गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024

कार्तियानी अम्मा, केरल


96 साल की महिला ने परीक्षा में किया टॉप, आए 100 में से 98 नंबर

किसी भी चीज को करने, सीखने और समझने के लिए जुनून की जरूरत होती है और ऐसा ही कमाल का जुनून देखने को मिला केरल के अलाप्पुझा जिले के चेप्पड़ गांव के मुत्तोम निवासी कार्तियानी अम्मा के अंदर। जिन्होंने 96 साल की उम्र में साक्षरता परीक्षा दी। इस बुजुर्ग महिला ने ना सिर्फ ये परीक्षा दी बल्कि 100 में से 98 नंबर लाकर पहला स्थान भी हासिल किया। कार्त्यायनी अम्मा ने न केवल दक्षिणी राज्य के साक्षरता मिशन के तहत 96 साल की उम्र में सबसे उम्रदराज छात्रा होने के लिए प्रसिद्धि हासिल की थी, बल्कि चौथी कक्षा के समकक्ष परीक्षा 'अक्षरलक्षम' परीक्षा में उच्चतम अंक हासिल करने के लिए भी प्रसिद्धि हासिल की थी।

42 हजार उम्मीदवारों में से बनी थीं टॉपर

साक्षरता परीक्षा (लिटरेसी परीक्षा) की आयोजन 5 अगस्त 2018 को हुआ था जिसमें करीब 42933 लोगों ने हिस्सा लिया था। जिसमें नागरिकों की साक्षरता की जांच की जाती है। अम्मा उन्हीं लोगों में से सबसे उम्रदराज महिला थीं।

रातों रात मशहूर हुईं थी अम्मा

कार्तियानी अम्मा 'चेप्पाड राजकीय एलपी स्कूल' में परीक्षा में बैठी थीं। पढ़ने-लिखने को प्रेरित इस बुजुर्ग महिला ने 6 महीने पहले राज्य साक्षरता मिशन के एक कार्यक्रम में नामांकन कराया था। इस परीक्षा को उन्होंने पास कर लिया और उन्हें योग्यता मुताबिक चौथी कक्षा में पढ़ने के लिए भेजा गया। शुरू से ही उनकी पढ़ने और लिखने में बहुत रुचि थी। परीक्षा में भाग लेने के बाद से ही वह रातों रात सोशल मीडिया पर मशहूर हो गईं।

इस परीक्षा में 100 अंकों के सवाल पूछे गए थे, जिसमें लिखने, पढ़ने और गणित की समझ की जांच की गई थी। उन्होंने अपनी रीडिंग टेस्ट में 30 में से 30 अंक, मलयालम लेखन में 40 में से 40 अंक और गणित में 30 में से 28 अंक प्राप्त किए। बता दें रिजल्ट बुधवार को जारी हुआ था। वहीं इस परीक्षा में कई जेलों के कैदियों ने भी हिस्सा लिया था।

अपनी उपलब्धि पर टिप्पणी करते हुए, कार्थ्ययनी अम्मा ने मीडिया को बताया कि प्रश्नपत्र में कुछ ऐसे भाग शामिल नहीं थे जो उन्होंने परीक्षा के लिए पढ़े थे। उन्होंने कहा, "मैंने बिना किसी कारण के बहुत कुछ सीखा। मेरे लिए परीक्षाएँ बहुत आसान थीं।" 'अक्षरालक्षम' परीक्षा के लिए कार्थ्ययनी अम्मा के पास बैठे रामचंद्रन पिल्लई ने 100 में से 88 अंक प्राप्त किए।

अम्मा ने 100 में से 98 अंक लाकर उन सभी लोगों को चौंका दिया जो ये सोचते हैं कि पढ़ने- लिखने की एक उम्र तय है। उन्होंने  96 साल की उम्र में सभी को पीछे छोड़ दिया।

कुल 42,933 ने ये परीक्षा दी। जिसमें SC वर्ग के 8,215, ST वर्ग के 2,882 उम्मीदवार शामिल थे। जिनमें  37,166 उम्मीदवार महिलाएं हैं।

केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण (केएसएलएमए) की परियोजना 'अक्षरलक्षम', जिसका उद्देश्य केरल के वृद्ध और वंचित लोगों के बीच निरक्षरता को समाप्त करना है, ने इस वर्ष 99.08 प्रतिशत सफलता प्राप्त की है, क्योंकि 43,330 उम्मीदवारों में से 42,933 उम्मीदवार परीक्षा में सफल हुए हैं। 'अक्षरलक्षम' कार्यक्रम की शुरुआत केरल सरकार ने 26 जनवरी 2018 को की थी।

