मणिमहेश यात्रा - मणिमहेश झील - मणिमहेश कैलाश
हिमाचल प्रदेश के चंबा शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवान भोले मणि के रूप में दर्शन देते हैं। इसी कारण मणिमहेश कहा जाता है। धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है। हजारों साल से श्रद्धालु रोमांचक यात्रा पर आ रहे हैं। चंबा को शिवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं। मणिमहेश यात्रा कब शुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग विचार हैं, लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं। 13,500 फुट की ऊंचाई पर किसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है।
मणिमहेश झील
मणिमहेश झील (Manimahesh Lake) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के चम्बा ज़िले के भरमौर क्षेत्र में 4,080 मीटर (13,390 फ़ुट) की ऊँचाई पर स्थित एक पर्वतीय झील है। यह हिमालय की पीर पंजाल शृंखला में मणिमहेश पर्वत के चरणों में स्थित है। हिन्दू आस्था में तिब्बत की मानसरोवर झील के बाद इसे पवित्र झील माना जाता है।
वर्णन
वृहत संहिता में तीर्थ का बड़े ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया गया है। इसके अनुसार, "ईश्वर वहीं क्रीड़ा करते हैं जहां झीलों की गोद में कमल खिलते हों और सूर्य की किरणें उसके पत्तों के बीच से झांकती हो, जहां हंस कमल के फूलों के बीच क्रीड़ा करते हों। जहां प्राकृतिक सौंदर्य की अद्भुत छटा बिखरी पड़ी हो।' हिमालय पर्वत का दृश्य इससे भिन्न नहीं है। इसलिए इस पर्वत को ईश्वर का निवास स्थान भी कहा गया है। भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, 'पर्वतों में मैं हिमालय हूं।' यही वजह है कि हिंदू धर्म में हिमालय पर्वत को विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदुओं के पवीत्रतम नदी गंगा का उद्भव भी इसी हिमालय पर्वत से होता है।"
मणिमहेश-कैलाश की भौगोलिक स्थिति
शैवतीर्थ स्थल मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के भरमौर में है। मान्यता के अनुसार, 550 ईस्वी में भरमौर मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी था। मणिमहेश कैलाश के लिए भी बुद्धिल घाटी जो भरमौर का भाग है, से होकर जाना पड़ता है।
मणिमहेश यात्रा
जुलाई-अगस्त के दौरान पवित्र मणिमहेश झील हजारों तीर्थयात्रियों से भर जाता है। यहीं पर सात दिनों तक चलने वाले मेला का आयोजन भी किया जाता है। यह मेला जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। जिस तिथि को यह उत्सव समाप्त होता है उसी दिन भरमौर के प्रधान पूजारी मणिमहेश डल के लिए यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा के दौरान कैलाश चोटि (18,556) झील के निर्मल जल से सराबोर हो जाता है। कैलाश चोटि के ठीक नीचे से मणीमहेश गंगा का उदभव होता है। इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही खूबसूरत झरने के रूप में बाहर निकलती है। पवित्र झील की परिक्रमा (तीन बार) करने से पहले झील में स्नान करके संगमरमर से निर्मित भगवान शिव की चौमुख वाले मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। कैलाश पर्वत की चोटि पर चट्टान के आकार में बने शिवलिंग का इस यात्रा में पूजा की जाती है। अगर मौसम उपयुक्त रहता है तो तीर्थयात्री भगवान शिव के इस मूर्ति का दर्शन लाभ लेते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार कैलाश उनकी अनेक आपदाओं से रक्षा करता है, यही वजह है कि स्थानीय लोगों में महान कैलाश के लिए