशान, सुरक्षा दीवार, सामस स्थित तालाब और तेल्हार आदि दर्शनीय स्थल है।

राजगीर में सोन भंडार गुफा भी है, किवदंती है कि इसमें बेशकीमती खजाना छुपा हुआ है, जिसे आज तक कोई नहीं खोज पाया है।
राजगीर की पहाड़ी 
राजगीर पांच चट्टानी पहाड़ियों से घिरा है। जिसका जिक्र महाभारत और रामायण में भी मिलता है। राजगीर की पहाडि़यां विश्व में प्रसिद्ध है। राजगीर की पांच पहाड़ियों का नाम विपुलगिरि, रत्‍‌नागिरि, उदयगिरि, स्वर्णगिरि और वैभारगिरि हैं। पहाड़ों की प्राकृतिक सौंदर्य और हरे-भरे जंगलों के मनोरम दृश्यों को देखने पर्यटक देश-विदेश से आते हैं।

इन सभी पहाडिय़ों पर जैन धर्म के मंदिर हैं। भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश विपुलगिरि पर्वत पर दिया था। इसके अलावा राजगीर के आस-पास की पहाडिय़ों पर 26 जैन मंदिर बने हुए हैं, लेकिन वहां पहुंचना आसान नहीं है। वहां के रास्ते बड़े ही दुर्गम हैं।

भगवान बुद्ध भी रत्नागिरि पर्वत के ठीक बगल में स्थित गृद्धकूट पहाड़ी पर उपदेश देते थे। इस पहाड़ी पर उस स्थल के अवशेष मौजूद हैं। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे, बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश और श्रवण भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी। बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्मावलंबियों का पहला सम्मेलन वैभारगिरि पहाड़ी की गुफा में हुआ था। इसी सम्मेलन में पाली साहित्य का ग्रंथ त्रिपिटक तैयार हुआ था। बोधगया से राजगीर भगवान बुद्ध जिस मार्ग से आए थे उसमें भी अनेक स्थल हैं। नालंदा, पावापुरी, राजगीर और बोधगया एक कड़ी में हैं। जापानी बुद्ध संघ ने विश्व शांति स्तूप भी बनवाया हुआ है।

राजगीर का हिन्दू धर्म से भी नाता है। इसका इतिहास महाभारत काल से भी संबंधित है। यह शहर जरासंध के साथ हुए पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण की कहानी भी कहता है। विपुलगिरि पर्वत जरासंध की राजधानी थी। भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंघ को यहां लगभग 17 बार हराया था। पर अठारहवीं बार भगवान श्रीकृष्ण जरासंध से लड़े बिना मैदान छोड़ गए। भीम और जरासंध के बीच 18 दिनों का मल्लयुद्ध यहीं हुआ था। जरासंध इसमें भगवान श्रीकृष्ण की कूटनीति से मारा गया था। जरासंध का प्रसिद्ध अखाड़ा आज भी है।

पौराणिक नगरी राजगीर तीर्थ के बारे में वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु ने राजगीर में वाजपेय यज्ञ कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी- देवता राजगीर पधारे थे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था। उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड है।

यहां आने वाले लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों यथा ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंत ऋषि कुंड, सूर्य कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं।

प्राचीन धरोहर राजगीर में राजस्थान, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक के अलावा श्रीलंका, थाईलैंड, कोरिया, जापान, चीन, बर्मा, नेपाल, भूटान, अमेरिका और इंग्लैंड से भी पर्यटक श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां पहुंचते हैं।

एक किदवंती जो यहां से संबंधित है कि राजा हिरणकश्यप अपने अघोर तपस्या के पश्च्यात भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए 12 मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। ब्रह्मा उसकी तपस्या से प्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने राजा हिरणकश्यप को वरदान दे दिया। परन्तु, वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब भविष्य में होने वाली भयानक समस्या के निदान के लिए वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यप के अंत के लिए 13वें महीने का निर्माण किया। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त 1 महीने को मलमास या अधिकमास कहा जाता है।

वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में सभी देवी-देवता यहां आकर वास करते हैं। इसी अधिकमास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है। देश-दुनिया के श्रद्धालु यहां प्रवास करते हैं और यहाँ स्थितगर्म कुंड ठंड में यहां आने वाले लोगों का ध्यान खींचता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से कई रोग दूर होते हैं। सप्तपर्णी गुफा यहां मौजूद गर्म पानी कुंड का भी एक स्रोत है जो हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लिए बेहद पवित्र माना जाता है।

