दिव्य शक्तियों वाला ब्रह्मकमल (BRAHMA KAMAL) पुष्प और उससे जुड़े रहस्य
जानिये उस फूल के बारे में जिसको खिलते हुए देखने से ही आपकी जिंदगी बदल सकती है। हमारी प्रकृति में ऐसे कई फूल और पौधे मौजूद है जिनकी खूबसूरती और गुण बेमिसाल है और इन्हीं में से कुछ तो पूरी तरह से दैवीय शक्ति वाले माने जाते हैं। ऐसे कई हजारों लाखों फूलों की प्रजातियां हमारी प्रकृति में मौजूद है। जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
हम सभी ने तो कमल के फूल को देखा ही है। जो कीचड़ में खिलता है पर हमारी इस धरती के दुर्गम इलाकों में ऐसा एक कमल भी पाया जाता है जो कि कीचड़ में नहीं बल्कि पहाड़ियों पर खिलता है।
यह एक ऐसा कमल है जो अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है। यह अत्यंत सुंदर चमकते सितारे जैसा आकार लिए और अत्याधिक मादक सुगंध वाला कमल है। इस कमल को हिमालय फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है। इसीलिए इसे खिलते देखना स्वप्न देखने के समान ही है। ऐसा कहा जाता है कि अगर इसे खिलते समय देखकर कोई कामना की जाए तो वो अति शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है।
ब्रह्मकमल के पोधे के बारे में
ब्रह्मकमल के पौधे में 1 साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि केवल रात्रि में ही खिलता है सुबह होते ही इसका फूल अपने आप बंद हो जाता है। लेकिन कभी कभी ये फूल खिलने में कई साल भी लगा देता है। यह सफेद रंग का होता है। जो देखने में आकर्षक होता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा जी का कमल है। इसीलिए इसे ब्रह्मकमल के नाम से जाना जाता है।
आपको इस अत्यंत दुर्लभ चमत्कारी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले फूल के रहस्य और प्रचलित मान्यताओं के बारे में जान कर बहुत प्रसन्ता होगी जिससे आप आज तक अनजान थे।
औषधीय फूल, कैंसर की दवा बनाई जाती है
ब्रह्मकमल में कई एक औषधीय गुण होते हैं। चिकित्सकीय प्रयोग में इस फूल के लगभग 174 फार्मुलेशनस पाए गए हैं। इसके तेल से बने परफ्यूम्स का स्टीमुलेंट के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है।
भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं। इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। वैद्य बताते हैं कि इसकी पंखुडियों से टपका जल अमृत समान होता है।
इसके राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है।
छिलने कटने का इलाज
छिलने या कटने पर ब्रह्म कमल के फूल का रस लगाने से जख्म जल्दी भर जाते है। इस फूल के रस में एंटी सेप्टिक गुण पाएं जाते है जो घाव को भरने का काम करता है। ब्रह्मकमल के जड़ को पीसकर शरीर के कटे हुए घावों अथवा कुचले हुए अंगों पर लगाने से लाभ मिलता है।
भूख बढ़ाता है
इसका स्वाद चाहे कैसा भी क्यों न हो लेकिन इसमें काफी मात्रा में न्यूट्रीशियन पाया जाता है। इस फूल को पाउडर बनाकर इसे भूख बढ़ती है और पाचन क्रिया भी तंदरुस्त रहती है।
यूरिन इंफेक्शन
यूरिन इंफेक्शन होने पर भी ये फूल काफी लाभकारी होता है। इसके रस को पीने से यूटीआई इंफेक्शन भी दूर हो जाता है।
यौन संचारित रोगों से राहत :
आजकल के समय में अधिकांश पुरुष और महिलायें यौन संचारित रोगों से पीड़ित रहते हैं। अगर आप भी ऐसे किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो ब्रम्ह कमल फूल का सेवन करें इससे बहुत जल्दी आराम मिलता है।
बुखार से निजात
इस फूल के रस में काफी औषधीय गुण छिपे होते है। ये बुखार को दूर करने में मदद करता है। कितना ही तेज ज्वर क्यों न हो। ब्रह्मकमल के फूल का रस हर बुखार को मात देदेता है। इस फूल का एक बार में 50 एमएल अर्क दिन में दो बार सेवन करने से बुखार एकदम ठीक हो जाता है।
एसटीडीज से मुक्ति
असुरक्षित सेक्स करने से महिलाओं और पुरुषों में यौन संचारित रोग फेलने का डर रहता है। इस फूल के रस से यौन संचारित रोगों से भी मुक्ति मिलती हैं।
लीवर के इंफेक्शन को करता है दूर
ब्रह्म कमल के रस में काफी औषधीय गुण छिपे होते है। इसका रस पीने से लीवर का इंफेक्शन भी ठीक हो जाता है। इस फूल के रस का सूप बनाकर पीने से लीवर से संबंधित सभी रोग दूर हो जाते है। ब्रह्मकमल के फूलों की राख को लीवर की वृद्धि में शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
काली खांसी का इलाज
इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। इससे पुरानी (काली) खांसी का भी इलाज किया जाता है।
हड्डियों के दर्द और सर्दी-खांसी से राहत :
इस फूल की पत्तियां हड्डियों के दर्द से राहत दिलाने में बहुत मददगार हैं। इसके अलावा अगर आप अक्सर सर्दी-जुकाम से पीड़ित रहते हैं तो इस फूल का सेवन करें। इसकी तासीर गर्म होती है जिस वजह से सर्दी-जुकाम से तुरंत राहत मिलती है।
मिर्गी
ब्रह्मकमल के फूलों के तेल से सिर की मालिश करने से मिर्गी के दौरे तथा मानसिक विकार दूर हो जाते हैं।
कहते हैं कि इसकी सुंदरता और अलौकिक शक्तियों के साथ-साथ इसमें औषधि गुण भी मौजूद है। इस फूल की विशेषता यह है कि जब खिलता है तब इसमें त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है।
यहां की जनजातियों ने सबसे पहले इस फूल के औषधीय महत्व को पहचाना था। इसके अस्तित्व को बचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कहते हैं कि ब्रह्मकमल ना ही ख़रीदा जाना चाहिए और ना ही बेचा जाना चाहिये। उससे देवताओं का अपमान समझा जाता है क्योकि इसमें जादुई प्रभाव भी होता है। इसे सिर्फ भगवान को चढ़ाया जाता है या उपहार स्वरूप दिया जाता है। जैसे कि हमारे आसपास की जगह पर पाए जाने वाले सामान्य कमल की प्राप्ति आसानी से हो जाती है ब्रह्मकमल की प्राप्ति आसानी से नहीं होती।
कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्मकमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है।
इसका खिलना देर रात आरंभ होता है तथा दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है। मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है। इसकी सुगंध प्रिय होती है और इसकी पंखुडिय़ों से टपका जल अमृत समान होता है। यह भी कहा जाता है घर में भी ब्रह्मकमल रखने से कई दोष दूर होते हैं।
ब्रह्मकमल के पौधे में 1 साल में केवल एक बार ही फूल क्यों आता है
हिमालय में खिलने वाला यह फूल हर साल एक बार ही खिलता है और एक ही रात रहता है। यह फूल जून से सितंबर के बीच खिलता है। सितंबर-अक्तूबर के समय में यह पुष्प फल में परिवर्तित होने लगता है। इसका जीवन 5-6 माह का होता है। कहते हैं कि सिर्फ भाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खिलता हुआ देख पाते हैं और जो देखते है उन्हें सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और भाग्य मजबूत होती है।
जिस तरह बर्फ से ढका हिमालय क्षेत्र देवी देवताओं का निवास माना गया है। उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में उगने वाले ब्रह्मकमल को देवी देवताओ का आशीर्वाद माना जाता है जो हिमालय के दुर्गम इलाकों में पाए जाने वाले ब्रह्मकमल में मौजूद होता है। माना जाता है इसमें खुद देवताओं का वास रहता है।
इस ब्रह्मकमल में ब्रह्मा जी का वास होता है और ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी इसी कमल के ऊपर बैठकर सृष्टि की रचना करते हैं। आमतौर पर जगह-जगह मिलने वाले फूलो को देवी देवताओ को चढ़ाया जाता है लेकिन ब्रह्मकमल ही ऐसा पुष्प है जिसकी पूजा की जाती है।
ब्रह्मकमल फूल नही पुष्प है इसीलिए इसे तोड़ने के कुछ नियम होते हैं। यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है। और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है।
बेहद ठंडे इलाकों में मिलता है ब्रह्मकमल
यह ब्रह्मकमल हिमालय के बेहद ठंडे इलाकों में ही मिलता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3000 से 6000 मीटर (11 हजार से 17 हजार फुट) की ऊंचाई में पाया जाता है। ब्रह्मा कमल कि विश्व में कुल 210 कितनी प्रजातियां पाई जाती है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 61 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनमें से 58 से अधिक प्रजातियाँ हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में ब्रह्मकमल की 24 प्रजातियां पाई जाती हैं। यह उत्तराखंड के मध्य हिमालयी छेत्र में पाया जाता है। उत्तराखंड में पाई जाने वाली प्रजाति हैं- ब्रह्म कमल, फेन कमल, कस्तूरा कमल। कस्तूरा कमल प्रजाति के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं। ग्रार्मीनिफोलिया, ब्रह्मकमल की फेन कमल का प्रजाति का वैज्ञानिक नाम है।
इसकी सुंदरता तथा गुणों से प्रभावित होकर इस पुष्प को उत्तराखंड का राज्य पुष्प (State flower of Uttarakhand) घोषित किया गया है। भारतीय डाक विभाग इस पुष्प पर डाक डिकट भी जारी कर चुका है।
ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में, उत्तराखंड में यह पिण्डारी से चिफला, सप्तशृंग, रूपकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, वासुकी ताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, तुंगनाथ में प्राकृतिक रूप से आसानी से पाया जा सकता है। गंगोत्री, मुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ में इसे सीजन में खिला हुआ देखा जा सकता है। यह दुर्लभ, रहस्यमय, श्वेतवर्णी पुष्प सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है।
यह चट्टानों के बीच रुकी हुई बर्फ वाले स्थानों पर खिलता है। यह पानी में नहीं, शुष्क जमीन पर उगता-खिलता है।
उत्तराखंड में इसे केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में एक पवित्र फूल मानकर चढाया जाता है। बदरीधाम में सितंबर- अक्टूबर में नंदा अष्ठमी के अवसर पर गांवों के लोग नंदा देवी को ब्रह्म कमल चढ़ाने के लिए जंगल में इसे पाने के लिए जाते हैं और इस फूल को ढूंढ कर लाते हैं। फिर मंदिर में चढाने के बाद इसे प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
इसके फूल में नर और मादा एक ही फूल में पाए जाते हैं। वे 5 से 10 सेमी तक लंबा रहता है। फूल जामुनी रंग के होते हैं। जो हलके पीले हरे पेपर के ब्रेेकिट्स से लिपटे रहते हैं, ताकि ठंडे मौसम से इनका बचाव हो सके। जुलाई अगस्त के महीने में बरसात के मौसम में चट्टानों पर घास के बीच ये खिलते हुए दिख सकते हैं। इन्हें आधे अक्टूबर तक भी देखा जा सकता है। इसके बाद ठंड बढऩे पर यह पौधा खत्म हो जाता है। अप्रैल में गरमी बढऩे के साथ ही यह फिर से दिखाई देने लगता है।