काफी श्रद्धा और विश्वास है। यात्रा शुरू होने से पहले गद्दी वाले अपने भेड़ों के साथ पहाड़ों पर चढ़ते हैं और रास्ते से अवरोधकों को यात्रियों के लिए हटाते हैं। ताकि यात्रा सुगम और कम कष्टप्रद हो। कैलाश चोटि के नीचे एक बहुत बड़ा हिमाच्छादित मैदान है जिसको भगवान शिव के क्रीड़ास्थल 'शिव का चौगान' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और देवी पार्वती क्रीड़ा करते हैं। वहीं झील के कुछ पहले जल का दो स्रोत है। इसको शिव क्रोत्रि और गौरि कुंड के नाम से जाना जाता है।
मणिमहेश्वर यात्रा मार्ग
श्रीकृष्णजन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) से श्रीराधाष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) तक लाखों श्रद्धालु पवित्र मणिमहेश झील में स्नान के बाद मणिमहेश्वर-कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। पहाड़ों, खड्डों नालों से होते हुए मणिमहेश झील तक पहुंचने का रास्ता रोमांच से भरपूर है। मणिमहेश यात्रा को अमरनाथ यात्रा के बराबर माना जाता है। जो लोग अमरनाथ नहीं जा पाते हैं वे मणिमहेश झील में पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं। अब मणिमहेश झील तक पहुंचना और भी आसान हो गया है। यात्रा के दौरान भरमौर से गौरीकुंड तक हेलीकॉप्टर की व्यवस्था है और जो लोग पैदल यात्रा करने के शौकीन हैं उनके लिए हड़सर, धनछो, सुंदरासी, गौरीकुंड और मणिमहेश झील के आसपास रहने के लिए टेंटों की व्यवस्था भी है।
हड़सर से पैदल यात्रा
हड़सर या हरसर नामक स्थान सड़क का अंतिम पड़ाव है। यहां से आगे पहाड़ी रास्तों परपैदल या घोड़े-खच्चरों की सवारी कर ही सफर तय होता है। चंबा, भरमौर और हड़सर तक सड़क बनने से पहले चंबा से ही पैदल यात्रा शुरू हो जाती थी। हड़सर से मणिमहेश-कैलाश 15 किलोमीटर दूर है।
मणिमहेश्वर 3950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी चढ़ाई ज्यादा कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इस मंदिर के दर्शन हेतु मई से अक्टूबर का महीना सबसे ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन पहाड़ी चढ़ाई होने के कारण एक दिन में 4 से 5 घंटे तक की चढ़ाई ही संभव हो पाती है। मणिमहेश की यात्रा कम से कम सात दिनों की है। मोटे तौर पर मणिमहेश के लिए मार्ग है - नई दिल्ली - धर्मशाला - हर्दसार - दांचो - मणिमहेश झील - दंचो - धर्मशाला - नई दिल्ली।
पहला दिन
नई दिल्ली पहुंचकर धर्मशाला के लिए प्रस्थान।
दूसरा दिन
(धर्मशाला - हरसर - धन्छो, 2280 मीटर की ऊंचाई पर स्थित) हरसर से धन्छो जिसकी दूरी 4 कि॰मी॰ है, लेकिन जाने में 3 घंटे लग जाते हैं। यहाँ पर महंत श्री कृष्ण मुनि जी द्वारा भोजन आदि सहित रात गुजारने का अच्छा प्रबंध होता है।
तीसरा दिन
(धन्छो - मणीमहेश झील, 3950 मी. की ऊंचाई पर स्थित) धन्छो से मणीमहेश तक की चढ़ाई न केवल लंबी ही है, इस यात्रा का सबसे कठिनतम चरण भी है। इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई करनी होती है। रात कैंप में ब्यतीत करनी होती है ।
चौथा दिन
(मणिमहेश झील - धन्छो) वापस आने की प्रक्रिया की शुरूआत। इसके तहत पहला दिन धन्छो में गुजारना होता है।
पांचवां दिन
(धन्छो - धर्मशाला)
छठा दिन
(धर्मशाला) यहां पहुंचने के उपरांत तीर्थयात्री अगर चाहें तो विभिन्न बौद्धमठों को देखने का लुत्फ उठा सकते हैं। इसके बाद शाम में पठानकोट पहुंचा जा सकता है। यहां से ट्रेन या सड़क मार्ग से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया जा सकता है।
सातवां दिन
