छह सौ साल पुराना है महाकालेश्वर मंदिर
मढ़िया मुहल्ला स्थित महाकालेश्वर मंदिर व मढ़ियों का निर्माण 14वीं शताब्दी में टीकमगढ़ महाराज के निर्देशानुसार नागा साधु/गोसाइयों द्वारा किया गया था। यहां एक मुख्य मंदिर और बारह अन्य मंदिर समाधियां हैं। 16वीं शताब्दी के मध्य में झांसी पर मराठों का आधिपत्य होने के बाद यहां मराठों द्वारा पूजा अर्चना की जाने लगी। मराठों के बाद से अंग्रेजी शासन तक यहां किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं था तथा स्थानीय निवासी यहां पूजा करते थे। 1950 - 60 के मध्य मुस्लिम समुदाय के लोग यहां रहने लगे। राजस्व अभिलेखों में उक्त मंदिर व मढ़िया मौजा झांसी सिविल लाइन के आराजी संख्या 409 के जुज भाग में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल तकरीबन 80 डिसमिल है।
इसके बाद झांसी पर अंग्रेजों ने आक्रमण किया। अंग्रेजों ने अपनी छावनी इस मंदिर के ठीक पीछे बना ली। मंदिर बीच में आने के कारण अंग्रेजों पर रानी के तोपची सही निशाना नहीं लगा पा रहे थे। इसके बाद रानी ने आदेश दिया था कि यदि मंदिर को नुकसान पहुंचे तो इसकी परवाह नहीं की जाए, लेकिन दुश्मनों का मरना बेहद जरूरी है। इस आदेश के बाद रानी के तोपचियों ने गोले बरसाने शुरू कर दिए। कई तोप के गोले मंदिर पर भी गिरे। इसके निशान आज भी मौजूद है। इसके बाद अंग्रेजों को यहां से भागना पड़ा, लेकिन मंदिर एकदम सही सलामत रहा। इस रोचक इतिहास की वजह से भी यह मंदिर शहर के लोगों के लिए एक बड़ी आस्था का केंद्र बन गया है।
चार साल पहले ये मंदिर तब सुर्खियों में आया था, जब यहां जलाभिषेक करने आ रहे गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को कानपुर में हिरासत में ले लिया गया था।
तीन शताब्दी पुराने मढ़िया महाकालेश्वर मंदिर क्षेत्र को पुराना स्वरूप दिया जा रहा है। जन सहयोग से इसके जीर्णोद्धार का काल चल रहा है।
अब मंदिर परिसर को उसका पुराना स्वरूप लौटाया जा रहा है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर जमी काई हटाई जा रही है। दीवारों की मरम्मत कर पुरानी नक्काशी बनाई जा रही है। इसके बाद रंगरोगन होगा। मंदिर के पुजारी रामेश्वर प्रसाद उपाध्याय और विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अंचल अड़जरिया ने बताया कि ये काम जन सहयोग से हो रहा है। शिवरात्रि से पहले मंदिर अपने पुराने स्वरूप में आ जाएगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें