स्तानुमलायण/ सुचिन्द्रम/ थानुमलायन/ ठाँउमालयन मंदिर, कन्याकुमारी (Thanumalayan/ Suchindram Temple in Tamilnadu) का इतिहास व भव्यता
स्तानुमलायण मंदिर तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी शहर से मात्र 13 किमी. दूर सुचिन्द्रम नामक एक पवित्र स्थान में स्थित हैं जो हिंदू धर्म के तीन मुख्य भगवान त्रिदेव को समर्पित हैं। इस मंदिर का स्तानुमलायण नाम त्रिदेव के नाम पर ही पड़ा हैं जिसमे “स्तानु” भगवान शिव को, “मल” भगवान विष्णु को व “आयन” भगवान ब्रह्मा को रेखांकित करता है। यह सात मंजिला मंदिर हैं जिसका सफेद गोपुरम लगभग 134 फीट ऊँचा हैं जो बहुत दूर से ही दिखाई पड़ता है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। प्राचीन काल में, सुचिन्द्रम शहर त्रावणकोर का गढ़ था।
थानुमलायम मंदिर से जुड़ी 3 पौराणिक कथाएं (Suchindram Temple history)
# 1. माता अनुसूया का त्रिदेव को शिशु बनाना (Sati Anusuya Tridev story)
यह इस स्थल की सबसे महत्वपूर्ण कथा हैं जो इस मंदिर की महत्ता को और भी अधिक बढ़ाती हैं। पौराणिक काल में इस स्थान पर ज्ञान अरण्य नामक सघन वन था। इसी ज्ञान अरण्य में महर्षि अत्री अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता थी और पति की पूजा करती थीं। उन्हे एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति केविषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पति से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय ऋषि अत्री हिमालय पर तप करने गए हुए थे। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने साधुवेश में ऋषि के आश्रम पहुंचे तब अनुसूया स्नान कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में आकर भिक्षा देने को कहा। जहां ब्राह्मणों को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुष के सामने आने से पतिव्रत धर्म भंग होता था। देवी को तो दोनों धर्मो का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों ब्राह्मणों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की (उसके बाद माता ने त्रिदेव के शिशु रुपी अवतार को दूध पिलाया)। जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने का ज्ञान उनकी पत्नियों को हुआ तो वे व्याकुल हो गई। उन्होंने आश्रम में आकर देवी से क्षमा मांगी। तब उन्होंने उन्हे प्रभावमुक्त किया। माता के पतिव्रत धर्म व बुद्धिमता से प्रसन्न होकर तीनों ने उनसे वरदान मांगने को कहा जिस पर माता अनुसूया ने उनसे तीनों के प्रतीकात्मक स्वरुप के रूप में यहाँ रहने को कहा। उस समय त्रिमूर्ति ने अपने प्रतीक की स्थापना की, जिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा ऊपर शिव है।
# 2. इंद्र का गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होना (Gautam Rishi Ahilya Indra story)
देवराज (देवों के राजा) इंद्र ने गौतम ऋषि की धर्मपत्नी माता अहिल्या के साथ छल से दुराचार किया था जिसका गौतम ऋषि को पता चल गया था। तब उन्होंने इंद्र को नपुंसक बनने का श्राप दे दिया था। उसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र ने इसी स्थल पर दिन रात तपस्या की और उष्ण घृत से स्नान कर उन्होंने स्वयं को पापमुक्त किया और अर्द्धरात्रि को पूजा आरंभ की और पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया व गौतम ऋषि के श्राप से मुक्ति पाई थी। तब से इस मंदिर का नाम सुच्चिन्द्रम भी पड़ गया अर्थात इंद्र की शुद्धि होना। अभी भी इंद्र रात में "अर्धजाम पूजा" करने के लिए हर रोज मंदिर का दौरा करते है।
# 3. माता सती का अंग गिरना व शक्तिपीठ बनना (Shiv Sati Daksh story) (Suchindram Shakti Peeth)
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को ‘संहार या ‘संकूर’ भैरव के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यहाँ देवी अब तक तपस्यारत हैं। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को कंधे पर रखकर पूरे ब्रह्माण (दसों दिखाओं) में व्याकुल होकर घूम रहे थे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जो पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे। उसी में से माता सती के ऊपरी दांत (ऊर्ध्वदंत) यहाँ गिरे थे तब से यह 51 शक्तिपीठों में से भी एक हैं।
मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवती देवी ने महाराक्षस बाणासुर का वध किया था। यहां के मंदिर में नारायणी माँ की भव्य एवं भावोत्पादक प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है। निज मंदिर में भद्रकाली जी का मंदिर भी है। ये भगवती देवी की सखी मानी जाती हैं।
थानुमलायन मंदिर का निर्माण इतिहास (Suchindram Temple history)
इस मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से 9वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। इस बात का प्रमाण उस समय के कुछ शिलालेख हैं। इसी के साथ इसका पुनः निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था जब इसे पहले से और अधिक विशाल रूप दिया गया व सुसज्जित किया गया। इस मंदिर की स्थापत्य कला व कुछ मूर्तियाँ अत्यधिक प्राचीन हैं जो इसका गौरवशाली इतिहास दर्शाती हैं। 17वीं शताब्दी तक यह मंदिर वहां के शासक नम्बूदरी के अधीन आता था।
सुच्चिन्द्रम मंदिर की स्थापत्य कला (Suchindram Temple architecture)
यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर अति विशाल हैं जिसका गोपुरम बहुत दूर से भी दिखाई पड़ता हैं। यहाँ अंदर प्रवेश करते ही 30 छोटे मंदिर हैं। मंदिर के अंदर भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, नंदी, हनुमान को समर्पित मूर्तियाँ हैं व साथ ही उपवन, वृक्ष, गलियारें इत्यादि इसकी शोभा को और भी बढ़ा देते हैं।
इन 30 छोटे मंदिर में से एक स्थान पर आसन्न मंदिर में भगवान विष्णु की अष्टधातु प्रतिमा विराजमान है। मंदिर प्रवेश के दाई ओर सीता-राम की प्रतिमा स्थापित है। पास ही गणेश मंदिर है, जिसके सामने नवग्रह मंडप है। इस मंडप में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई हैं। द्वार पर दो द्वारपाल प्रतिमाएं है। मंदिर के निकट ही एक सुंदर सरोवर है। इसके मध्य में एक छोटा-सा मंडप बना है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रथान मीनार - राजा गोपुरम
सात मंजिला 134 फुट लंबा एक भव्य विशालकाय मीनार आंखों के लिए सुखद है। यह पारंपरिक दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। बिना रंगी मीनार में कई जटिलताएं और आश्चर्यजनक रूप से हजारों उच्च कलात्मक मूर्तियां हैं। यहा देवताओं की उत्कृष्ट रूप से चित्रित चित्र हैं और पुराणों के दृश्यों को देखने के लिए अद्भुत हैं। इस सफेद मीनार पर पड़ने वाले सूर्य की किरणों के साथ पूर्व में बहुमुखी मीनार की सुंदरता और बढ़ जाता है। यह बताया जाता है कि इस मीनार की आंतरिक दीवार पर चित्रकारी का एक उत्कृष्ट संग्रह है और प्रत्येक स्तर को हर्बल रंगों के साथ चित्रित किया गया है।
त्रिलिंगम
यह लिंगम केवल शिव को ही नही अपितु भगवान विष्णु व ब्रह्मा को भी समर्पित हैं इसलिये इसे त्रिलिंगम कहा जाता है। यह यहाँ की मुख्य मूर्ति हैं जो त्रिदेव को समर्पित है। तीनों भगवानों को एक साथ प्रदर्शित करने के कारण यह पूरे भारत वर्ष में अनूठी हैं।
शिवजी भगवान का महासदाशिवम रूप (Suchindram Temple Mahasadashiva)
यहाँ भगवान शिव की अति प्राचीन मूर्ति स्थित हैं जिनके 25 मुख, 75 आँखे व 50 हाथ हैं। भगवान शिव के ऐसे रूप को महासदाशिवम नाम दिया गया हैं। यह मूर्ति अद्भुत स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
भगवान हनुमान की मूर्ति (Suchindram Temple Hanuman height)
