चार धाम
हिंदू धर्म के अनुसार जो व्यक्ति चार धामों की यात्रा कर लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारतीय धर्मग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम यात्रा का अपना ही महत्व है। चार धाम की यात्रा सबसे पहले पूर्व में जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती हुई दक्षिण में स्थित रामेश्वरम मंदिर से पश्चिम में द्वारकाधीश मंदिर से हो कर उत्तर में बद्रीनाथ तीर्थ पर खत्म होती है।
रामेश्वरम मंदिर में स्वयं श्री राम ने दो ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की जिनमे से पहले को “रामलिंगम” और दूसरे को “वैश्वलिंगम” कहा जाता है । लिंग के रूप में इस मंदिर में मुख्य भगवान श्री रामनाथस्वामी को माना जाता है जो “वैष्णववाद” के प्रतीक हैं और फिर शिव को जो “शैववाद” के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं । इस प्रकार यह पवित्र स्थल वैष्णववाद और शैववाद के पवित्र संगम के रूप में विख्यात हुआ।
रामेश्वरम मंदिर के इतिहास, दर्शन पूजन और यात्रा के बारे में संपूर्ण जानकारी – All Information About Rameshwaram Temple
रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह मंदिर हिंदूओं का एक पवित्र मंदिर है और इसे सनातन धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है। रामेश्वरम की यात्रा करने से मनुष्य के समस्त पाप दूर हो जाते हैं। रामेश्वरम मंदिर को रामनाथ स्वामी मंदिर (Ramanathaswamy Temple) के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। जिस तरह से उत्तर भारत में काशी का महत्व है, ठीक उसी तरह दक्षिण भारत में रामेश्वरम का भी महत्व है। रामेश्वरम हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा है एवं शंख के आकार का द्वीप है। सदियों पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था लेकिन धीरे धीरे सागर की तेज लहरों से कटकर यह अलग हो गया, जिससे यह टापू चारों तरफ से पानी से घिर गया। बाद में एक जर्मन इंजीनियर ने रामेश्वरम को जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण किया था। रामेश्वरम को पुराणों में गंधमादन पर्वत कहा जाता है।
आज के समय में रामेश्वरम को धार्मिक स्थल के साथ-साथ पर्यटन के रूप में भी काफी विकसित किया गया है। यहां हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक आते हैं।
1. रामेश्वरम मंदिर का इतिहास – History Of Rameshwaram Temple
हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने श्रीलंका से लौटते समय देवों के देव महादेव (Lord Shiva) की इसी स्थान पर पूजा की थी। इन्हीं के नाम पर रामेश्वर मंदिर और रामेश्वर द्वीप का नाम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी देवी सीता के साथ रामेश्वरम के तट पर कदम रखकर ही भारत लौटे थे।
निर्माण काल
रामेश्वरम् से दक्षिण में कन्याकुमारी नामक प्रसिद्ध तीर्थ है। रत्नाकर कहलाने वाली बंगाल की खाडी यहीं पर हिंद महासागर से मिलती है। रामेश्वरम् और सेतु बहुत प्राचीन है। परंतु रामनाथ का मंदिर उतना पुराना नहीं है। दक्षिण के कुछ और मंदिर डेढ़-दो हजार साल पहले के बने है, जबकि रामनाथ के मंदिर को बने अभी कुल आठ सौ वर्ष से भी कम हुए है। इस मंदिर के बहुत से भाग पचास-साठ साल पहले के है।
रामनाथ के मंदिर में जो ताम्रपट है, उनसे पता चलता है कि 1173 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था। उस मंदिर में अकेले शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देवी की मूर्ति नहीं रखी गई थी, इस कारण वह नि:संगेश्वर का मंदिर कहलाया। यही मूल मंदिर आगे चलकर वर्तमान दशा को पहुंचा है।
