अचानक नदी से बाहर आया 500 साल पुराना गोपीनाथ (भगवान विष्णु का) मंदिर, 19वीं शताब्दी में हुआ था जलमग्न
ओडिशा (Odisha) के नयागढ़ जिले के भापुर ब्लॉक में एक 500 साल पुराना एक लुप्त मंदिर के अंश महानदी (Mahanadi River) के गर्भ से बाहर आ गया। कई सालों पहले यह मंदिर डूब गया था। इसमें भगवान गोपीनाथ की प्रतिमाएं थीं, जिन्हें भगवान विष्णु का रूप माना जाता है।
INTACH ने की है खोज
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH/इनटैक) की आर्केलॉजिकल सर्वे टीम ने हाल ही में दावा किया है कि उन्होंने कटक से महानदी में एक प्राचीन जलमग्न मंदिर की खोज की है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के निर्माण शैली आज से 400 से 500 साल पुरानी है। मूल गांव में ऐसे कई मंदिर मौजूद थे।
60 फीट लंबा था मंदिर
जलमग्न मंदिर की चोटी की खोज नयागढ के पास पद्मावती गांव (Padmavati village) में बाडेश्वर के पास नदी के बीच में की गई थी। अब से 11 साल पहले भी इसी तरह यह मंदिर पानी से बाहर आ गया था।
बलुआ पत्थर से बना मंदिर (Temple) करीब 60 फीट ऊंचा है। मंदिर की बनावट से ये अंदाजा लगाया गया कि यह मंदिर 15वीं शताब्दी के आखिर या 16वीं शताब्दी की शुरुआत में बना था।
प्रोजेक्ट असिस्टेंट दीपक कुमार नायक ने ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में रूचि रखने वाले रवीन्द्र कुमार राणा की मदद से यहां की जांच की थी। दीपक कुमार ने बताया कि गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple) भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का ही मंदिर था।
19वीं शताब्दी में नदी में डूबे कई गांव और मंदिर
स्थानीय लोगों के मुताबिक, 1800 से 1900 शताब्दी में यहां पद्मावती गांव हुआ करता था। कालांतर (1933) में महानदी द्वारा अपना रास्ता बदलने और बार-बार भयंकर बाढ़ आने और नदी का स्तर बढ़ने के कारण मूल पद्मावती गांव महानदी में लीन हो गया। इसके कारण गांव के लोग इस स्थान से स्थानान्तरित होकर टिकिरीपड़ा, बीजीपुर, रगड़ीपड़ा, हेमन्तपाटणा, पद्मावती (नया) आदि गांवों में बस गए। इस दौरान गांव वालों ने न केवल खुद के स्थान को बदला, बल्कि मंदिर के देवताओं को भी अपने साथ ले गए। जो वर्तमान में पद्मावत गांव का गोपीनाथ देव का मंदिर है। लेकिन नदी में यहां की कुछ कला और संस्कृति की निशानी भी लीन हो गई। इलाके के लोगों का ये कहना है कि ये प्राचीन गोपीनाथ मंदिर की हिस्सा है।
दीपक ने बताया जब यह यह क्षेत्र पानी में विलीन हुआ, उस समय वहाँ कई देवता थे जिन्हें स्थानांतरित कर दिया गया था। उनमें से गोपीनाथ, नृसिंह, रास बिहारी, कामना देवी और दधिभमण उल्लेखनीय थे। जिन्हें आज भी निकटवर्ती टिकरीपाड़ा गाँव और पद्मवती गाँव में पूजा जाता है।
इस गांव के लोग हथकरघा और कुटीर उद्योग की मदद से अपना जीवन यापन करते थे। परिवाहन के लिए पानी के रास्तों का उपयोग कर गांव के लोग अपना सामान दूसरे स्थानों तक लेकर जाते थे।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जिस स्थान पर ये मंदिर मिला है, उस इलाके को सतपताना कहते हैं। यहां पर एक साथ सात गांव हुआ करते थे। सातों गांवों के लोग इसी मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा किया करते थे। पद्मावती गांव भी इन सात गांवों में से एक था।
जल स्तर बढ़ने से डूबे करीब 22 मंदिर
रविंद्र राणा ने कहा कि पिछले एक साल में, बदलते जल स्तर के कारण इसे 4 से 5 दिनों तक देखा गया था। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस जगह करीब 22 मंदिर थे, जो पानी का स्तर बढ़ने के बाद नदी में डूब गए।
पद्मावती ग्रामवासी सनातन साहू ने कहा है कि सन् 1933 में हमारा गाँव सम्पूर्ण रूप से नदी में विलीन हो गया था। उस समय हमारी उम्र 6 साल थी। हम पाँच भाई-बहनों ने पद्मवती यूपी स्कूल में शरण ली थी। उस साल बाढ़ आने के साथ नदी गतिपथ बदलकर हम सबके लिए काल बन गई थी।
महानदी घाटी स्थित विरासतों पर चल रहा है शोध
महानदी प्रोजेक्ट (INTACH) के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर अनिल कुमार धीर (Anil Kumar Dheer) ने बताया कि इंटैक ओडिशा ने अपनी परियोजना के तहत महानदी घाटी स्थित विरासतों के दस्तावेजीकरण (डॉक्यूमेंटेशन ऑफ दि हेरिटेज आफ दि महानदी रिवर वैली प्रोजेक्ट) का काम पिछले साल शुरू किया था। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में मौजूद महानदी के उद्गम स्थल से लेकर समुद्र में मिलने तक (ओड़िशा के जगतसिंहपुर जिले के पारादीप तक) के 1700 किलोमीटर (दोनों तरफ के किनारे से 5 से 7 किमी. के बीच) के रास्ते में मौजूद सभी स्पष्ट और गैर स्पष्ट विरासत का विधिवत सर्वेक्षण किया जा रहा है और यह अंतिम चरण में है। धीर ने बताया कि अगले साल कई भागों में करीब 800 स्मारकों पर रिपोर्ट जारी की जाएगी।
इंटैक की राज्य समन्वयक अमिया भूषण त्रिपाठी ने बताया कि भारत में किसी नदी का इस तरह का यह पहला अध्ययन है और न्यास ने पायलट परियोजना के तहत यह किया है। पुरानी जगन्नाथ सड़क और प्राची घाटी के दस्तावेजीकरण परियोजना का नेतृत्व कर चुके धीर ने कहा कि महानदी की संपन्नता और विविधिता का अभी तक ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि कई प्राचीन स्मारक या तो नष्ट हो गए हैं या जर्जर अवस्था में हैं। धीर ने कहा कि हीराकुंड डैम में भी 65 मंदिरों के मौजूद होने के प्रमाण हैं। राज्य की विभिन्न नदियों में भी ढेरों मंदिर मौजूद हैं, जिनका सर्वे किया जाना चाहिए।
धीर ने कहा कि हम जल्द ही आईएनटीएसीएच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को पत्र लिख कर मंदिर को उचित स्थान पर स्थानांतरित करने का अनुरोध करेंगे क्योंकि उनके पास इसकी तकनीक है। राज्य सरकार को भी इस मामले को एएसआई के समक्ष उठाना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें