महापरिनिर्वाण या निर्वाण मंदिर (कुशीनगर बुद्ध मंदिर) (Mahaparinirvana temple)
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर, पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यहीं भगवान बुद्ध ने अपने प्राण त्याग किए थे। इसलिए इसको मुख्य मंदिर भी कहा जाता है।
इस अनूठे डिजाइन वाले मंदिर का मुख्य आकर्षण इसके विशाल परिसर में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर (21.6 फिट लम्बी) ऊंची विशालकाय मूर्ति लेटी हुई मुद्रा यानि भू-स्पर्श मुद्रा (मरणासन्न) में रखी है। यहां बुद्ध चिर निद्रा में लेटे हैं। यह मूर्ति हमेशा एक चुनरी से ढ़ंकी रहती है। मूर्ति का सिर्फ चेहरा दिखाई देता है। बुद्ध की विशाल लेटी हुई प्रतिमा 2.74 मीटर ऊंचे चबूतरे पर बनी है, जिसे एक मंदिर का स्वरूप प्रदान किया गया है।
इस लेटी प्रतिमा की सबसे ख़ास बात यह है कि यह तीन मुद्राओं में दिखाई देती है। पैर की तरफ से देखने पर शान्ति चित्त मुद्रा (महापरिनिर्वाण मुद्रा), बीच से देखने पर चिंतन मुद्रा और सामने से चेहरा देखने पर मुस्कुराते हुई मुद्रा दिखाई देती है।
यह मूर्ति उस काल को दर्शाती है जब 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध ने अपने पार्थिव शरीर को छोड़ दिया था और सदा-सदा के लिए जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो गए थे, यानि उन्हे मोक्ष की प्राप्ति हो गई थी।
भगवान बुद्ध की इस सुंदर मूर्ति को चुनार के लाल बलुआ (एडी के मोनोलिथ रेड-रेत) पत्थर के एक ही टुकडें से बनाया गया था। इस मूर्ति में भगवान को पश्चिम दिशा की तरफ देखते हुए दर्शाया गया है, यह मुद्रा, महापरिनिर्वाण के लिए सही आसन माना जाता है। इस मूर्ति को एक बड़े पत्थर वाले प्लेटफॉर्म के सपोर्ट से कोनों पर पत्थरों के खंभे पर स्थापित किया गया है। इस प्लेटफॉर्म या मंच पर, भगवान बुद्ध के एक शिष्य हरिबाला ने 5वीं सदी (प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है) में एक शिलालेख बनवाया था। कहा जाता है कि हरीबाला नामक बौद्ध भिक्षु शिष्य ने गुप्त काल के दौरान यह प्रतिमा मथुरा से कुशीनगर लाया था। यह प्रतिमा मथुरा शैली की है। मंदिर और विहार दोनों ही एक शिष्य की तरफ से गुरू को दिया जाने वाला उपहार था। इस मंदिर में हर साल, पूरी दुनिया से हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री भारी संख्या में आते है।
1876 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी। विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। मंदिर के डाट हूबहू अजंता की गुफाओं के डाट की तरह हैं। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है। वैसे मूर्ति का काल अजंता से पूर्व का है। करीब 2500 वर्ष पुरानी मूर्ति।
बुद्ध पूर्णिमा पर होता है विशेष उत्सव
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में स्थित इस महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के विहारों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से जुड़ा होने के कारण काफी ज्यादा है।
इस मंदिर के आसपास कई विहार (जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे) और चैत्य (जहाँ भिक्षु पूजा करते थे या ध्यान लगाते थे) भग्नावशेष और खंडहर मौजूद हैं जो अशोककालीन बताए जाते हैं। मंदिर परिसर से लगा काफी बड़ा सा पार्क है, जहाँ पर्यटकों को जमावड़ा लगा रहता है। वैसे इस पूरे परिसर में अलौकिक शांति का वातावरण है। सुबह और शाम सुगंधित अगरबत्तियों और बुद्धम् शरणम् गच्छामि के घोष से वातावरण और भी पवित्र और शांतिदायक लगता है।
तथागत का महापरिनिर्वाण -
कुशीनगर में गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की उम्र में 483 ईस्वी पूर्व में हुई थी। कहा जाता है कि एक ग्रामीण व्यक्ति के घर कुछ खाने के कारण उनके पेट में दर्द शुरु हो गया। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुशीनारा की ओर चल दिए।
रास्ते में उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'आनंद इस संधारी के चार तह करके बिठाओ। मैं थक गया हूं, अब लेटूंगा। उन्होंने हिरण्यवती नदी को पार किया और दो साल के वृक्षों के बीच कुशीनगर में अपने प्राण त्यागे। उनकी मृत्यु के छह दिन बाद उन्हे जलाया गया। उनके शव के अवशेषों का बंटवारा आठ हिस्सों में किया गया।
इन आठ स्थलों पर आठ स्तूप बने। ये स्थल हैं - 1. कुशीनगर 2. कपिलवस्तु 3. रामग्राम 4. राजगृह 5. वैशाली 6. पावागढ़ 7. बेट द्वीप 8. अल्लकल्प।
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