बता दें कि केरल सरकार ने 'अक्षरालक्षम साक्षरता मिशन' नाम का अभियान चलाया था, जिसका उद्देश्य केरल में 100 फीसदी साक्षरता करना है।

60 साल की बेटी से ली प्रेरणा

शहर से करीब एक घंटे की ड्राइव पर स्थित कार्थायिनी अम्मा ने जनवरी 2018 में अपनी स्कूली शिक्षा तब शुरू की, जब ग्राम पंचायत की साक्षरता मिशन ब्रिगेड सरकारी आवास योजना के तहत लक्षम वीडू कॉलोनी में उनके घर पहुंची। लेकिन साक्षरता मिशन के लोगों के उनके पास आने से पहले ही कार्थायिनी अम्मा को पढ़ाई में रुचि थी। कार्तियानी अम्मा कहती हैं कि उन्हें उनकी बेटी ने प्रेरित किया था। दो साल से भी ज़्यादा समय पहले, उनकी 60 वर्षीय बेटी अम्मिनी अम्मा ने साक्षरता मिशन का कोर्स साल 2016 में पास किया, जो औपचारिक शिक्षा प्रणाली में कक्षा 10 के बराबर है। अपनी बेटी को बैग पैक करते और स्कूल के लिए निकलते देखकर कार्थायिनी अम्मा को भी कलम और कागज़ उठाने की प्रेरणा मिली।

अम्मा तो जब साक्षरता मिशन जैसे प्रोग्राम के बारे में पता चला तो उन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया और मेहनत के साथ पढ़ना और लिखना सीखा। खास बाात ये है कि अम्मा के बारे में जानकर 90 साल की उम्र के करीब के 30 और बुजुर्गों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और पढ़ना शुरू किया।

अम्मा बताती हैं, "पैसों की तंगी के कारण मैं स्कूल नहीं जा पाई थी। मैंने अपने बच्चों की देखभाल की। जब मेरी बेटी ने दसवीं की परीक्षा पास की, मैंने भी वैसा ही करने का सोचा। मैं 100 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पास कर लूंगी।" कुछ महीने पहले ही अक्षरलक्षम मिशन के तहत एक और परीक्षा में अम्मा ने पूरे नंबर हासिल किए थे। कार्तियानी अम्मा ने साक्षरता परीक्षा में 100 में 98 अंक आने पर वह काफी खुश हैं। उन्होेंने कहा वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं।

कभी नहीं स्कूल, करती थीं घरों में काम

कार्तियानी अम्मा का मन शुरू से ही पढ़ाई- लिखाई में लगता था। आपको जानकर हैरानी होगी वह कभी भी अपने जीवन में स्कूल नहीं गईं। वहीं अपने संभालने के लिए स्वीपर और दूसरों के घरों में काम किया। वह अपने बच्चों और पोते-पोते के साथ रहती हैं। उनके पति की 1961 में मृत्यु हो गई। उनकी बेटी अम्मिनिअम्मा, जो खुद भी स्कूल छोड़ चुकी थीं, ने अपनी मां को कक्षाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

उन्हें मार्च 2020 में, उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार मिला। केरल ने इस वर्ष की शुरुआत में गणतंत्र दिवस परेड में "नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण की लोक परंपराओं" की एक झांकी प्रस्तुत की, जिसमें कार्त्यायनी शामिल थीं।

2019 में, कनाडा की एक संस्था 'कॉमनवेल्थ लर्निंग' ने कार्तियानी अम्मा को अपना गुडविल एंबेसडर नियुक्त किया। जिसमें लगभग 53 देश शामिल हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत में उन्होंने 10वीं कक्षा पूरी करने की इच्छा व्यक्त की थी, साथ ही उन्होंने आगे पढ़ाई करने में भी रुचि दिखाई थी - विशेष रूप से कंप्यूटर की मूल बातें सीखने में।

शेफ-लेखक विकास खन्ना ने कार्त्यायनी अम्मा की प्रेरणादायक कहानी पर एक समीक्षकों द्वारा प्रशंसित वृत्तचित्र और उनकी उल्लेखनीय जीवन यात्रा पर एक सचित्र बच्चों की किताब का निर्देशन किया।

डॉक्यूमेंट्री से लिया गया शीर्षक ' बेयरफुट एम्प्रेस' ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशित किया गया है।

