रविवार, 1 दिसंबर 2019

शांगरी-ला घाटी (Shangri La Valley)


रहस्यमयी शांगरी ला / शांग्री-ला घाटी | Mysterious Shangri La Ghati

भारत में बहुत सी ऐसी जगह है जो आजतक रहस्मयी बनी हुई है। इन जगहों की रहस्मयी कहानियों को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों ने काफी गहन शोधन किया है। वैज्ञानिकों के गहन शोधन के बाद साइंस की दुनिया में एक ऐसी रहस्मयी जगह के बारे में पता लगाया है जिसके राज से पर्दा उठते ही आम लोगों की रूह तक कांप गई।

दरअसल, वैज्ञानिकों ने एक ऐसी घाटी की पता लगाया है जिसे आज तक कोई नहीं ढूंढ पाया है। यह घाटी भारत और तिब्बत की सीमा पर बताई जाती है। इसके बारे में कहा जाता है कि इस घाटी का संबंध पृथ्वी से बाहर ब्रह्मांड की किसी और दुनिया से है या वह दूसरी दुनिया का दरवाजा है। लोगों का कहना है कि इस घाटी में जाने के बाद इंसान टाइम ट्रैवल (Time Travel) में पहुंच जाता है।

हमने कई बार सुना है की हिमालय में आज भी एक ऐसी जगह है जो आमजन से बिलकुल परे है और सामान्य इंसान वहां तक पहुँच नहीं सकता सिर्फ 3 तत्वो से युक्त शरीर या कोई योगी और सिद्ध ही वहां तक पहुँच सकता है।

नहीं लगा पाया कोई भी पता - कहां है शांगरीला घाटी?

वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट के अनुसार यह घाटी भारत के सीमावर्ती इलाके में उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत की सीमा पर कहीं पर हैं। इस घाटी को लोग 'शांगरी-ला घाटी' (Shangri La Valley) के साथ साथ ‘शंभाला‘, 'ज्ञानगंज मठ' और ‘सिद्धआश्रम‘ भी कहा जाता है। इस घाटी को आज तक किसी ने भी नहीं देखा है। लेकिन जो भी इसे देखता है वह किसी को इस बारे में बताने के लिए वापस नही आ पाता। वहीं युत्सुंग लामा द्वारा ये दावा किया गया है कि वह शांगरी-ला घाटी में जा चुके हैं।

रहस्यमयी होने के कारण इस घाटी को लेकर बड़े-बड़े विद्वानों का कहना है कि यहां भू-हीनता और वायु-शून्यता का प्रभाव बना रहता है। यानी इस घाटी की गिनती वायुमंडल के चौथे आयाम यानी समय से प्रभावित जगहों में होती है। माना जाता है इन जगहों पर जाकर वस्तु या व्यक्ति का अस्तित्व दुनिया से गायब हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि शांगरी-ला घाटी का सीधा संबंध दूसरी दुनिया से है। इसके साथ ही इसके बारे में यह भी कहा जाता हैं कि यहां समय थम सा जाता है। इसलिए आज भी इस घाटी के ऊपर से हवाई जहाज उड़ाने से परहेज किया जाता हैं। इस कारण यहां के लोग जब तक चाहें जिंदा (अनंत काल तक जीवित) रह सकते हैं।

इस जगह का क्या महत्व है?

विभिन्न रहस्यमय परंपराओं में यह स्थान अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि यह एक पवित्र स्थान है, जहाँ दिव्य ज्ञान संरक्षित है और पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है। यदि रिपोर्टों की माने तो, दुनिया भर से आध्यात्मिक साधक इस स्थान पर आते हैं, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो आत्मज्ञान या कालातीत ज्ञान का अनुभव करना या उसकी झलक देखना चाहते हैं।

ज्ञानगंज की भौगोलिक स्थिति क्या है?

