गुरुवार, 9 जनवरी 2020

बृहदेश्वर मंदिर, तमिलनाडु


बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple)

ऐतिहासिक दौर में, भारत में कुछ एेसे सांस्कृतिक क्षेत्र विकसित हुए जो सदियों तक समग्र विश्व के लोगों के आकर्षण का केंद्र बने रहे। इसी क्रममें, 1003-1010 ई. के बीच (केवल 5 वर्ष की अवधि में) चोल शासक प्रथम राजराज चोल (985-1012.ए.डी.) द्वारा निर्मित बृहदीश्वर मंदिर, चोल कला की बेहतरीन उपलब्धि के रूप में विख्यात है। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। महाराजा राजाराजा प्रथम भगवान शिव के परम भक्त थे जिस कारण उन्होंने अनेक शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था जिनमें से एक बृहदेश्वर मंदिर भी है। यहां इन्‍होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्‍वरम उडयार रखा है। इसकी कलात्मक उत्कृष्टता, वास्तु-कला, शिल्प-कला, चित्रकला, कांस्य मूर्तियाँ, प्रतिमाएँ और पूजा-पद्धति अनूठा है। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्‍काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्‍यक्तित्‍व की अपार महानता को दर्शाते हैं।

इसकी उत्कृष्ट कलात्मकता के कारण यूनेस्को ने सन् 1987 में इसे ‘महान जीवंत चोल मंदिरों’ के रुप में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। भगवान शिव को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है।

बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है।

यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह (13) मंजिलें भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है।) की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है।

यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।

ऐसे बनाया गया यह मंदिर
करीब 216 फीट की ऊंचाई वाले इस मंदिर को 130,000 टन ग्रेनाइट के पत्‍थरों से बनाया गया है। अधिकांशत: पत्‍थर के बड़े खण्‍ड इसमें इस्‍तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्‍ड आस पास उपलब्‍ध नहीं है। आश्‍चर्य की बात यह है कि तंजौर में आस-पास 60 किमी तक न कोई पहाड़ और न ही पत्‍थरों की कोई चट्टानें हैं। अब सवाल यह उठता है कि यह भारी-भरकम पत्‍थर यहां आए कहां से और कैसे लाए गए। कहते हैं यहां 3 हजार हाथियों की मदद से इन पत्‍थरों को यहां लाया गया था।

सीमेंट और गिट्टी नहीं
इन पत्‍थरों को जोड़ने में कोई सीमेंट, प्‍लास्‍टर, सरिया या फिर अन्‍य किसी वस्‍तु का प्रयोग नहीं किया गया है। बल्कि पत्‍थरों को पजल तकनीक से आपस में जोड़कर तैयार किया गया है। मंदिर का मजबूत आधार इस प्रकार से तैयार किया गया है कि हजार साल बाद भी इतना ऊंचा मंदिर आज भी एकदम सीधा खड़ा है।

मंदिर का विशालकाय गुंबद
मंदिर का गुंबद अपने आप में एक आश्‍चर्य है। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। उस जमाने में जब कोई क्रेन या लिफ्ट वगैरह नहीं थी, इतने विशाल पत्‍थर को कैसे स्‍थापित किया गया होगा।

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर विशाल आयताकार प्रांगण में स्थित है। मंदिर के पूर्व दिशा में स्थित दो व्यापक गोपुरम् से मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है।

मंदिर के विशाल प्रांगण में मंदिर का गर्भ-गृह, नंदी मंडप, सभामंडप तथा कई छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर की ओर अभिमुख स्तंभों से अलंकृत सभामंडप 16वीं सदी का है। सामने ही ऊँचा दीप स्तंभ है।

विशालकाय नंदी बैल भी
यहां भगवान शिव की सवारी कहलाने वाले नंदी बैल की भी विशालकाय प्रतिमा स्‍थापित है। नंदी मंडप में 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर (13 फीट) ऊंची लंबे ग्रेनाइट के एक खंड से उत्कीर्ण नंदी विराजमान हैं। यह भारतवर्ष का तीसरा सबसे बड़ा नंदी है।

मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है, जिसका आधार 64 वर्ग मीटर है। यहां स्थापित हैं मंदिर के प्रमुख देवता राजराजेश्वर। ग्रेनाइट से निर्मित विशालकाय लिंग लगभग 3.75 मीटर ऊँचा है। गर्भगृह के पूर्व की ओर स्तंभों से सुसज्जित लंबा सभागृह गलियारा और उसके पीछे अर्ध-मंडप स्थित हैं। गर्भगृह के ऊपर पिरामिड के आकार का बुर्ज है जिसकी ऊँचाई लगभग 66 मी. है। इसका शिखर आधार के आकार का ठीक एक तिहाई है। बुर्ज में प्लास्टर-युक्त दीवारें, प्राकार सहित 13 मंज़िलें हैं। गर्भगृह की दीवारें तीन-मंज़िला हैं। मंदिर की प्लास्टर-युक्त दीवारों को देवताओं और मकरों से सुसज्जित ऊँचे तहख़ाने पर उठाया गया है और साथ ही, मूल-स्थान, निर्माण आदि से संबंधित शिलालेखों से आच्छादित है। उत्तरी और दक्षिणी द्वारों तक पार्श्व में स्थित घुमावदार शिखर और अलंकृत पार्श्व पैनलों से सुसज्जित सीढ़ियों से पहुँचा जा सकता है। अर्धमंडप से मोटे तौर पर जुड़ा लंबा सभागार आंशिक रूप से निर्मित है। पूर्वी द्वार के पार्श्व में द्वारपालकों की मूर्तियाँ स्थापित हैं और अंदर की दीवारें 18वीं सदी के मराठा चित्रों से सुसज्जित हैं।

मुख्य मंदिर के चारों द्वारों पर दोनों तरफ़ गढ़ी हैं द्वारपालकों की मूर्तियाँ हैं तथा आलों में शिव की मूर्तियाँ, जिनमें लोकप्रिय हैं भिक्षाटनमूर्ति, नटेश, हरिहर और अर्धनारीश्वर। प्रमुख मंदिर के गर्भगृह में आडवल्लन यानी ‘वह जो अच्छा नर्तक हो’ कहलाने वाले शिव विराजमान हैं।

आस-पास गर्भ-गृह मौजूद है, जोकि दो कक्षों में विभाजित दो स्तर वाला मार्ग है। निचले दालान में नृत्य करने वाले विशाल शिव, दीवारों तथा छत पर दो परतीय राजपरिवार, दिव्य देवी-देवता की तस्वीरें तथा भित्ति चित्र शोभायमान हैं। ऊपरी दालान के तहख़ाने में विभिन्न मुद्राओं में 81 से अधिक सूक्ष्माकार नर्तकियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। बाहर, प्रांगण की दीवारें स्तंभ-श्रेणियों के गलियारों से रेखित हैं। उत्तरी दीवार का गलियारा भारत में सबसे लंबा माना जाता है।

मंदिर परिसर में, प्रमुख मंदिर के अलावा दक्षिण की ओर अभिमुख चण्डेश्वर मंदिर है। हालाँकि, मुख्य मंदिर के अनुपात में वह आकार में छोटा है और उसका बुर्ज अष्टकोणीय है। उत्तर-पश्चिमी दिशा में सुब्रह्मण्यम मंदिर है जिसका आधार नृत्यांगनाओं (जिनमें कुछ के हाथ में घड़े हैं) और संगीतज्ञों की मूर्तियों से सुसज्जित हैं। सभागार की दीवारों पर गणपति और दुर्गा को देखा जा सकता है और प्रस्तर की खिड़कियाँ ज्यामितीय डिज़ाइनों से अलंकृत है। तीन-मंज़िला मीनार का शिखर षड्कोणीय है।

पूर्व की ओर बृह्नायकी मंदिर है। इसकी विस्तृत सभागृह मराठा कालीन विस्तार है। सभागृह में देवताओं को प्रदर्शित करने वाले खंभे हैं। यहाँ दक्षिण स्थित द्वार-मंडप के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। छत के भीतरी हिस्से में शिव की किंवदंतियों का चित्रण किया गया है। समीप ही दक्षिण की ओर अभिमुख नटेश का मंदिर है।

तंजौर में अन्य दर्शनीय मंदिर हैं - तिरुवोरिर्युर, गंगैकोंडचोलपुरम तथा दारासुरम्‌।

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