गुरुवार 01 नवंबर केरल के मुख्यमंत्री सेमिनार हॉल में होने वाले सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री पिनरई विजयन 96 वर्षीय, देश के लिए मिसाल बन चुकी वृद्ध करथियानी अम्मा को सम्मानित किया। अम्मा ने कहा- ‘मुझे पता था जितना ज्यादा में पढ़ाई करूंगी उससे ज्यादा मेरे नंबर आएंगे।’ उन्होंने कहा- मैं छोटे बच्चों को पढ़ाई करती देखती थी। मैं भी चाहती थी कि पढ़ाई करूं। जब बच्चों ने पूछा तो मैंने कहा क्यों नहीं, मैं भी पढ़ूंगी। उन्होंने कहा- 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद मैं कंप्यूटर सीखना चाहती हूं। खाली समय में मैं कंप्यूटर चलाउंगी और टाइपिंग करूंगी। जब मुझे पढ़ाई करना चाहिए था तब मैं नहीं कर पाई। लेकिन खुशी है कि अब पढ़ाई पूरी कर रही हूं।’ कार्तियानी अम्मा 96 की उम्र में भी स्वस्थ हैं, कुछ भी हो लेकिन दिन में दो बार चाय पीना नहीं भूलती हैं।

96 साल की उम्र में साक्षरता परीक्षा में टॉप करने वाली कार्तियानी अम्मा को केरल के एजुकेशन मिनिस्टर सी. रवींद्रनाथ ने लैपटॉप गिफ्ट किया है। उन्होंने अलपुझा जिले के चेप्पाड गांव में अम्मा के घर जाकर एक नया लैपटॉप दिया। जिसे पाने की खुशी अम्मा के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। बता दें, उन्हें 'Dell' कंपनी का लैपटॉप गिफ्ट किया गया है जिसकी कीमत 25, 000 हजार रुपये है। सरप्राइज गिफ्ट से खुश अम्मा ने शिक्षा मंत्री के सामने ही अंग्रेजी में अपना नाम टाइप कर मंत्री को आश्चर्यचकित कर दिया। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक शिक्षामंत्री उस क्षेत्र के आधिकारिक दौरे पर थे। किसी ने उन्हें बताया कि अम्मा कंप्यूटर सीखना चाहती हैं। इतना सुनते ही मंत्री लैपटॉप की शॉप पर गए और 25 हजार का लैपटॉप खरीद कर अम्मा को गिफ्ट कर दिया।

केरल राज्य साक्षरता मिशन के तहत सबसे बुजुर्ग शिक्षार्थी बनकर 2018 में सुर्खियाँ बटोरने वाली कार्तियानी अम्मा का मंगलवार, 10 अक्टूबर को तटीय जिले अलप्पुझा में उनके निवास पर निधन हो गया। वह 101 वर्ष की थीं। बताया जाता है कि स्ट्रोक के कारण वह कुछ समय तक बिस्तर पर रहीं।

गणतंत्र दिवस 2018 पर केरल राज्य साक्षरता मिशन अथॉरिटी ने 'अक्षरालाक्षम' परियोजना शुरू की थी जिसका उद्देश्य केरल में 100 फीसदी साक्षरता करना है। इसके जरिए आदिवासियों, मछुआरों और गरीब लोगों के बीच साक्षरता का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। 

2018 में गणतंत्र दिवस पर केरल सरकार द्वारा शुरू की गई 'अक्षरलक्षम' साक्षरता परियोजना राज्य भर में 20,86 मान्यता प्राप्त शिक्षण केंद्रों के माध्यम से संचालित होती है। केरल के 21,908 वार्डों में किए गए परीक्षण सर्वेक्षण के बाद शिक्षण केंद्रों की स्थापना की गई।

केएसएलएमए की अध्यक्ष पीएस श्रीकला ने कहा, "हम उन लोगों को बेहतर शिक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए तत्पर हैं, जिन्हें विभिन्न कारणों से अपनी स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ी।" "वित्तीय और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, आस-पास के क्षेत्रों में स्कूलों की कमी, माता-पिता से समर्थन की कमी और स्कूल में बुरे अनुभवों ने उन्हें अपनी शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर किया होगा। यह 'अक्षरलक्षम' परियोजना का केवल पहला चरण है। हमारा लक्ष्य केरल में 4 वर्षों के भीतर सभी 18.5 लाख पहचाने गए निरक्षरों को साक्षर बनाना है," उन्होंने कहा।



बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

कुट्टियाम्मा (Kuttiyamma), केरल


केरल में 104 साल की बुर्जुग महिला ने किया कमाल, राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 89 अंक हासिल किए

कहते हैं पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती और भारत के सबसे दक्षिणी राज्य केरल की एक बूढ़ी दादी अम्मा ने ये साबित कर दिखा दिया है। केरल (Kerala) के कोट्टयम (Kottayam) में रहने वाली एक 104 वर्षीय सबसे उम्रदराज महिला ने राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा (State Education Exam) में 89 अंक हासिल किए हैं। जिस उम्र में इंसान को दिखाई भी देना बंद हो जाता है , चलने फिरने में परेशानी होती है उस उम्र में केरल की इस दादी अम्मा ने साक्षरता परीक्षा पास कर गजब का रिकॉर्ड बनाया है। बुजुर्ग महिला का नाम कुट्टियाम्मा (Kuttiyamma) है। उनकी शिक्षिका रेहना ने बताया कि कुट्टियाम्मा को पढ़ाई का शौक है। वह सीखती और लिखती हैं, उन्होंने केरल राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 100 में से 89 अंक प्राप्त किए। इस परीक्षा में उन्होंने काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया है। कुट्टियाम्मा ने कारनामा करके लोगों के सामनें एक मिशाल पेश की है। साक्षरता टेस्ट के बाद अब उनका लक्ष्य इक्विवेलेंस टेस्ट पास करना है। इसके लिए वो अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही हैं। इसके लिए वो रोजाना 2 घंटे पेपर पढ़ती हैं।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि, उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है। उन्होंने अपनी साक्षरता परीक्षा की तैयारी करते समय पहली बार पेन और पेपर उठाया था। पहले वह सिर्फ पढ़ सकती थीं, लेकिन साक्षरता प्रेरक रेहना की मदद से, उसने लिखना सीखा और अपने घर पर प्रत्येक सुबह और शाम आयोजित होने वाली कक्षाओं में कर्तव्यनिष्ठा से भाग लिया। कुट्टियाम्मा को अक्षरों में से रूबरू कराने वाली रिहाना जान बताती है कि साक्षरता टेस्ट के बाद इक्विवेलेंसी टेस्ट पास करके वो चौथी कक्षा की पढ़ाई शुरू करेंगी।

104 साल की महिला को परीक्षा में 89 अंक मिले

कोट्टायम की रहने वाली बुजुर्ग महिला कुट्टियम्मा ने जब केरल राज्य साक्षरता मिशन के टेस्ट में 89 प्रतिशत अंक हासिल किए तो हर जगह से उनकी सराहना होने लगी। केरल के शिक्षा मंत्री वासुदेवन शिवनकुट्टी के साथ-साथ आम लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनकी तारीफ कर रहे हैं। केरल के शिक्षा मंत्री वायुदेवन शिवनकुट्टी (Vasudevan Sivankutty) ने एक खुशमिजाज कुट्टियम्मा की तस्वीर ट्वीट की और उन्हें 100 में से 89 अंक प्राप्त करने के लिए शुभकामनाएं दीं। ये साक्षरता टेस्ट कोट्टायम जिले के अयारकुन्नम पंचायत द्वारा आयोजित किया गया था। सुबह और शाम की शिफ्ट में कुट्टियम्‍मा के घर पर ही कक्षाएं लगाई गईं।

जैसे ही परीक्षा (केरल स्‍टेट लिटरेसी मिशन टेस्ट) शुरू हुई, कुट्टियम्मा, जो कम सुन पाती हैं, ने निरीक्षकों को याद दिलाया - "जो भी बोलो, जोर से बोलो।"

उनसे पहला सवाल यह था कि ये पंक्तियाँ किसने कही थीं - 'ओर्कुका, जीविकालय सर्व जीविकालुम् भूमियुदे अवकाशकाल'? और कुट्टियाम्मा ने अपना स्कोर कार्ड सही उत्तर वैकोम मुहम्मद बशीर के साथ खोला। जब उनसे उनकी पाठ्य पुस्तक में किसी कविता की पहली चार पंक्तियां गाने के लिए कहा गया, तो कुट्टियम्मा ने 'मावेली नाडु वान्निदुम कालम...' का पूरा गीत गाया।