अलग-अलग नाम से जाना जाता है
बह्मकमल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है। ब्रह्म कमल को ससोरिया ओबिलाटा (साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा) (Saussurea obvallata) भी कहते है। इसका नाम स्वीडर के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है इसके नजदीकी रिश्तेदार हैं, सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज जो इसी कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं।
हिंदी नाम - ब्रह्मकमल, संस्कृत नाम - ब्रह्मकमल, पहाड़ी नाम - सर्जकौल, पंजाबी नाम - विर्म कबल, कंबल, लैटिन नाम - सौसुरिया आबवेलेटा
ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल (कौंल पदम), हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। उत्तराखंड में इसे ब्रह्म कमल, कोन और कप्फू के नाम से जाना जाता है। श्रीलंका में 'कदुफूल' और जापान में 'गेक्का विजन' कहते हैं। चीन में इसे 'तानहुआयिझियान' कहते हैं जिसका अर्थ है प्रभावशाली लेकिन कम समय तक ख्याति रखने वाला। इसे क्वीन आफ द नाईट भी कहा जाता है। ब्रह्म कमल को महाभारत में सुगंधित पुष्प कहा गया है।
साल में एक बार खिलने वाले गुल बकावली को भी कई बार भ्रमवश ब्रह्मकमल मान लिया जाता है। यह एक कैक्टस ऑर्चिड है इसका साइंटिफिक नाम Epiphyllum Oxypetalum है।
ब्रह्मकमल के बारे में प्राचीन मान्यताये
आमतौर पर हिमालय की चोटियों में पाया जाने वाला फूल ब्रम्ह कमल हिंदू धर्म में काफी शुभ माना जाता है। इसका उल्लेख कई पौराणिक कहानियों में भी मिलता है। ब्रह्म कमल से जुड़ी बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनमें से एक के अनुसार माता पार्वती जी के कहने पर ब्रह्मा जी ने ब्रह्मकमल का निर्माण किया था। भगवान शिव ने गणेश जी के कटे हुए मस्तक पर एक हाथी का सिर रखा तब उन्होंने ब्रह्मकमल के जल से उनके सिर पर पानी छिड़क दिया था। यही कारण है कि ब्रह्मकमल को जीवन देने वाले अमृत के सामान फूलों का दर्जा दिया गया है। आज का आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि फूल में कई औषधीय गुण मौजूद है।
पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मकमल भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प है।
शिवपुराण के अनुसार जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी के ऊपर भार सौंपा जाता है, तब ब्रह्मा जी के नाभि से ब्रह्म कमल की उत्पत्ति होती है। जिसके बाद इस ब्रह्म कमल से अन्य देवताओं की उत्पत्ति होती है।
किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1008 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा।
ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा को हमेशा एक विशाल कमल पर बैठा दिखाया जाता है ये 'ब्रह्मा कमल' का ही सफ़ेद फूल है ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि से पैदा हुए थे जबकि कुछ अन्य पुराण कहते हैं कि वह एक विशाल सफेद कमल से पैदा हुए थे जिसे ब्रह्मा कमल कहते हैं।