आज से पांच सौ वर्ष पहले 15वीं शताब्दी में रामनाथपुरम् के राजा उडैयान सेतुपति एवं नागूर निवासी धनी वैश्य ने 1450 ई. में रामनाथ के मंदिर के 78 फीट ऊंचे गोपुरम के साथ सेतुमाधव मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में मदुरई के एक देवी-भक्त ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। फिर सोलहवीं शताब्दी में मंदिर के दक्षिणी में दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने कराया था। मंदिर के द्वार पर ही तिरुमलय एवं इनके पुत्र की मूर्ति विराजमान है। इसी शताब्दी (सोलहवीं) में मदुरै के राजा विश्वनाथ नायक के एक अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप का निर्माण करवाया था।
माना जाता है कि वर्तमान समय में रामेश्वरम मंदिर जिस रूप में मौजूद है, उसका निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में कराया गया था। जानकारों के अनुसार राजा किजहावन सेठुपति या रघुनाथ किलावन ने इस मंदिर के निर्माण कार्य की आज्ञा दी थी। मंदिर के निर्माण में सेठुपति साम्राज्य के जफ्फना राजा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है।
12वीं शताब्दी के दौरान पांड्या राजवंश के द्वारा मंदिर का विस्तार किया गया था, और इसके प्रमुख तीर्थस्थानों को जेयवेरा सिक्कायारीय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। राजा जेयावीरा किन्कैअरियन (1380-1410 CE) ने त्रिंकोमली के कोनेश्वरम मंदिर से पत्थरो को रामेश्वरम के पवित्र स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए भेजा था। इसके बाद जेयावीरा किन्कैअरियन के उत्तराधिकारी गुणवीरा किन्कैअरियन रामेश्वरम के ट्रस्टी थी और मंदिर के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
सत्रहवीं शताब्दी में दलवाय सेतुपति ने पूर्वी गोपुरम आरंभ किया। 18वीं शताब्दी में रविविजय सेतुपति ने देवी-देवताओं के शयन-गृह व एक मंडप बनवाया। बाद में मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने बाहरी परकोटे का निर्माण करवाया। 1897-1904 के बीच मध्य देवकोट्टई से एक परिवार ने 126 फीट ऊंचा नौ द्वार सहित पूर्वीगोपुरम निर्माण करवाया। इसी परिवार ने 1907-1925 में गर्भ-गृह की मरम्मत करवाई। बाद में इन्होंने 1947 में महाकुम्भाभिषेक भी करवाया।
2. रामेश्वरम मंदिर के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Rameswaram Temple
* यह मंदिर एक हाजर फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है। चालीस फुट ऊंचे दो पत्थरों पर इतनी ही बराबरी के एक लंबे पत्थर को लगाकर इसका निर्माण किया गया है जो दर्शकों के आकर्षण का केंद्र है।
* किवदंतियों के अनुसार रामेश्वर मंदिर परिसर के भीतर के सभी कुओं को भगवान राम ने अपने अमोघ बाणों से तैयार किया था। उन्होंने इन कुओं में कई तीर्थों का जल छोड़ा था।
* मान्यता है कि जो व्यक्ति ज्योतिर्लिंग पर पूरी श्रद्धा से गंगाजल चढ़ाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
* चूंकि भगवान राम से हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां शिव की पूजा की थी, इसलिए मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग की विधि विधान से पूजा करने से व्यक्ति ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।
* रामेश्वरम मंदिर के अंदर 22 तीर्थ हैं, जो अपने आप में प्रसिद्ध हैं। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम से जाना जाता है।
* वहां सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच मणि दर्शन कराया जाता है और मणि दर्शन में स्फटिक के शिवलिंग का दर्शन कराया जाता है।
3. रामेश्वरम मंदिर की स्थापत्य कला – Architecture Of Rameswaram Temple
रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा है। प्राकार में और मंदिर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है; परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है। इस मंदिर का निर्माण द्रविण स्थापत्य शैली में किया गया है। मंदिर में लिंगम (lingam) के रूप में प्रमुख देवता रामनाथस्वामी यानि शिव को माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में दो लिंग हैं, एक सीता द्वारा रेत से निर्मित जिन्हें कि मुख्य देवता माना जाता है और इन्हें रामलिंगम नाम दिया गया है। जबकि दूसरा लिंग हनुमान द्वारा कैलाश पर्वत से लाया गया, जिसे विश्वलिंगम के नाम से जाना जाता है। भगवान राम के आदेशानुसार हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग अर्थात् विश्वलिंगम की पूजा आज भी सबसे पहले की जाती है।
रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है। इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ। इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है। दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े-बड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है। प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मारो सैकड़ों तोरण-द्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है। इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है।
रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मीटर एवं पूर्व-पश्चिम 133 मीटर है। गलियारा अत्यंत कारीगरिपूर्ण है। जब धूप इस गलियारे में आती है तो इसकी पीली छंटा देखते ही बनती है। इसके परकोटे की चौड़ाई 6 मीटर एवं ऊंचाई 9 मीटर है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम 38.4 मीटर ऊंचा है।
रामनाथस्वामी मंदिर परिसर काफी विशाल है जो करीब 6 हैक्टेयर में बना है। यहां अनेक मंदिरों की उपस्थिति इसे धार्मिक स्वरूप प्रदान करती है। मंदिर के चारों और ऊंची दीवार एवं हर तरफ भव्य कलात्मक द्वार एवं गोपुरम बने हैं। मंदिर भारतीय निर्माण कला और शिल्प का बेहतरीन नमूना है।
रामनाथ के मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें। गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है। यह वास्तव में एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरूरी पत्थर नहीं निकल सकते। रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन के पत्थर लगे है, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है। रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है। कहते है, ये सब पत्थर लंका से लाये गये थे।
रामेश्वरम् के विशाल मंदिर को बनवाने और उसकी रक्षा करने में रामनाथपुरम् नामक छोटी रियासत के राजाओं का बड़ा हाथ रहा। अब तो यह रियासत तमिल नाडु राज्य में मिल गई हैं। रामनाथपुरम् के राजभवन में एक पुराना काला पत्थर रखा हुआ है। कहा जाता है, यह पत्थर राम ने केवटराज को राजतिलक के समय उसके चिह्न के रूप में दिया था। रामेश्वरम् की यात्रा करने वाले लोग इस काले पत्थर को देखने के लिए रामनाथपुरम् जाते है। रामनाथपुरम् रामेश्वरम् से लगभग तैंतीस मील दूर है।
रामनाथस्वामी मंदिर के परिसर में जिस प्रकार शिव की दो मूर्तियां हैं वैसे ही देवी पार्वती की भी दो अलग-अलग मूर्तियां स्थापित की गई हैं। देवी पार्वती की एक मूर्ति पर्वतवर्धिनी एवं दूसरी विशालाक्षी कही जाती हैं। विशालाक्षी मंदिर के गर्भगृह के निकट ही विभीषण द्वारा स्थापित 9 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। एक विशाल नंदी मंदिर भी है। नंदी मंडप 22 फीट लंबा, 12 फीट लंबा एवं 17 फीट ऊँचा है। मंदिर के पूर्वी द्वार के बाहर विशाल हनुमान जी की मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है। मंदिर में सेतुमाधव का कहा जाने वाला भगवान विष्णु का मंदिर भी प्रमुख है।
रास्ता
जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है। शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे। लेकिन 1480 ई में एक चक्रवाती तूफान ने इसे तोड़ दिया। बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया। अंग्रेजो के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ। उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था। एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल का एक सुंदर पुल बनवाया गया। इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है। यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था। इस स्थान पर दक्षिण से उत्तर की और हिंद महासागर का पानी बहता दिखाई देता है। उथले सागर एवं संकरे जलडमरूमध्य के कारण समुद्र में लहरे बहुत कम होती है। शांत बहाव को देखकर यात्रियों को ऐसा लगता है, मानो वह किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों।