परीक्षा के बाद उससे पूछा गया कि उसे कितने अंक मिलेंगे। कुट्टियाम्मा ने बिना दांत वाली मुस्कान बिखेरते हुए कहा - "मैंने वह सब लिख दिया है जो मुझे आता है। अब आप अंक दीजिए।" उनके त्वरित उत्तर से कुन्नुमपुरम आंगनवाड़ी में हंसी की लहर दौड़ गई।

युवाओं का हौसला बढ़ाते हुए कुट्टियम्मा कहती है कि वह अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी किए बगैर दुनिया से विदा नहीं लेंगी।

कुट्टियम्‍मा की 16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। उनके पति का नाम टी के कोन्ति था। वह आयुर्वेद‍िक दवा बेचने वाली एक दुकान में काम करते थे। 2002 में कोन्ति का निधन हो गया था। कुट्टियम्‍मा के पांच बच्‍चे हुए। जानकी, गोपालन, राजप्‍पन, गोपी और रवींद्रन। गोपी आज दुनिया में नहीं हैं। कुट्टियम्‍मा अभी अपने बेटे गोपालन के साथ रहती हैं। खाना पकाने और घर के कामों में दशकों बीत गए, और कुट्टियामा कहती हैं कि वह संतुष्ट थीं लेकिन हमेशा महसूस करती थीं कि कुछ कमी रह गई है।

एक साल पहले ही कुट्टियाम्मा को उनकी पड़ोसी रेहाना जॉन, जो 34 वर्षीय साक्षरता प्रशिक्षक हैं, के प्रोत्साहन से पढ़ना सीखने के लिए राजी किया गया था। जॉन ने कुट्टियाम्मा की अपने पोते-पोतियों की पढ़ाई के प्रति जिज्ञासा को देखा था और उन्हें कुछ किताबें देने की पेशकश की थी। इससे पहले, जॉन की सबसे बुजुर्ग छात्रा 85 वर्ष की थी।

कुछ सौम्य प्रोत्साहन के बाद, वे हर शाम मिलने लगे और साथ मिलकर साक्षरता पुस्तकों पर गहन अध्ययन करने लगे। जॉन ने कहा, "बहुत कम दृष्टि और सुनने की समस्याओं को छोड़कर, वह एक आदर्श और कभी-कभी शरारती छात्रा थी, जिसने मेरे शिक्षण को सार्थक बना दिया।" "मेरे घर पहुँचने से पहले वह हमेशा अपनी पाठ्यपुस्तक, नोटबुक और पेन तैयार रखती है। इसके अलावा, वह मुझे देने के लिए घर पर पकाए गए व्यंजनों में से कुछ अतिरिक्त रखती है।"

कुट्टियाम्मा ने सोमवार को समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, "शिक्षक ने मुझे मलयालम में पत्र पढ़ना और लिखना जैसी हर चीज सिखाई।" उसकी शिक्षिका फेहरा जॉन ने कहा, "वह अब पत्र लिख सकती है और बहुत खुश है।" कुट्टियम्मा को अनेक प्रार्थना गीत गाने में आनंद आता है तथा वह प्रतिदिन समाचार पत्र भी पढ़ती हैं।

104 साल की उम्र में भी बिल्कुल स्वस्थ हैं। कुट्टियम्मा बताती हैं कि अपना काम खुद से करने और आयुर्वेद के चलते वह बिल्कुल फिट हैं। वह बताती है कि उनके जमाने में लड़कियों के पढ़ाई पर जोर नहीं दिया जाता था बल्कि लड़के भी चौथी कक्षा से ज्यादा नहीं पढ़ते थे। उनके पिता एक भूमिहीन किसान थे उस समय पढ़ाई लिखाई पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता था।

केरल के शिक्षा मंत्री ने दी बधाई

केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने शुक्रवार, 12 नवंबर को सोशल मीडिया पर ट्वीट किया, "कोट्टायम की 104 वर्षीय कुट्टियाम्मा ने केरल राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 89/100 अंक हासिल किए हैं। ज्ञान की दुनिया में प्रवेश करने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है। अत्यंत सम्मान और प्यार के साथ, मैं कुट्टियम्मा समेत सभी नए सीखने वालों को उनके सुखद भविष्य की कामना करता हूं।''