आधुनिक समय में ज्ञानगंज तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के निकट स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस जगह पर एक आश्रम है, जिसका निर्माण विश्वकर्मा जी ने की है। कहा जाता है कि सैकड़ों ऋषिगण हजारों वर्षों से ध्यान करते देखे जा सकते हैं। इस स्थान के बारे में सर्वप्रथम स्वामी विशुद्धानंद परमहंस ने लोगों को जानकारी दी थी। शांग्री-ला एक तिब्बती शब्द है। जो शैंग माउंटेन पास से मिलता जुलता है। इसलिए ऐसा लगता है कि यह जगह कुनलुन शैंग माउंटेन की घाटियों में कहीं स्थित है। शांग्रीला घाटी का अनुमानित एरिया 10 वर्ग किलोमीटर है। भारत की सीमा की तरफ से लंपियाधुरा पास शांग्री-ला घाटी तक पहुंचने का मार्ग है। यह कैलाश मानसरोवर जाने का प्राचीनतम लेकिन बेहद दुर्गम रास्ता है। 1962 भारत चीन युद्ध के बाद लंपियाधुरा का रास्ता लगभग बंद हो गया है। प्राचीन काल में कैलाश मानसरोवर जाने वाले साधु संत उत्तराखंड के धारचूला से होते हुए गूंजी, कुंटी और पार्वती ताल होते हुए कैलाश मानसरोवर जाने के लिए लगभग 18000 फुट की ऊंचाई चढ़कर लंपियाधुरा पास पहुंचते थे। यहां से 1500 फुट नीचे कैलाश मानसरोवर की जड़ में ही शांग्री-ला घाटी यानी ज्ञानगंज की अनुमानित स्थिति मानी जाती है। लेकिन चौथे आयाम में होने की वजह से यह आम लोगों की निगाहों से परे माना जाता है।

तंत्र मंत्र के कई जाने माने साधकों ने अपनी किताबों में इसका जिक्र किया है। जिसमें सबसे प्रमुख हैं पद्म विभूषण और साहित्य अकादमी से नवाजे गए और गर्वनमेंट संस्कृत कॉलेज वाराणसी के प्राचार्य रहे डॉ. गोपीनाथ कविराज। उन्होंने अपनी किताब में इस जगह का जिक्र किया है।

वाराणसी के तंत्र साहित्य लेखक और विद्वान अरुण कुमार शर्मा की किताब 'तिब्बत की वह रहस्यमय घाटी' (That Mysterious Valley of Tibet) में भी इस जगह का विस्तार से जिक्र किया गया है। लेखक बताते हैं कि युत्सुंग नाम के एक लामा ने उन्हें बताया कि शांगरी-ला घाटी में काल का प्रभाव नगण्य (बहुत कम) है और यहां मन, प्राण और विचार की शक्ति की सीमा कई गुना बढ़ जाती है। अगर कोई वस्तु या व्यक्ति अनजाने में भी वहां पहुंच जाए तो वह इस दुनिया में वापस कभी नहीं लौट पाता है।

जेम्स हिल्टन (James Hilton) ने अपनी पुस्तक 'लॉस्ट हॉरिजोन' (Lost Horizon) में इस रहस्यमय घाटी के बारे में कहा, वहां लोग सैकड़ों बरसों तक जीवित रहते हैं। मगर उनके द्वारा इस घाटी को एक काल्पनिक घाटी करार दिया गया है।

तिब्बत के तवांग मठ के पुस्तकालय में रखी तिब्बती भाषा में लिखी किताब 'काल विज्ञान' में भी इस रहस्यमय घाटी का जिक्र है। जिसमें लिखा है कि इस तीन आयाम वाली दुनिया की हर चीज़ देश, काल और निमित्त से बंधी है लेकिन इस घाटी में समय यानी काल का कोई असर नहीं दिखाई देता। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि यहां रहने वाले योगियों की प्राण, मन के विचार की शक्ति, शारीरिक क्षमता और मानसिक चेतना इतनी बढ़ जाती है कि वो हजारों वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

रहस्यमयी रोशनी का है घर

आध्यात्म क्षेत्र, तंत्र साधना या तंत्र ज्ञान से जुड़े लोगों के लिए यह घाटी भारत के साथ-साथ विश्व में मशहूर है। युत्सुंग के अनुसार इस घाटी का संबंध अंतरिक्ष के किसी लोक से है।

Shangri La Ghati में real life experience

तिब्बती साधक विद्वान युत्सुंग का कहना है कि वो खुद इस रहस्यमय घाटी में जा चुके हैं। वह बौद्ध साधना से जुड़े एक खास शख्सियत कहे जाते हैं। उनके अनुभव के अनुसार जब उसने संग्रीला घाटी में प्रवेश किया तब वहां पर ना सूर्य का प्रकाश ना चंद्रमा की लालिमा। वहां पर वातावरण में एक दूधिया प्रकाश फैला हुआ है जिसके बारे में कोई नहीं जानता है। ऐसा लगता है जैसे इस घाटी में किसी दूसरी दुनिया से रौशनी आ रही है।

मेने वहां पर लामा (तिब्बती साधु) के साथ जब प्रवेश किया तब वहां पर मुझे एक दिव्य प्रकाश की अनुभूति हुई और अचानक ही दर्जनों युवतियां प्रकट हो गई।