सेतु का पौराणिक संदर्भ
पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत में भी श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। अनेक पुराणों में भी श्रीरामसेतु का विवरण आता है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे एडम्स ब्रिज के साथ-साथ राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इसी पुल को बाद में एडम्स ब्रिज का नाम मिला। यह सेतु तब पांच दिनों में ही बन गया था। इसकी लंबाई 100 योजन व चौड़ाई 10 योजन थी। इसे बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था।
कथा
रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारें में यह रोचक कहानी कही जाती है। सीताजी को छुड़ाने के लिए राम ने लंका पर चढ़ाई की थी। उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब राम सफलता न मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया। इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये। रावण भी मारा गया; और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे। इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था।
रावण भी साधारण राक्षस नहीं था। वह पुलस्त्य महर्षि का नाती था। चारों वेदों का जाननेवाला था और शिवजी का बड़ा भक्त। इस कारण राम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ।
रामेश्वरम मंदिर की दो मान्यताएं हैं। पहली यह कि पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलते हैं कि जब भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की तो विजय प्राप्त करने के लिये उन्होंनें समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद मिलने के साथ ही श्री राम ने अनुरोध किया कि वे जनकल्याण के लिये सदैव इस ज्योतिर्लिंग रुप में यहां निवास करें उनकी इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने की दूसरी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंनें गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया वहां पर ऋषि मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर ब्रह्महत्या (ब्राह्मण को मारने) का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है। इसके लिये भगवान श्री राम ने हनुमान से शिवलिंग लेकर आने की कही। हनुमान तुरंत कैलाश पर्वत (हिमालय) / काशी पर पहुंचे लेकिन वहां उन्हें भगवान शिव नजर नहीं आये अब हनुमान भगवान शिव के लिये तप करने लगे उधर मुहूर्त का समय बीता जा रहा था। अंतत: भगवान शिवशंकर ने हनुमान की पुकार को सुना और हनुमान ने भगवान शिव से आशीर्वाद सहित शिवलिंग प्राप्त किया लेकिन तब तक देर हो चुकी मुहूर्त निकल जाने के भय से माता सीता ने बालु से ही विधिवत रुप से शिवलिंग का निर्माण कर श्री राम को सौंप दिया जिसे उन्होंनें मुहूर्त के समय स्थापित किया। छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ कहलाता है।
जब हनुमान वहां पहुंचे तो देखा कि शिवलिंग तो पहले ही स्थापित हो चुका है इससे उन्हें बहुत बुरा लगा। श्री राम हनुमान की भावनाओं को समझ रहे थे उन्होंनें हनुमान को समझाया भी लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए तब श्री राम ने कहा कि स्थापित शिवलिंग को उखाड़ दो तो मैं इस शिवलिंग की स्थापना कर देता हूं। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हनुमान ऐसा न कर सके और अंतत: मूर्छित होकर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे होश में आने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो श्री राम ने हनुमान द्वारा लाये काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को भी नजदीक ही स्थापित किया और उसका नाम हनुमदीश्वर रखा।
ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है। इस प्रसंग का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता परन्तु यह तुलसी दास लिखित रामायण मौजूद है।
तीर्थ
रामेश्वरम् शहर और रामनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर इस टापू के उत्तर के छोर पर है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है, जहां हिंद महासागर से बंगाल की खाड़ी मिलती है। इसी स्थान को सेतुबंध कहते है। लोगों का विश्वास है कि श्रीराम ने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर जो सेतु बांधा था, वह इसी स्थान से आरंभ हुआ। इस कारण धनुष-कोटि का धार्मिक महत्व बहुत है। यही से कोलम्बो को जहाज जाते थे। अब यह स्थान चक्रवाती तूफान में बहकर समाप्त हो गया है।
गन्धमादन पर्वत
रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं।
रामेश्वरम् की यात्रा करनेवालों को हर जगह राम-कहानी की गूंज सुनाई देती है। रामेश्वरम् के विशाल टापू का चप्पा-चप्पा भूमि राम की कहानी से जुड़ी हुई है। किसी जगह पर राम ने सीता जी की प्यास बुझाने के लिए धनुष की नोंक से कुआं खोदा था, तो कहीं पर उन्होनें सेनानायकों से सलाह की थी। कहीं पर सीताजी ने अग्नि-प्रवेश किया था तो किसी अन्य स्थान पर श्रीराम ने जटाओं से मुक्ति पायी थी। ऐसी सैकड़ों कहानियां प्रचलित है। यहां राम-सेतु के निर्माण में लगे ऐसे पत्थर भी मिलते हैं, जो पानी पर तैरते हैं। मान्यता अनुसार नल-नील नामक दो वानरों ने उनको मिले वरदान के कारण जिस पाषाण शिला को छूआ, वो पानी पर तैरने लगी और सेतु के काम आयी। एक अन्य मतानुसार ये दोनों सेतु-विद्या जानते थे।
4. रामेश्वरम मंदिर में पूजा का समय – Pooja Timing Of Rameswaram Temple
रामेश्वरम मंदिर को सुबह पांच बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। श्रद्धालु पहले पहर में सुबह पांच बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक दर्शन पूजन कर सकते हैं। ठीक एक बजे मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद दूसरे पहर में शाम तीन बजे मंदिर दोबारा खोला जाता है। इस पहर में शाम तीन बजे से रात के नौ बजे तक दर्शन किया जा सकता है। आपको बता दें कि रामेश्वर मंदिर में होने वाली प्रत्येक पूजा का अलग अलग नाम है और ये पूजा अलग अलग समय पर होती है। इस पूजा का विशेष महत्व होता है इसलिए रामेश्वर मंदिर जाने वालों को इनमें जरूर शामिल होना चाहिए।
* तड़के सुबह पांच बजे मंदिर खुलने के बाद सबसे पहले पल्लीयाराई दीप आराधना (Palliyarai Deepa Arathana) नामक पूजा होती है।
* सुबह पांच बजकर दस मिनट पर स्पादिगलिंगा दीप आराधना (Spadigalinga Deepa Arathana) होती है।
* सुबह पांच बजकर पैंतालिस मिनट पर थिरुवनन्थाल दीप आराधना (Thiruvananthal Deepa Arathana),
* सुबह सात बजे विला पूजा (Vila Pooja), सुबह दस बजे कालासन्थी पूजा (Kalasanthi Pooja),
* दोपहर बारह बजे ऊचीकला पूजा (Uchikala Pooja), शाम छह बजे सयारात्चा पूजा (Sayaratcha Pooja),
* रात साढ़े आठ बजे अर्थजामा पूजा (Arthajama Pooja),
* रात आठ बजकर पैंतालीस मिनट पर पल्लीयाराई पूजा (Palliyarai Pooja) होती है।
मंदिर में नकद, सोने और चांदी के आभूषण चढ़ाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। इन वस्तुओं को चढ़ाने वाले श्रद्धालु का नाम मंदिर के खातों में दर्ज किया जाता है और उसे रसीद दी जाती है। इसके अलावा मंदिर में गंगाजल पीतल, तांबे या कांसे के बर्तन से ही चढ़ाने की अनुमति है। श्रद्धालुओं को टिन या लोहे के बर्तन में जल लेकर नहीं जाना चाहिए।
5. रामेश्वरम मंदिर के देखने योग्य प्रमुख फेस्टिवल – Rameshwaram Temple Festival To Be Seen