खबर वायरल होने के बाद कुट्टियम्मा एक तरह से स्थानीय स्टार बन गई हैं और सोशल मीडिया पर भी उन पर प्यार बरस रहा है। कुट्टियम्मा की इस उपलब्धि से लोग प्रेरित और भावुक हो गए। एक यूजर ने ट्वीट किया, "मैं पूरे सम्मान के साथ कुट्टियम्मा को उनके समर्पण के लिए सलाम करता हूं। यह निश्चित रूप से दूसरों को प्रेरित करेगा।" एक अन्य ने तो यहां तक ​​कहा, "मुझे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करने के लिए धन्यवाद"। एक अन्य यूजर ने लिखा, " भगवान उसका भला करे, अगर आपके पास कुछ करने की इच्छाशक्ति है तो उम्र मायने नहीं रखती।" एक उपयोगकर्ता ने टिप्पणी की, "यह देखकर बहुत खुशी हुई, इसे आयोजित करने वाले समर्थकों को बधाई।"

इससे पहले भी कई वर्षों में बुजुर्ग महिलाएं इन परीक्षाओं में असाधारण रूप से सफल रही हैं। केरल की सौ वर्षीय भागीरथी अम्मा और 96 वर्षीय कार्तियिनी अम्मा को महिला सशक्तिकरण में उनके असाधारण योगदान के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2019 के लिए नारी शक्ति पुरस्कार के लिए संयुक्त रूप से चुना गया था। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कुट्टियाम्मा की तरह, उन्होंने भी केरल साक्षरता मिशन परीक्षा में असाधारण रूप से अच्छा स्कोर किया था। उनसे पहले, अलप्पुझा की कार्तियानी अम्मा ने अक्टूबर 2018 में केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण के एक प्रमुख कार्यक्रम “अक्षरालक्षम” में 100 में से 98 अंक हासिल किए थे।

केरल राज्य साक्षरता मिशन का उद्देश्य क्या है?

1998 में स्थापित केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण (Kerala State Literacy Mission Authority) (केएसएलएमए) राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित है और इसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए साक्षरता, सतत शिक्षा और आजीवन सीखने को बढ़ावा देना है। यह एक स्वायत्त संस्था है जिसे राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित किया जाता है। इस संस्था को केंद्र सरकार के राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तहत शुरू किया गया था। वर्तमान में यह चौथी, सातवीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए समकक्ष शिक्षा कार्यक्रम चलाता है।

साक्षरता कार्यक्रम के मुख्य लाभार्थी निरक्षर, नव-साक्षर, स्कूल छोड़ चुके लोग तथा आजीवन शिक्षा में रुचि रखने वाले व्यक्ति हैं।

भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण द्वारा 'घरेलू सामाजिक उपभोग: भारत में शिक्षा' पर प्रकाशित की गयी रिपोर्ट के अनुसार केरल में 96.2% साक्षरता दर के इस साथ सूची में सबसे ऊपर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लगभग 96.11% पुरुष और 92.07% महिलाएं साक्षर थीं।



रविवार, 29 सितंबर 2024

शिवलिंग, आयरलैंड


आयरलैंड के कई सौ साल पुराने शिवलिंग का रहस्य क्या है

क्या आप दुनिया के सबसे रहस्यमय शिव लिंग (Shiv Linga) के बारे में जानते हैं? ये आयरलैंड (Ireland) में है। वहां की एक पहाड़ी इलाके में इसे गोलघेरे के बीच लगाया गया है। एक लंबे शिव लिंग सरीखा है। कहा जाता है कि इसे आयरलैंड में खास जादुई ताकत रखने वालों ने सैकड़ों साल पहले स्थापित किया था। इसे कई बार नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की गई लेकिन इसका कुछ नहीं बिगड़ा।

आयरलैंड की काउंटी मीथ के तारा (स्टार) की पहाड़ी पर एन फ़ोराध (राजा की सीट) के ऊपर स्थित है। स्टार, जिसका अर्थ संस्कृत में ‘तारा’ है, भगवान शिव की पत्नी का दूसरा नाम है। इसी इलाके में पत्थर के चौड़े ईंटों का घेरा बनाकर उसे स्थापित किया गया था। कब स्थापित किया गया था, इसके बारे में लोगों को सही सही अंदाज नहीं है। वहां के लोग इसे रहस्यमय पत्थर के रूप में जानते हैं। इसे लिआ फेइल (Lia Fail), जिसे (भाग्य का पत्थर) (Stone of Destiny) कहा जाता है। लोग इसकी पूजा करते हैं।

वैदिक परंपरा के अभ्यासकर्ताओं के लिए लिया फेल, शिव लिंगम (Shiva Lingam) से बहुत मेल खाता है। यह शिवलिंग 5500 साल पुराना है। उस समय कोई अन्य धर्म अस्तित्व में भी नहीं था।

