पुलित्जर पुरस्कार (Pulitzer Prize)
1917 में प्रारम्भ किया गया पुलित्जर पुरस्कार (Pulitzer Prize), संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रमुख पुरस्कार है जो हर साल 21 श्रेणियों में समाचार पत्रों की पत्रकारिता, साहित्य एवं संगीत रचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को प्रदान किया जाता है। इसके तहत विजेता को एक प्रमाण पत्र और 15 हजार अमेरिकी डॉलर (करीब 96 लाख रुपये) का नकद पुरस्कार दिया जाता है। 1980 से हर साल इसके लिए अंतिम सूची में शामिल प्रविष्टियों की भी घोषणा की जाती है।
इसकी स्थापना हंगरी मूल के अमेरिकी समाचार पत्र प्रकाशक जोसेफ पुलित्जर ने की थी तथा सम्प्रति इसका काम कोलम्बिया विश्वविद्यालय देखता है। जोसेफ ने अपनी वसीयत में कोलंबिया विश्वविद्यालय को पत्रकारिता स्कूल शुरू करने और पुरस्कार स्थापित करने के लिए पैसे दिए थे। इस पुरस्कार और छात्रवृत्ति के लिए उन्होंने 250,000 डॉलर आवंटित किए थे।
जोसेफ के नाम पर पत्रकारिता में चार पुरस्कार के अलावा पत्र और नाटक में चार, शिक्षा में एक, ट्रैवलिंग स्कॉलरशिप में चार पुरस्कार दिए जाते हैं। उनकी मृत्यु 29 अक्टूबर 1911 के बाद पहली बार पुलित्जर पुरस्कार 4 जून 1917 में दिया गया। आज भी पुलित्जर पुरस्कार, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दिया जाने वाला एक प्रमुख पुरस्कार है।
सबसे पहले भारतीय के तौर पर पुरस्कार पाने वालों में गोबिंद बिहारी लाल का नाम आता है। वो भारतीय-अमेरिकी पत्रकार और इंडिपिंडेंट एक्टिविस्ट थे। उन्होंने लाला हर दयाल के रिश्तेदार और करीबी सहयोगी के तौर पर गदर पार्टी में शामिल होकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग भी लिया था। गोबिंद बिहारी लाल को साल 1937 में पुलित्जर से नवाजा गया था। विज्ञान लेखक के तौर पर उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के क्षेत्र में विज्ञान के कवरेज के लिए चार अन्य लोगों के साथ पुलित्जर पुरस्कार साझा किया था।
साल 2000 में भारतीय अमेरिकी लेखिका झुंपा लाहिड़ी ने कथा संग्रह "इंटरप्रिटर्स ऑफ मैलाडीस" के लिए पुलित्जर जीता। उन्हें "distinguished fiction by an American author, preferably dealing with American life" के लिए 5,000 डॉलर्स से सम्मानित किया गया था। बता दें कि लाहिड़ी का जन्म 1967 में लंदन में हुआ था और उनकी परवरिश रोड आइलैंड में हुई थी। उनके माता-पिता भारत में पैदा हुए और पले-बढ़े थे।
फिर साल 2003 में भारतीय मूल की पत्रकार-लेखिका गीता आनंद को पुलित्ज़र अवॉर्ड से नवाजा गया था। उन्हें वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए खोजी रिपोर्टर और फीचर लेखक के तौर पर 2003 में "स्पष्ट, संक्षिप्त और व्यापक कहानियों के लिए पुरस्कार दिया गया, जिसने अमेरिका में कॉर्पोरेट घोटालों की जड़ों, महत्व और प्रभाव को उजागर किया था।
सिद्धार्थ मुखर्जी प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के चौथे व्यक्ति हैं। साल 2011 में उन्हें ये पुरस्कार मिला। वो एक कैंसर चिकित्सक और शोधकर्ता हैं। वो कोलंबिया विश्वविद्यालय में एक सहायक प्रोफेसर और कोलंबिया में एक स्टाफ कैंसर चिकित्सक हैं। हार्पर कोलिंस द्वारा प्रकाशित उनकी किताब "द एम्परर ऑफ ऑल मैलाड्यूम्स: ए बायोग्राफी ऑफ कैंसर" को जूरी ने पुरस्कार के लिए चुना था।
विजय शेषाद्री को साल 2014 में उनके पोइट्री लेखन के लिए पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया। बता दें कि जब विजय पांच साल के थे, तभी उनके माता-पिता बंगलुरु से संयुक्त राज्य अमेरिका शिफ्ट हो गए थे। उनके पिता ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में रसायन शास्त्र पढ़ाते थे। उनके कविता संग्रह 3 सेक्शंस के लिए ये पुरस्कार दिया गया था।
जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो पत्रकारों को पुलित्जर अवॉर्ड से नवाजा गया है। उन्हें अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 (Article 370) के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के बाद क्षेत्र में जारी बंद के दौरान अभूतपूर्व काम के लिए ‘फीचर फोटोग्राफी' श्रेणी में 2020 के पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है। ये तीन फोटो पत्रकार मुख्तार खान, यासीन डार और चन्नी आनंद हैं।
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