पर्यटक स्थल
गृद्धकूट पर्वत - 
भगवान महात्मा बुद्ध गृद्धकूट पर्वत पर बैठकर लोगों को कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए थे। जापान के बुद्ध संघ ने इसकी चोटी पर एक विशाल शांति स्तूप का निर्माण करवाया है जो आजकल पर्यटकों के आकर्षण का मूख्य केंद्र है। स्तूप के चारों कोणों पर बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थपित हैं।विशाल शांति स्तूप को शांति शिवालय भी कहा जाता है। 

वेणुवन -
बांसों के वन में बसे वेणु विहार को उस समय के राजा बिम्बसार ने भगवान बुद्ध के रहने के लिए बनवाया था। विणु विहार बहुत ही खूबसूरत जगह है। 

गर्म जल के झरने -
वैभव पर्वत की सीढि़यों पर मंदिरों के बीच गर्म जल के कई झरने (सप्तधाराएं) हैं जहां सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण मिले हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुंड बनाए गए हैं। इनमें ब्रह्मकुंड का पानी सबसे गर्म (45 डिग्री से.) होता है।

स्वर्ण भंडार -
यह स्थान प्राचीन काल में जरासंध का सोने का खजाना था। कहा जाता है कि अब भी इस पर्वत की गुफा के अंदर बहुत सोना छुपा है और पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य भी किसी गुप्त भाषा में खुदा हुआ है।

जैन मंदिर -
पहाड़ों के बीच बने 26 जैन मंदिरों को दूर से देखा जा सकता है। क्योंकि वहां पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुर्गम है। जैन धर्म के महावीर संस्थापक भी मंदिरों में कई बार आते थे। 

महोत्सव
राजगीर महोत्सव -
हर साल तीन या चार दिन के लिए राजगीर महोत्सव का आयोजन होता है। इस महोत्सव में मगध के इतिहास की झलक कलाकार गीत, संगीत और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। जिसको देश-विदेश से हजारों पर्यटक देखने आते हैं। 

मलमास मेला -
तीन वर्षो में एक बार आने वाला मलमास के दौरान राजगीर में विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है। 365 दिनों का एक वर्ष होता है, लेकिन हर चौथा वर्ष 366 दिन का होता है जिसे मलमास या अधिवर्ष (लीप का साल) कहते हैं। पुराण के अनुसार यह मास अपवित्र माना गया है और इस अवधि में मूर्ति पूजा, यज्ञदान, व्रत, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है, लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इस मलमास अवधि में सभी देवी देवता यहां आकर वास करते हैं। राजगीर के मुख्य ब्रह्मकुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसे ब्रह्माजी ने प्रकट किया था और मलमास में इस कुंड में स्थान का विशेष फल है।

बिंबसार

बिहार में एक कस्बेनुमा शहर है राजगीर। जहां विभारगिरि पर्वत की तलहटी में कुछ गुफाएं हैं। जिसकी ​दिवारों पर ही सोना मढा हुआ है। इतिहास में दर्ज है कि चंद्रगुप्त मौर्य के शासन से भी सैंकडों साल पहले 558 ईसा पूर्व मगध के राजा बिंबसार थे।

राजा बिंबिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े संरक्षक होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय साम्राज्य में मगध राज्य के प्रारम्भिक राजाओं में से एक था। जो अपने राज्य के पूर्वी क्षेत्र को अंगा नामक स्थान तक विस्तृत कर दिया था, जो भविष्य में मौर्य साम्राज्य के विशाल विस्तार की नींव साबित हुआ। यह शिशुनाग वंश के थे और जिन्होंने राजगीर नामक स्थान को अपनी साम्रराज्य की राजधानी बनाया था। जहां उनका महल भी था। वह केवल 15 साल की उम्र में सम्राट बने और 52 साल की उम्र तक राज किया। कहा जाता है कि मगध में इतनी संपत्ति थी कि उससे पृथ्वी के कई देशों की अर्थव्यवस्था कम से कम 50 सालों तक निरंतर बिना किसी रूकावट के चल सकती है।