1632 से 1636 ईसवीं के बीच लिखा गया फ्रांसीसी भिक्षुओं के एक प्राचीन दस्तावेज - द माइनर्स ऑफ द फोर मास्टर्स के अनुसार, कुछ खास जादुई ताकत रखने वाले एक ग्रुप (चार अलौकिक लोगों) के नेता तुथा डि देनन (Tuatha Dé Danann) ने इसे स्थापित किया था। वे पूर्व-ईसाई गेलिक आयरलैंड के मुख्य देवता थे। लिया फ़ेल, तुआथा डे दानन द्वारा आयरलैंड में लाई गई चार रहस्यमयी वस्तुओं में से एक थी। कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है आयरलैंड में कांस्य बनाना इसी ग्रुप के लोगों ने किया था।

माना जाता है कि Tuatha Dé Danann जो लोग इस पत्थर को आइरलैंड में लेकर आये थे, वह एक जंग हार गये थे। जिस कारण इन्हें आइयरलैंड़ में ही रूकना पड़ा था। किंवदंती के अनुसार, उन्हें आयरलैंड में केवल 'एस सिधे' - परी टीलों के लोगों के रूप में जमीन के नीचे रहने की अनुमति थी।

यह बहुत खास पत्थर था

तुथा डि देनन का मतलब होता है देवी दानू के बच्चे, उन्होंने 1897 बीसी से 1700 बीसी तक आयरलैंड पर शासन किया था। ईसाई भिक्षुओं ने पत्थर को प्रजनन क्षमता की प्रतीक (उर्वरता का प्रतीक) मूर्ति के रूप में देखा। यह इतना महत्वपूर्ण पत्थर था कि इसका उपयोग 500 ईस्वी तक सभी आयरिश राजाओं के राज्यभिषेक के अवसर पर किया गया।

इसकी ऊंचाई तीन फीट तीन इंच है। इस पत्थर को लेकर मान्यताएं है कि जब आयरलैंड के राजा ने इस पर पैर रखा था, तो खुशी से यह पत्थर दहाड़ने लगा था।

यूरोप में देवी दानू थीं और वैदिक परंपरा में भी

यूरोपीय परंपरा में देवी दानू को नदीयों की देवी कहा जाता है। हम उनके नाम से कई नदियों में खोज सकते हैं, जैसे कि देन्यूब, दोन, डनीपर और डिनिएस्टर यह सभी युरोप कि नदियाँ हैं। कुछ आयरिश ग्रंथों में इस देवी के पिता को दागदा (Dagda) के नाम से जाना जाता है, जो आयरलैंड में पिता का प्रतीक माने जाते हैं, इन्हें वहां के लोग एक अच्छा देवता भी मानते हैं।

वैदिक परंपरा में दानू देवी का जिक्र मिलता है, जो दक्ष की बेटी और कश्यप मुनि की पत्नी थीं, जो नदियों की देवी थीं। संस्कृत में दानू शब्द का अर्थ है 'बहने वाला पानी'। दक्ष की दो बेटियां थीं, उनकी दूसरी बेटी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। वैदिक परंपरा को मानने वालों के लिए लिआ फैल नाम शिव लिंग से बहुत मेल खाता है।

कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई

हाल के वर्षों में आयरलैंड के शिवलिंग को कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। जून 2012 में एक व्यक्ति ने पत्थर पर 11 बार आक्रमण किया।

फिर, मई 2014 में किसी ने सतह पर लाल और हरा रंग डालकर खराब करने की कोशिश की। यह बहुत अमानवीय कृत्य था।

पर दुखद स्थिति यह है कि हाल के ही कुछ वर्षों में इस पवित्र पत्थर को अपवित्रता के अधीन कर दिया गया है।  यहां लोग काला जादू और तांत्रिक क्रियाएं करने आते रहते हैं। हैरानी में डालने वाला तथ्य तो यह है कि इस पवित्र पत्थर जो कि हजारों वर्ष पुराना है उसकी देखभाल वहां पर कोई नहीं करता है।

दुनियाभर में शिव की पूजा का प्रचलन था, इस बात के हजारों सबूत बिखरे पड़े हैं। हाल ही में इस्लामिक स्टेट द्वारा नष्ट कर दिए गए प्राचीन शहर पलमायरा, नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा के प्रचलन के अवशेष मिलते हैं।