(आरक्षित दिन)
चम्बा बेस से जाने पर चढ़ाई कुछ आसान हो जाती है। तीर्थयात्री चाहें तो इस मार्ग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
महिलाएं गौरीकुंड में करती हैं स्नान
गौरीकुंड पहुंचने पर प्रथम कैलाश शिखर के दर्शन होते हैं। गौरीकुंड माता गौरी का स्नान स्थल है। यात्रा में आने वाली स्त्रियां यहां स्नान करती हैं। यहां से डेढ़ किलोमीटर की सीधी चढ़ाई के बाद मणिमहेश झील पहुंचा जाता है। यह झील चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई, देखने वालों की थकावट को क्षण भर में दूर कर देती है। बादलों में घिरा कैलाश पर्वत शिखर दर्शन देने के लिए कभी-कभी ही बाहर आता है इसके दर्शन उपरांत ही तपस्या सफल होती है।
होते हैं नीलमणि के दर्शन
हिमाचल सरकार ने इस पर्वत को टरकॉइज माउंटेन यानी वैदूर्यमणि या नीलमणि कहा है। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। मान्यता है कि कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म हैं जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीले रंग में रंगती हैं।
चौरसिया मंदिर, भरमौर
चौरसिया मंदिर का नाम इसके परिसर में स्थित 84 छोटे-छोटे मंदिरों के आधार पर रखा गया है। यह मंदिर भरमौर या ब्रह्मपुरा नामक स्थान में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 84 योगियों ने ब्रह्मपुरा के राजा साहिल बर्मन के समय में इस जगह भ्रमण करते हुए आए थे। राजा बर्मन के आवभगत से अभिभूत होकर योगियों ने उनको 10 पुत्र रत्न प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। फलत: राजा बर्मन ने इन 84 योगियों की याद में 84 मंदिरों का निर्माण करा दिया। तभी से इसको चौरसिया मंदिर के नाम से जानते हैं। एक दूसरी धारणा के अनुसार एक बार भगवान शिव 84 योगियों के साथ जब मणिमहेश की यात्रा पर जा रहे थे तो कुछ देर के लिए ब्राह्मणी देवी की वाटिका में रुके। इससे देवी नाराज हो गईं लेकिन भगवान शिव के अनुरोध पर उन्होंने योगियों के लिंग रूप में ठहरने की बात मान ली। कहा जाता है इसके बाद यहां पर इन योगियों की याद में चौरसिया मंदिर का निर्माण कराया गया। जबकि एक और मान्यता के अनुसार जब 84 योगियों ने देवी के प्रति सम्मान प्रकट नहीं किया तो उनको पत्थर में तब्दील कर दिया गया।
क्या-क्या करें
- अपने साथ पर्याप्त गर्म कपड़े रखें। यहां तापमान एकदम से पांच डिग्री तक गिर सकता है। यात्रा मार्ग पर मौसम कभी भी बिगड़ सकता है, लिहाजा अपने साथ छाता, विंडचीटर, रेनकोट व वाटर प्रूफ जूते लेकर जाएं।
- बारिश में सामान गीला न हो, इसके लिए कपड़े व अन्य खाने-पीने की चीजें वाटर प्रूफ बैग में ही रखें।
- आपात स्थिति के लिए अपने किसी साथी यात्री का नाम, पता व मोबाइल नंबर लिखकर एक पर्ची अपनी जेब में रखें।
- अपने साथ पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस या यात्रा पर्ची जरूर रखें।
क्या न करें
- जिन क्षेत्रों में चेतावनी सूचना हो, वहां न रुकें।
- यात्रा मार्ग में काफी उतार-चढ़ाव है, इसलिए चप्पल पहनकर यात्रा न करें। केवल ट्रैकिंग जूते ही पहनकर यात्रा करें।
- यात्रा के दौरान किसी तरह का शॉर्टकट न लें क्योंकि यह खतरनाक व जानलेवा हो सकता है।
- खाली पेट कभी भी यात्रा न करें। ऐसा करने से गंभीर स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- ऐसा कोई कार्य न करें जिससे यात्रा मार्ग पर प्रदूषण फैलता हो या पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हो।
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