बिंबसार के कार्यकाल के दौरान कई राजाओं ने उनकी अधीनस्थता स्वीकार की थी और अपनी संपत्ति राजा को समर्पिंत की थी। महल में रहते हुए बिंबसार के दुश्मनों की भी कमी नहीं थी। इसलिए उन्होंने विभारगिरि पर्वत के आसपास कुछ गुफाओं का निर्माण करवाया। जहां उन्होंने महल का सारा सोना, हीरे और जवाहरात सुरक्षित रखे।

इन गुफाओं की सुरक्षा के लिए राजा का सबसे अच्छा सैनिक दस्ता हर वक्त तैनान रहता था।

इन गुफाओं का निर्माण और खजाने को रखने के राज के बारे में विश्वसनीय सैनिकों के अलावा किसी और को कोई जानकारी नहीं थी। बिंबसार को राजगीर में ही गौतम बुद्ध से ज्ञान प्राप्त हुआ था। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर उसका संरक्षण करने का निर्णय लिया। इस बात से बिंबसार का पुत्र आजातशत्रु नाराज था।

वह जल्द से जल्द राजा बनना चाहता था, साथ ही अपने पूर्वजों के खजाने का भी पता लगाना चाहता था। उनके अपने ही पिता को बंदी बनवा लिया और तब तक उन्हें भोजन नहीं दिया, जब तक वे खजाने का पता नहीं बता देते।

बिंबसार ने आखिरी वक्त तक मुंह बंद रखा और एक दिन उनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि तब से यह खजाना एक राज ही बना हुआ है। खजाने का दरवाजा खोलने की विधि केवल बिंबसार जानता था।

कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक कोई भी दरवाजे के पीछे का रहस्य नहीं जान पाया।

जरासंध

वैसे तो पुरातत्व विभाग को गुफाओं का मुआयना करने पर जो भी प्रमाण हासिल हुए हैं, वे राजा बिंबसार की थ्योरी को पुख्ता करते हैं। पर यहां से जुड़ी दूसरी कहानी भी है। यह कहानी है महाभारत कालीन राजा जरासंध की।

जरासंध कंस का ससुर था और उसका वध पांडु पुत्र भीम ने किया था।

कहा जाता है कि मगध देश के राजा जरासंध ने अलग-अलग हिस्सों में दो मांओं की कोख से जन्म लिया था और राक्षसी जरा ने अपनी माया से उसे एक शरीर प्रदान किया था। इसलिए उसका नाम जरासंध कहलाया। जरासंध बहुत ही क्रूर प्रवृत्ति का था।

वह शिव भक्त था और खुद को चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहता था। उसने तय किया था कि 100 राजाओं को युद्ध में हरा कर उनकी एक साथ बलि देगा। जिसके बाद दुनिया पर केवल उसे ही राजधिराज मना जाएगा।

जरासंध ने अपनी योजना को पूरा करते हुए करीब 86 राजाओं को परास्त किया और उन्हें पहाड़ी किले में कैद कर लिया। इसके साथ ही उसने हारे हुए राजाओं के राज्य के खजाने लूट लिए। उन्हें विभारगिरि पर्वत की तलहटी में सुरक्षित रख लिया। इसके पहले कि वह 100 राजाओं की बलि दे पाता। पांडवों ने उसे युद्ध के लिए ललकारा।

जरासंध ने भीम के साथ बिना किसी अस्त्र के कुश्ती लड़ना स्वीकार किया। दोनों के बीच 13 दिनों तक लगतार कुश्ती होती रही। 14वें दिन श्री कृष्ण का इशारा करने पर भीम ने जरासंध की शरीर के दो टुकड़े कर दिए और उसकी मृत्यु हो गई।

इसके बाद सभी बंदी राजाओं को छुड़वा लिया गया। उन सभी ने युधिष्ठिर को अपना राजा स्वीकार किया। पर वे यह कभी नहीं जान पाए कि जरासंध ने उनके खजाने के साथ क्या किया?

इस प्रकार वह खजाना गुफाओं में ही दबा रह गया।

यूं पहुंचा जा सकता है राजगीर 

सड़क मार्ग
राजगीर जाने के लिए पटना, गया एवं दिल्ली से बस सेवा उपलब्ध है। इसमें बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम अपने पटना स्थित कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है। इसके जरिए आप आसानी से राजगीर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग
रेलमार्ग के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा यात्रियों के लिए उपलब्ध है, जहां यात्री आसानी से राजगीर पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग
यहां पर वायुमार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पटना है, जो करीब 107 किमी की दूरी पर है। 

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