वैसे तो रामेश्वरम मंदिर के दर्शन के लिए किसी भी समय जाया जा सकता है लेकिन यदि आप मंदिर में मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहारों को भी देखना चाहते हैं तो आपको इन विशेष महीनों में ही रामेश्वरम मंदिर जाने की योजना बनानी चाहिए।
रामेश्वरम मंदिर में फरवरी-मार्च माह में महाशिवरात्रि फेस्टिवल अद्भुत तरीके से मनाया जाता है जो कुल 10 दिनों तक चलता है। अगर आप एक अनोखा महाशिवरात्रि फेस्टिवल देखना चाहते हैं तो, इस दौरान रामेश्वरम मंदिर जाने की प्लानिंग कर सकते हैं।
मई-जून के महीने में इस मंदिर में वसंतोत्सवम (Vasanthotsavam) नामक फेस्टिवल मनाया जाता है जो दस दिनों तक चलता है और वैशाख को खत्म होता है।
इसके अलावा थिरुक्कल्याणम (Thirukkalyanam) नामक फेस्टिवल भी रामेश्वरम मंदिर का एक बड़ा फेस्टिवल है जो 17 दिनों तक चलता है। इसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ जमा होती है।
शिव और पार्वती की प्रतिमाओं की प्रत्येक वर्ष शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर सोने और चांदी के वाहनों पर भगवान शिव और पार्वती को बैठाकर उनकी सवारी निकाली जाती है। वार्षिकोत्सव के मौके पर ज्योतिर्लिंग को श्वेत उत्तरीय और चांदी के त्रिपुंड से सजाया जाता है।
अन्य तीर्थ
देवी मंदिर
रामेश्वर के मंदिर में जिस प्रकार शिवजी की दो मूर्तियां है, उसी प्रकार देवी पार्वती की भी मूर्तियां अलग-अलग स्थापित की गई है। देवी की एक मूर्ति पर्वतवर्द्धिनी कहलाती है, दूसरी विशालाक्षी। मंदिर के पूर्व द्वार के बाहर हनुमान की एक विशाल मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है।
सेतु माधव
रामेश्वरम् का मंदिर है तो शिवजी का, परन्तु उसके अंदर कई अन्य मंदिर भी है। सेतुमाधव का कहलानेवाले भगवान विष्णु का मंदिर इनमें प्रमुख है।
बाईस कुण्ड
रामनाथ के मंदिर के अंदर और परिसर में अनेक पवित्र तीर्थ है। श्री रामेश्वर मंदिर के अंदर 24 कुँओं का निर्माण कराया गया है, जिन्हे प्रधान तीर्थ (जल कुण्ड) कहा जाता है। किंतु दो कुंड सूख गए हैं और अब बाइस शेष हैं। ये वास्तव में मीठे जल के अलग-अलग कुंए है। मंदिर के बाहर कई कुँए और भी है परन्तु उनका पानी खारा है। परन्तु मंदिर के अंदर के कुँओं का जल मीठा है। किसी में बहुत ठंडा, किसी में सामान्य और किसी में हल्का गर्म पानी होता है। मान्यता है कि इन कुंड तीर्थों में अलग अलग धातुएं मिली हैं, जिसके नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते हैं। बाइसवें कुंड में सभी इक्कीस कुंडों का मिला जुला पानी आता है। ऐसा माना जाता है कि यह कुँए भगवान राम के अमोघ बाणों से तैयार किए गए थे। उन्होंने अनेक तीर्थो से जल मंगा कर इनमें छोड़ा था, तभी इन्हे तीर्थ कहा जाता है। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं - गंगा, यमुना, गया, शंख, चक्र आदि।
‘कोटि तीर्थ’ जैसे एक दो तालाब भी है। इन तीर्थो में स्नान करना बड़ा फलदायक पाप-निवारक समझा जाता है। वैज्ञानिक का कहना है कि इन तीर्थो में अलग-अलग धातुएं मिली हुई है। इस कारण उनमें नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते है और नई ताकत आ जाती है। बाईसवें कुण्ड में पहले 21 का मिला-जुला जल आता है।
विल्लीरणि तीर्थ
रामेश्वरम् के मंदिर के बाहर भी दूर-दूर तक कई तीर्थ है। प्रत्येक तीर्थ के बारें में अलग-अलग कथाएं है। यहां से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है। यह गांव रेल मार्ग के किनारे हो बसा है। वहां स्टेशन के पास समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। समुद्र के खारे पानी बीच में से मीठा जल निकलता है, यह बड़े ही अचंभे की बात है। कहा जाता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी न था, इसलिए राम ने अपने धनुष की नोक से यह कुंड खोदा था।
एकांत राम