उनकी उम्र जैसे थम ही गई थी। सभी के चहरे अपूर्व तेज से दमक रहे थे और एक विलक्षण शांति छाई थी वहां पर “युवतियों के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि वे किसी के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। मेरा अनुमान गलत नहीं था। थोड़ी ही देर बाद देखा की एक तेज पुंज सहसा वहां प्रकट हुआ। अद्भुत था वह प्रकाश पुंज! प्रकाश पुंज धीरे धीरे आश्रम के भीतर के ओर जाने लगा। युवतियां भी उसके पीछे पीछे चलने लगीं। मेरे उस लामा से पूछने पर उसने बताया कि यह आत्म शरीर है। योगियों का आत्म शरीर ऐसा ही होता है। ये युवतियां योग कन्यायें हैं। कई जन्मों की साधना के बाद इन्होंने इस दिव्य अवस्था को प्राप्त किया है। योग में इसी को कैवल्य अवस्था कहते हैं। ये सब भी आत्म शरीर धारिणी हैं। लेकिन विशेष अवसर के कारण इन्होंने भौतिक देह की रचना कर ली है।”

आत्म शरीर को उपलब्ध योगत्माएँ इच्छा अनुसार कभी भी भौतिक देह की रचना कर सकती हैं। ये था उस योगी का अनुभव जिसने वहांपर प्रवेश किया। माना जाता है की सभी दिव्य, उच्च श्रेणी के संत और योगी अपनी उम्र जीने के बाद संग्रीला घाटी में प्रवेश करते है। हम अग्नि त्राटक के बाद सिद्धाश्रम / संग्रीला घाटी में प्रवेश कर पाने योग्य बन जाते है।

संग्रीला घाटी का रहस्य क्या है सिधाश्रम

सिद्धाश्रम के बारे में हम सबने प्राचीन सिद्धियों के किस्सो में जरूर सुना होगा। ऐसा कहा जाता है की अपना जीवन पूरा होने के बाद सिद्ध योगी और ऋषि अपना शेष जीवन (जब तक उन्हें मोक्ष या लक्ष्य न मिल जाता) वह बिताते है।

वो कभी भी वहां से भौतिक संसार में विचरण कर सकते है। एक दिव्य संसार जहा कोई दुःख नहीं कोई चिंता नहीं उम्र का कोई पड़ाव नहीं है तो चारो तरफ बस शांति और दिव्यता जिसमे हम अपने आप को ज्यादा से ज्यादा दिव्य बनाते है।

Shangri la ghati का secret आमजन से है बिलकुल छुपा हुआ

जिस प्रकार वायु मंडल में बहुत से स्थान हैं जहाँ वायु शून्यता रहती है, उसी प्रकार इस धरती पर अनेक ऐसे स्थान है जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। भू हीनता और वायु शून्यता वाले स्थान चौथे आयाम से प्रभावित होते हैं। ऐसे स्थान देश और काल से परे होते हैं। यदि उनमें कोई वस्तु या व्यक्ति अनजाने में चला जाय तो इस तीन आयाम वाले स्थूल जगत में उसका अस्तित्व लुप्त हो जाता है। वह वस्तु इस दुनिया से गायब हो जाती है।

ऐसी ही तिब्बत और अरुणांचल की सीमा स्थित shangri la ghati है। लेकिन भू हीनता और fourth dimension से प्रभावित होने के कारण वह घाटी अभी तक रहस्यमयी बनी हुई है। वह इन चर्म चक्षुओं से दिखाई नहीं देती है।

काल की नगण्यता के फलस्वरूप वहां आयु अति धीमी गति से बढ़ती है। यदि किसी व्यक्ति ने उसमे 25 वर्ष की उम्र में प्रवेश किया है तो उसका शरीर लंबे समय तक युवा बना रहेगा। स्वर्गीय वातावरण में डूबी हुई यह घाटी एक कालंजयी की इच्छा सृष्टि है।

जो लोग इस घाटी के बारे में जानते है, वो कहते है की प्रसिद्ध योगी “श्यामचरण लाहिरी”जी के गुरु “महावतार बाबा” जिन्होंने आदि शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी, वो शांगरी ला घाटी के किसी सिद्धआश्रम में अभी भी निवास कर रहे है। जब कभी आकाश मार्ग से चल कर अपने शिष्यों को दर्शन भी देते हैं।

shangri la ghati के साधना केंद्र और तीन मठो का अस्तित्व

युत्सुंग ने अरुण शर्मा को बताया कि वहां एक ओर मठों, आश्रमों और विभिन्न आकृतियों के मंदिर थे और दूसरी ओर दूर तक फैली हुई शांगरी-ला की सुनसान घाटी।