ब्रह्मकमल का वर्णन रामायण काल में भी मिलता है। रामायण में जब लक्ष्मण को संजीवनी बूटी दी गई गई तो वो चमत्कारिक रूप से पुनर्जीवित हो उठे इससे खुश हो भगवान राम पर देवताओं ने स्वर्ग से पुष्प वर्षा की पृथ्वी पर जहाँ भी ये पुष्प गिर गए वहां ये फूलों की घाटी के रूप में उग आये और 'ब्रह्मा कमल' कहलाये।
एक कथा के अनुसार जब पंच पांडव द्रोपदी के साथ जंगल में वनवास में थे तथा द्रौपदी कौरवों द्वारा अपने अपमान को भूल नहीं पा रही थी और वह जंगल की मुश्किल भरी जिंदगी से भी जुझ रही थी। तब पांडवों ने उत्तराखंड में अलकनंदा के किनारे पांडुकेश्वर में अपने लिए रहने का ठिकाना बनाया। एक शाम जब द्रौपदी अलकनंदा में स्नान करने गई तो उसने वहां देखा कि एक सुंदर ब्रह्म कमल नदी की धारा में बह रहा है। उस फूल का रंग हल्का गुलाबी था। लेकिन वह जल्दी ही मुरझा भी गया। तब द्रौपदी ने अपने निष्ठावान पति भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमानजी ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए। (कुछ ऐसी मान्यता भी है कि जब द्रोपदी अपने पतियों के साथ वनवास कर रही थी, उस समय उसे नदी पर एक सफेद कमल दिखाई दिया जो अत्यंत ही आकर्षित था। ऐसे में अपने पति अर्जुन को वह ब्रह्म कमल का फूल को लाने के लिए कहा और द्रोपदी ने जैसे ही वह कमल को पाया उसे अध्यात्मिक शक्ति का एहसास हो गया।)
बहुत सारी प्रचलित मान्यताओं में यह जानने को मिलता है ब्रह्मकमल एक ऐसा दुर्लभ पुष्प है जिसे जो भी खिलते हुए देखता है। उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है उसमें आध्यात्मिकता का विकास होता है कहते हैं यह केवल कुछ ही पलों के लिए खिलता है और जो इसे खिलते हुए देख कर मनोकामना करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है।
हम मान्यताओं को नकार नहीं सकते क्योंकि कई प्राचीन चित्रों पर भी इसका उल्लेख मिलता है। पाताल भुवनेश्वर गुफा में जाएंगे तो वहां आपको गणेश जी की कटी हुई मस्तक के ऊपर देखने को मिल जाएगा जहां से हमेशा पानी की कुछ बूंदें गणेश जी के मस्तक पर गिरती रहती है। ऐसे ही बहुत सारे उल्लेख है जहां ब्रह्मकमल के बारे में और उससे होने वाले सकारात्मक प्रभावों के बारे में सुनने और देखने को मिलेगा।
दैवीय पुष्प पर संकट
हिमालयी क्षेत्र में मानसून के वक्त जब ब्रह्म कमल खिलने लगता है, नंदा अष्टमी के दिन देवताओं पर चढ़ाने के बाद इसे श्रद्धालुओं को प्रसाद रूप में बांटा जाता है। ऊंचाइयों पर इस फूल के खिलते ही स्थानीय लोग बोरों में भर कर इसे मंदिरों को पहुंचाने लगते हैं। प्रतिबंध के बावजूद वे इसे प्रति फूल पंद्रह-बीस रुपए में तीर्थयात्रियों को बेचकर कमाई भी करते रहते हैं। हिमालयी जनजातियों में किसी भी फसल को लगाने से पूर्व अपने इष्टदेव पर औषधीय गुणों से युक्त ‘ब्रह्मकमल’ चढ़ाने की परम्परा है। वे बुग्यालों से ‘ब्रह्मकमल’ तोड़ लाकर चढ़ाते थे। इसमें दो-तीन दिन का वक्त लग जाता था। इस बीच पर्याप्त मात्रा में उसके बीज जमीन में जम जाते थे, जिससे पुनः अगले वर्ष उतने ही ‘ब्रह्मकमल’ खिल जाते थे। अब वहां के लोगों में अधिकाधिक ‘ब्रह्मकमल’ तोड़ने की होड़ सी लगी रहती है, जिससे पर्याप्त मात्रा में बीज न बन पाने से इस फूल की प्रजाति उजड़ती जा रही है। यहां पहुंचने वाले पर्यटकों ने भी इस फूल को नष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वे अपने घरों में सजाने के लिए इसे अपने साथ तोड़ ले जाते हैं। शोधार्थी अपने रिसर्च के लिए भी ये फूल तोड़ते रहते हैं।
