गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

बाबे-दी-बेर गुरूद्वारा, पाकिस्तान

बाबे-दी-बेर गुरूद्वारा, सियालकोट

पाकिस्तान ने 500 साल पुराना गुरुद्वारा भारतीय सिखों के लिए खोला

पाकिस्तान ने पंजाब प्रांत के सियालकोट में स्थित 500 साल पुराने गुरुद्वारे को भारतीय सिख श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया है। यह लाहौर से 140 किलोमीटर दूर स्थित है। इससे पहले भारतीय सिख बाबे-दे-बेर गुरुद्वारे में दर्शन नहीं कर सकते थे। एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में ऐसे कई गुरुद्वारे हैं, जहां भारत समेत दुनियाभर के सिख श्रद्धालु हर साल दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

पाकिस्तान के अलावा यूरोप, कनाडा और अमेरिकी सिखों को बाबे-दे-बेर गुरुद्वारे में जाने की इजाजत थी। अब भारतीय सिख श्रद्धालु भी इस गुरुद्वारे में दर्शन कर सकेंगे। पंजाब प्रांत के गवर्नर मोहम्मद सरवर ने राज्य सरकार के औकफ विभाग को भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को भी इस गुरुद्वारे में दर्शन करने की इजाजत देने का निर्देश दिया था। 

हर साल सिख श्रद्धालु करते हैं दर्शन

पाकिस्तान में सिख धर्म से जुड़े कई तीर्थस्थल हैं जहां भारत समेत दुनिया भर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां आते हैं। बता दें कि हर साल हजारों भारतीय सिख श्रद्धालु गुरु नानक की जयंती और उनकी पुण्यतिथि पर पाकिस्तान आते हैं।

बेर का पेड़ आज भी मौजूद

गुरुद्वारा बेर साहिब को बाबा बेरी या बाबा बेर भी कहते हैं। उन्होंने सियालकोट के मशहूर संत हमजा गौस से मुलाकात की थी। यहां आज भी उस वक्त का विशाल बेर का पेड़ मौजूद है। यहां बड़ा बगीचा, फूल, कुआं और रहने के लिए कमरे भी हैं। इस गुरुद्वारे को बाबरी मस्जिद विवाद के बाद आंशिक रूप से नुकसान भी पहुंचाया गया था।

16वीं सदी में सरदार नत्था सिंह ने बनवाया था गुरुद्वारा

उल्लेखनीय है कि सिख परंपरानुसार सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानकदेव जब 16वीं शताब्दी (संवत 1561) में कश्मीर से सियालकोट गये थे, तब वह वहाँ एक बेरी के वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिये रुके थे। यहाँ उन्होंने अपने एक शिष्य को जीवन के बारे में महत्वपूर्ण शिक्षा देने के लिये उसे 2 पैसे देकर एक पैसे का सत्य और एक पैसे का झूठ खरीदने के लिये भेजा था। शिष्य एक खत्री की दुकान पर गया, यह खत्री भी गुरु नानक का ही शिष्य था। जब नानकदेव के शिष्य ने खत्री को पैसे देकर एक पैसे का सत्य और एक पैसे का झूठ देने के लिये कहा तो खत्री ने उससे पूछा कि यह सत्य और झूठ खरीदने के लिये किसने भेजा है ? नानकदेव के शिष्य ने जब खत्री को बताया कि उसके गुरु नानकदेव वहाँ आए हुए हैं और बेरी के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे हैं, उन्होंने ही उसे यह खरीदने के लिये भेजा है तो खत्री समझ गया। उसने दो अलग-अलग कागज़ लिये और एक कागज पर लिखा ‘जीवन झूठ है’ तथा दूसरे कागज़ पर लिखा ‘मृत्यु सत्य है।’ दोनों कागज़ शिष्य को देकर कहा कि यह लो एक सत्य है और झूठ है। शिष्य ने जब दोनों कागज़ पढ़े तो उसे गुरुदेव की वाणी का तत्वार्थ ज्ञात हुआ और उसे जीवन-मृत्यु के सत्य का बोध हो गया। इसके बाद उसी शिष्य ने गुरुनानक की स्मृति में उस बेरी के वृक्ष के समीप बाबे दी बेर गुरुद्वारे का निर्माण कराया। गुरु नानकदेव के इस शिष्य का नाम था सरदार नत्था सिंह। सरदार नत्था सिंह का उद्देश्य था कि इस गुरुद्वारे में आकर अन्य लोग भी सत्य का दर्शन करें।

विभाजन के बाद से भारतीयों के लिये बंद था गुरुद्वारा

1947 में भारत का विभाजन होने के बाद पाकिस्तान का निर्माण हुआ और यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया । विभाजन के दौरान दोनों देशों के लोगों के बीच हुए गदर के कारण पाकिस्तान ने भारतीयों के लिये इस गुरुद्वारे के द्वार बंद कर दिये थे। देखभाल के अभाव में गुरुद्वारा खस्ताहाल हो गया था। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने पर पाकिस्तान में बसे सिख समुदाय के लोगों ने इस गुरुद्वारे की मरम्मत करवाई तथा धीरे-धीरे इसके अन्य भागों का भी निर्माण करवाया। अब यह गुरुद्वारा काफी बड़े भूखंड में फैला हुआ है और इसमें कई भाग भी निर्मित किये जा चुके हैं। धीरे-धीरे गुरुद्वारे की लोकप्रियता बढ़ती गई और पाकिस्तान ने देश-विदेश के सिख दर्शनार्थियों को आकर्षित करने के लिये उन्हें वीजा देना शुरू किया। अब यह भारतीय सिखों के लिये भी दर्शनार्थ उपलब्ध होने से भारतीय सिख समुदाय में भी खुशी की लहर दौड़ गई है।

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