यहाँ के तीन साधना केंद्र प्रसिद्द हैं। पहला है -“ज्ञानगंज मठ”, दूसरा है -“सिद्ध विज्ञान आश्रम” और तीसरा है -” योग सिद्धाश्रम”। कहा जाता है कि यह स्थान सिद्ध योगी और साधुओं का घर है। जहा पर उच्च श्रेणी के सभी संत आज भी तपस्या रत है। यहाँ पर दीर्घजीवी, कालंजयी योगी अपने आत्म शरीर से निवास करते हैं। सूक्ष्म शरीर से विचरण करते हैं और कभी कदा स्थूल शरीर भी धारण कर लेते हैं। स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस जो सूर्य विज्ञान में पारंगत थे ज्ञानगंज मठ से जुड़े हुए थे।

इस संग्रीला घाटी में रहने वाले योगी आचार्य गण संसार के योग्य शिष्यों को खोज खोज कर इस घाटी में लाते हैं और उन्हें दीक्षा देकर पारंगत बना कर फिर इसी संसार में ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए भेज देते हैं।

इन तीनों आश्रमों के आलावा वहाँ तंत्र के भी अनेक केंद्र हैं जहाँ उच्च कोटि के कापालिक और शाक्त साधक निवास करते हैं। इसी प्रकार बौद्ध लामाओं के भी वहां मठ हैं। उनमें रहने वाले साधक स्थूल जगत के निवासियों से अपने को गुप्त रखे हुए हैं।

शांगरी-ला घाटी को पृथ्वी का आध्यात्मिक नियंत्रण केंद्र भी कहा जाता है। क्योंकि यह बौद्धों का तपोवन था। इसलिए शांगरी-ला घाटी को सिद्धाश्रम भी कहा जाता है, जिसके बारे में हिंदू धर्म ग्रंथों महाभारत से लेकर वाल्मिकी रामायण और वेदों में भी किया गया है। हिंदू धर्म में इसका सिद्धाश्रम नाम से उल्लेख मिलता है।

शम्भाला (बौद्ध धर्म के अनुसार) -

यदि हम बौद्ध धर्म की बात करें तो बुद्धिस्ट ऐसा मानते हैं कि भगवान बुद्ध ने अपने आखिरी दिनों में कालचक्र के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने कई लोगों को इसके बारे में बताया भी था, इनमें से एक थे राजा सुचंद्र। राजा जब इस ज्ञान को प्राप्त कर वापस अपने राज्य में आए तभी से तिब्बत में उस स्थान को शंभाला कहा जाने लगा। शंभाला का मतलब है ‘खुशियों का स्रोत’। बौद्धों का मानना ​​​​है कि शम्बाला दुनिया की गुप्त आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा करती है। इस पौराणिक भूमि तक पहुंचने के निर्देश कुछ पुराने बौद्ध धर्मग्रंथों में दिए गए हैं, हालांकि, निर्देश अस्पष्ट हैं। बौद्ध भी मानते हैं कि ज्ञानगंज मृत्यु के नियमों की अवहेलना करता है। इस अमर भूमि में किसी की मृत्यु नहीं होती और चेतना सदैव जीवित रहती है।

ज्ञानगंज मठ कल्पना या रहस्य -

प्राचीन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार ज्ञानगंज आठ पंखुड़ियों वाले कमल की संरचना जैसा दिखता है। यह बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। जीवन का वृक्ष जो स्वर्ग, पृथ्वी और अधोलोक को जोड़ता है, उसके केंद्र में खड़ा है। जिन लोगों ने ज्ञानगंज या शंभला को देखा है, उनके लिए यह झिलमिलाता शहर है। इसके रहने वाले अमर हैं जो दुनिया के भाग्य का मार्गदर्शन करने के लिए जिम्मेदार हैं।इस रहस्यमय राज्य के भीतर रहते हुए वे सभी धर्मों और विश्वासों की आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा और पोषण करते हैं। दूसरों के प्रति अपनी बुद्धिमत्ता का पालन करते हुए वे अच्छे के लिए मानव जाति की नियति को प्रभावित करने का काम करते हैं। तिब्बती बौद्धों का मानना ​​है कि दुनिया में अराजकता की जब अति हो जाएगी तब इस विशेष भूमि के 25 वें शासक पृथ्वी को बेहतर युग के लिए मार्गदर्शन करते दिखाई देंगे।

घाटी का पता लगाने वाले ही खो गए

शांगरी-ला घाटी (shangri la valley) के बारे में बताया जाता है कि इसे जो भी खोजने की कोशिश करता वह लौटकर वापस ही नहीं आ पता है।