केदारनाथ धाम में ब्रह्म वाटिका में भी इसकी रौनक
केदारनाथ में पुलिस ने ब्रह्मवाटिका बनाई है वहां भी ये फूल खिले हैं। ख़ास बात है कि संभवतः इंसान की बनाई पहली वाटिका है जिसमें ब्रह्मकमल खिले हैं। केदारनाथ पुलिस के मुताबिक इस वाटिका को तैयार करने में करीब तीन साल लगे थे। इसकी सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ही इसे संरक्षित प्रजाति में रखा गया है।
उत्तराखंड में बनेगा ब्रह्मकमल का बीज बैंक
वन अनुसंधान केंद्र ने राज्य पुष्प ब्रह्मकमल का बीज बैंक तैयार कर लिया है। यह दुर्लभ फूलों को बचाने के लिए शुरू की गई मुहिम के तहत किया गया है। इसके तहत चमोली जिले के रुद्रनाथ औैर मंडल वन प्रभाग में तीन-तीन हेक्टेयर में पौधशाला तैयार हो गई है। वन अनुसंधान केंद्र ने विश्व की धरोहर में शामिल चमोली के फूलों की घाटी में पाए जाने वाले राज्य पुष्प ब्रह्मकमल, हत्था जड़ी, ब्लू लिली समेत अति दुर्लभ किस्म के दो दर्जन से ज्यादा प्रजातियों के फूलों को संरक्षित करने से की गई हैं।
ब्रह्म कमल एक मेडिकल प्लांट भी है। इसे तिब्बती और आयुर्वेदिक औषधि में मिलाते हैं। वहां इसका नाम साह-दू-गोह-घो है। यह स्वाद में कुछ कड़वा होता है। उत्तराखंड में इसे जोडों के दर्द, पेट की बीमारी, खांसी-जुखाम से लेकर लकवा के इलाज के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके कंद (जड़ों) को विशेष कर एंटी सेप्टिक और कटने से हुए जख्म पर लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तिब्बती दवाओं में इसका पंचांग (पूरा पौधा) मेडिसन में इस्तेमाल किया जाता है। जैसा कि ब्रह्म कमल बहुत कम पाया जाता है लेकिन दवाइयों के लिए बहुत मांग होने से यह अब विलुप्त होने की कगार पर है। ज्यादातर तिब्बती दवाइयों में इसे यूरोजेनिटल बिकार के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इतना बहुमूल्य पौधा होने पर और उत्तराखंड के राज्य पुष्प होने पर भी इसे बचाने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इसके गेरमप्लाजम का संरक्षण कैसे किया जाए ताकि यह प्रजाति आने वाले समय में विलुप्त न हो जाए। इसके लिए कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। इसकी मेडीसिन में बड़ी मांग, जंगलों का घटना, सडक़ों का निर्माण व तेजी से शहरीकरण के कारण यह पौधा विलुप्त होने की कगार पर है। संरक्षण मूल्यांकन प्रबंधन योजना (सीएएमपी- कंजरवेशन एसेसमेंट मैनेजमेंट प्लान) ने इसे विलुप्त प्राय: प्रजाति में रख दिया है। जैसा कि इसका पंचांग ही मेडिसिन में इस्तेमाल हो रहा है। आज इसका गैर वैज्ञानिक तरीके से निकाला जाना और इसका निवास स्थान कम होने पर भी विचार करने की जरुरत है। आज यह भी जरूरत है कि इसके निवास स्थान पर ही शोध किया जाए। वहां छोटी-छोटी नर्सरी बनाई जाए और इसकी रोपण विधि को इजाद किया जाए। यह पौधा चूंकि मेडीसिन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इस मामले में शोध करके देखा जा सकता है कि यह किस-किस मेडीसिन में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। आज जरूरत है कि स्थानीय लोगों को इसके अत्यधिक दोहन से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक किया जाए और अगर इसका वैज्ञानिक तरीके से दोहन किया जाए तो क्या फायदा हो सकता है, उसके लिए जागरुकता शिविर लगाकर लोगों को इस बारे में समझाया जाए।
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