मंदिर के अंदर उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर भगवान हनुमान की अति विशाल मूर्ति स्थापित हैं जो लगभग 22 फीट ऊँची हैं जिसे एक ही ग्रेनाइट के पत्थर को काटकर बनाया गया हैं। यह एक तरह से भारत की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक हैं व साथ ही इस मंदिर की भी मुख्य पहचान हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान हनुमान ने माता सीता को अशोक वाटिका में इसी रूप में दर्शन दिए थे और उन्हे श्रीराम की मुद्रिका दिखाई थी, जिनका रेखांकन इस मंदिर में मूर्ति के रूप में किया गया है।
नंदी की विशाल प्रतिमा (Thanumalayan Mandir Nandi statue)
मंदिर में 800 वर्ष पुरानी भगवान शिव के वाहन नंदी की भी एक विशाल मूर्ति हैं जिसकी ऊंचाई 13 फीट व लंबाई 21 फीट हैं। यह भी नंदी की मूर्तियों में भारतवर्ष में विशालतल मूर्तियों में से एक है।
चार मुख्य स्तंभ (Suchindram Temple musical pillars)
अलंगर मंडप में चार मुख्य स्तंभ हैं जो एक ही चट्टान के पत्थरों से बने है। इन चारो में से विभिन्न वाद्य यंत्रो सितार, मृदंग, जलतरंग व तंबूरे के संगीत की ध्वनि आती है। प्राचीन समय में मंदिर में पूजा-अर्चना व आरती के समय इन्हीं स्तंभों से संगीत उत्पन्न किया जाता था। इस चारों वाद्ययंत्रों की सबसे अनोखी बात यह हैं कि ये चारों एक ही चट्टान से बने होने के बाद भी अलग-अलग धुन निकालते हैं।
नृत्य कक्ष (नटराज मंडप)
इसके अलावा यहाँ 1035 स्तंभ हैं जिनसे ध्वनियाँ निकलती हैं। इस कक्ष को नृत्य मंडप या कक्ष के नाम से भी जाना जाता हैं।
मंदिर का गोपुरम (Thanumalayan Temple Gopuram)
मंदिर का गोपुरम 134 फुट ऊंचा है। यह सप्तसोपान गोपुरम मंदिर को अद्भुत भव्यता प्रदान करता है। मंदिर का गोपुरम जो दूर से भी दिखाई पड़ता हैं उस पर विभिन्न नक्काशियां करके चित्र व भित्तियां उकेरी गयी हैं। इसी के साथ यहाँ के विभिन्न स्तंभों पर भी अलग-अलग आकृतियाँ उकेरी गयी हैं जिससे मंदिर की भव्यता और भी अधिक बढ़ जाती हैं।
कोनायाडी वृक्ष
यहाँ पर एक से दो हज़ार वर्ष पुराना चमकदार पत्तियों वाला एक वृक्ष भी हैं जिसका तना अंदर से खोखला है। इसे वहां की स्थानीय (तमिल) भाषा में कोनायाडी वृक्ष के नाम से जाना जाता हैं। इसी वृक्ष के तने में त्रिमूर्ति स्थापित है।
सुच्चिन्द्रम मंदिर खुलने का समय (Suchindram Temple timings)
मंदिर आम भक्तों के लिए सुबह 4:30 बजे खुल जाता हैं जो दोपहर 1 बजे बंद हो जाता हैं। इसके बाद मंदिर शाम में 4 बजे के पास खुलता हैं जो रात्रि 8 बजे पूजा के पश्चात बंद हो जाता हैं।
थानुमलायन मंदिर कैसे पहुंचे (How to reach Suchindram Temple)
मंदिर तक पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी का रेलवे स्टेशन हैं जहाँ से मंदिर लगभग 13 किलोमीटर की दूर पर स्थित हैं। यदि आप हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो यहाँ से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा थिरुवनंतपुरम/ त्रिवेंद्रम हवाई अड्डा हैं जहाँ से मंदिर लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। वहां से आगे आप ट्रेन, बस या निजी वाहन से यात्रा कर सकते हैं।
थानुमलायन मंदिर में क्या पहने (Suchindram Temple dress code)
मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों व महिलाओं का भारतीय परिधान में होना अनिवार्य हैं। यदि आप विदेशी या छोटे कपड़े पहनकर मंदिर में जाना चाहते हैं तो आपको अनुमति नही मिलेगी। साथ ही मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार का बैग या अन्य कोई सामान ले जाने की भी अनुमति नही हैं। यह सब सामान आपको बाहर जमा करवाना होगा।
मंदिर के मुख्य आयोजन (Car festival Suchindram Temple)
सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार व तमिलनाडु के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन मंदिर में दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। रथ यात्रा का आयोजन 10 दिनों तक चलता हैं। इसमें सभी भगवानों को रथों पर लेकर विशाल यात्रा निकाली जाती हैं।
इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
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