संग्रीला घाटी का रहस्य हमारे धरती पर ही स्थित है भारत और तिब्बत के मध्य एक गुप्त स्थान है जहाँ पर आज भी सभी दिव्य जड़ी बूटिया विद्यमान है। प्राचीन काल में जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तब श्री हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लायी गई थी वो भी संग्रीला घाटी का ही एक भाग था इस हिसाब से अनुमान लगा सकते है की ये हिमालय का ही एक भाग है जो वर्तमान में तिब्बत और भारत की सीमा पर है।

दरअसल, अरुणाचल और तिब्बत की सीमा पर जो पहाड़ियां या घाटी हैं वहीं कहीं शांगरीला घाटी भी है, लेकिन उसकी सही लोकेशन किसी को नहीं पता है। कहा जाता है कि चीनी सेना ने इस घाटी की सही लोकेशन तलाशने के लिए सब कुछ कर लिया लेकिन उसे आज तक इसका सही लोकेशन नहीं पता चल सका। माना जाता है कि चीन की सेना एक लामा का पीछा करते हुए इस घाटी तक आई लेकिन शांगरी ला का पता नहीं लगा सकी. इसके साथ ही कई विदेशियों ने भी इसको खोजने का प्रयास किया, लेकिन आज तक कोई सफल नहीं हुआ। बल्कि कई लोग इसे ढूंढते हुए गायब जरूर हो गए।

शांगरी-ला झील के ही पास है ये घाटी

रहस्यमयी शांगरी-ला घाटी के इस इलाके को पंगासाऊ भी कहा जाता है, शांगरी-ला झील के पास कहीं है। ये म्यांमार की सीमा के करीब है। शांगरी-ला की झील की चौड़ाई को लेकर कहा जाता है कि ये करीब 1.5 किलोमीटर है। हालांकि, सही मायनों अब तक इसकी सही चौड़ाई का कोई पता नहीं लगा पाया। प्राचीन समय में ये झील 2.5 किलोमीटर लंबी थी, जो स्तीलवेल रोड से शुरू होती थी, अब उसे लेदो रोड के नाम से जानते हैं।

शांगरी-ला घाटी में आकर वापस नहीं लौटने की एक बड़ी कहानी भी कही जाती है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक अमेरिकी विमान को यहां आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी, वो भी रात के समय, क्योंकि उन्हें ये इलाका सपाट लगा था, लेकिन इसमें बहुत से विमान के लोग मारे गए। तभी से इसे ऐसी झील कहा जाने लगा जहां जाने के बाद कोई लौटता नहीं।

तंगसा ट्राइब्स रहती है इस इलाके के करीब

इस इलाक के पास सदियों से तंगसा ट्राइब्स रहती है। इस ट्राइब के लोगों की मानें तो इस झील के आसपास से हमेशा आधी रात के समय अजीब अजीब सी आवाजें आती हैं। कुछ लोगों का अंदाज है कि ये झील रहस्यमय भूचूंबकीय तरंगों से बंधी है, जिससे यहां की फोटोएं भी नहीं ली जा पातीं।

बरमूडा ट्रायंगल  (Bermuda Triangle) की तरह ही रहस्यमयी

बरमूडा एक ब्रिटिश उपनिवेश है, इसके आसपास के इलाकों में सैकड़ों जहाज डूबे माने जाते हैं। ये नार्थ अटलांटिक महासागर का वो हिस्सा है, जिसमें ढेरों रहस्य भरे पड़े हैं। यहां जाने वाले जहाजों के अलावा इसकी सीमा में जाने वाले हवाई जहाज भी एकाएक गायब हो जाते हैं।

इस घाटी को भी संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर मियामी (फ्लोरिडा) से सिर्फ 1770 किलोमीटर और हैलिफैक्स, नोवा स्कोटिया, (कनाडा) के दक्षिण में 1350 किलोमीटर (840 मील) की दूरी पर स्थित बरमूडा ट्रायंगल (bermuda triangle) की तरह ही रहस्यमयी बताया गया है। जिस तरह इंसान कई दशकों तक बरमूडा ट्राएंगल (bermuda triangle) का रहस्य किसी को समझ नही आया था, उसी तरह ही इसे भी दुनिया की सबसे रहस्यपूर्ण जगह माना जाता है। बरमूडा ट्राएंगल (bermuda triangle), नार्थ अटलांटिक महासागर में वो जगह है, जहां से गुजरने वाले हवाई जहाज और पानी के जहाज गायब हो जाया करते थे।

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