तंगचिडम स्टेशन के पास एक जीर्ण मंदिर है। उसे ‘एकांत’ राम का मंदिर कहते है। इस मंदिर के अब जीर्ण-शीर्ण अवशेष ही बाकी हैं। रामनवमी के पर्व पर यहां कुछ रौनक रहती है। बाकी दिनों में बिलकुल सूना रहता है। मंदिर के अंदर श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता की बहुत ही सुंदर मूर्तिया है। धुर्नधारी राम की एक मूर्ति ऐसी बनाई गई है, मानो वह हाथ मिलाते हुए कोई गंभीर बात कर रहे हो। दूसरी मूर्ति में राम सीताजी की ओर देखकर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे है। ये दोनों मूर्तियां बड़ी मनोरम है। यहां सागर में लहरें बिल्कुल नहीं आतीं, इसलिए एकदम शांत रहता है। शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है।
कोद्ण्ड स्वामि मंदिर
रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर से पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी का मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है।
सीता कुण्ड
रामेश्वरम् को घेरे हुए समुद्र में भी कई विशेष स्थान ऐसे बताये जाते है, जहां स्नान करना पाप-मोचक माना जाता है। रामनाथजी के मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने बना हुआ सीताकुंड इनमें मुख्य है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां सीताजी ने अपना सतीत्व सिद्व करने के लिए आग में प्रवेश किया था। सीताजी के ऐसा करते ही आग बुझ गई और अग्नि-कुंड से जल उमड़ आया। वही स्थान अब ‘सीताकुंड’ कहलाता है। यहां पर समुद्र का किनारा आधा गोलाकार है। सागर एकदम शांत है। उसमें लहरें बहुत कम उठती है। इस कारण देखने में वह एक तालाब-सा लगता है। यहां पर बिना किसी खतरें के स्नान किया जा सकता है। यहीं हनुमान कुंड में तैरते हुए पत्थर भी दिखाई देते हैं।
आदि-सेतु
रामेश्वरम् से सात मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे ‘दर्भशयनम्’ कहते है; यहीं पर राम ने पहले समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था। इस कारण यह स्थान आदि सेतु भी कहलाता है।
रामेश्वरम शहर
रामेश्वरम् के समुद्र में तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती है। कहीं-कहीं सफेद रंग का बड़ियास मूंगा भी मिलता है। रामेश्वरम् केवल धार्मिक महत्व का तीर्थ ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है। मद्रास से रेल-गाड़ी यात्रियों को करीब बाईस घंटे में रामेश्वरम् पहुंचा देती है। रास्ते में पामबन स्टेशन पर गाड़ी बदलनी पड़ती है।
अन्य दर्शनीय स्थल
* साक्षी विनायक
* सीताकुंड
* एकांतराम मंदिर
* अम्मन देवी मंदिर
* आदि सेतु
* नंदिकेश्वर
* विभीषण तीर्थ
* माधव कुंड
* हनुमान कुंड
* रामतीर्थ
* अमृतवाटिका
6. रामेश्वरम मंदिर के पास घूमने की जगह – Places To Visit Near Rameshwaram Temple
* इंदिरा गाँधी सेतु (Indira Gandhi Setu)
* अदम्स ब्रिज (Adams Bridge)
* पामबन ब्रिज (Pamban Bridge)
* अग्निथीर्थम (Agnitheertham)
* अरियामन बीच (Ariyaman beach)
7. रामेश्वरम मंदिर कैसे पहुंचें – How To Travel Rameshwaram Temple
मदुरै रामेश्वरम से 163 किलोमीटर की दूरी पर है जो रामेश्वरम का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। यदि आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो मदुरै के लिए मुंबई, बंगलूरू और चेन्नई से फ्लाइट पकड़ सकते हैं।
यदि आप रामेश्वरम, चेन्नई, मदुरै, कोयम्बटूर, त्रिचि, तंजावुर और अन्य महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुअा है।
इसके अलावा रामेश्वरम, मदुरै, कन्याकुमारी, चेन्नई और त्रिचि से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा है। आप सड़क मार्ग से भी बहुत आसानी से रामेश्वरम पहुंच सकते हैं। इसके अलावा पांडिचेरी और तंजावुर से मदुरै होते हुए रामेश्वरम जा सकते हैं। रामेश्वरम शहर पहुंचने के बाद रामेश्वरम मंदिर जाने के लिए आप जीप, आटोरिक्शा या साइकिल रिक्शा ले सकते हैं।
8. रामेश्वरम मंदिर का पता – Rameshwaram Temple Address
रामेश्वरम, तमिल नाडू - 623526, इंडिया
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