भारत के बाहर शिवलिंग कहां कहां

- ग्लासगो, स्काटलैंड में सोने के शिवलिंग है।

- तुर्किस्तान के शहर में बारह सौ फुट ऊंचा शिवलिंग है।

- हेड्रोपोलिस शहर में तीन सौ फुट ऊंचा शिवलिंग है।

- दक्षिण अमेरिका के ब्राजील देश में अनेक शिवलिंग हैं।

- कारिथ, यूरोप में पार्वती का मंदिर है।

- मेक्सिको में अनेक शिवलिंग हैं।

- कम्बोडिया में प्राचीन शिवलिंग है।

- जावा और सुमात्रा प्रदेशों में भी कई अनेकों शिवलिंग हैं।

- इंडोनेशिया में अनेक भव्य देवालय एवं प्राचीन शिलालेश हैं। इन शिलालेखों में शिव-विषयक लेख ही अधिक हैं। जिनके आरम्भ में लिखा रहता है - ॐ नम: शिवाय।

- इजिप्ट का सुप्रसिद्ध स्थल और आयरलैंड का धर्मस्थल शंकर का स्मारक लिंग ही है।

- नेपाल, पाकिस्तान और भूटान आदि कई देशों में ईश्वर शिवलिंग के प्रमाण मिलते हैं।

- चीन में नीलसरस्वती का मंदिर है।

शिवलिंग :-

शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठों ओर एक समान सतह बनी होती है। अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है। इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है।

ये तीन भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं। शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए एक मार्ग से निकल जाता है। शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) और एक बिंदू होता है, ये रेखाएं शिवलिंग पर समान रूप से अंकित होती हैं।

सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है। प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है।

शिवलिंग आखिर कितने पुराने

पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं। इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं।

सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं। इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है।

ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबीलोनिया, 2000-250 ईसापूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं थीं।

प्रमुख रूप से शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं - पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग।

पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं

1. देव लिंग :- जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं।

2. असुर लिंग :- असुरों द्वारा जिसकी पूजा की जाए, वह असुर लिंग । रावण ने एक शिवलिंग स्थापित किया था, जो असुर लिंग था।

3. अर्श लिंग :- प्राचीनकाल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित इस तरह के लिंग की पूजा की जाती थी।

4. पुराण लिंग :- पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है।

5. मनुष्य लिंग :- प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है।

6. स्वयंभू लिंग :- भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं। इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। भारत में स्वयंभू शिवलिंग कई जगहों पर हैं।



शनिवार, 28 सितंबर 2024

हथिया नक्षत्र (हस्त नक्षत्र)

हथिया नक्षत्र क्या है और इसमें कितने दिन बारिश होती है? जानें इसके ज्योतिषीय और वैज्ञानिक पहलुओं को

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, देश के अधिकांश हिस्सों में हो रही यह बारिश, हथिया नक्षत्र का प्रभाव है। हथिया नक्षत्र में बारिश की अवधि लगभग एक हफ्ते से 10 दिन तक होती है। यह नक्षत्र सितंबर के दूसरे पखवाड़े से लेकर अक्तूबर के पहले पखवाड़े में आता है। आइए जानते हैं इसके ज्योतिषीय और वैज्ञानिक पहलुओं को -

हथिया नक्षत्र क्या है?

हथिया नक्षत्र (हस्त नक्षत्र) एक ऐसा समय होता है जब लगातार बारिश की हल्की फुहारें होती हैं। किसानों के लिए इस नक्षत्र को काफी अच्छा माना जाता है। माना जाता है कि फसलों के लिए किसान इस नक्षत्र का इंतजार करते हैं। हथिया नक्षत्र 5 तारों का समूह है, जिसकी हाथ के पंजे के जैसी आकृति है। इसका ग्रह स्वामी चंद्र है। पश्चिम में इसे α, β, γ, δ और ε Corvi से दर्शाया जाता है। तारामंडल में इसकी स्थिति 10VI00-23VI20 है। इस अवधि को आमतौर पर शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में लगातार बारिश होती है। हालांकि मूसलाधार बारिश कम देखी जाती है। हथिया नक्षत्र में बारिश की अवधि स्थान और वर्ष के आधार पर भिन्न हो सकती है। कुछ वर्षों में, बारिश अधिक तीव्र और लंबे समय तक हो सकती है, जबकि अन्य वर्षों में यह कम हो सकती है।

नक्षत्र क्या होते हैं?

भारत में नक्षत्र परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ये सभी नक्षत्र चंद्रमा के पथ में स्थित होते हैं, जिनके समीप से चंद्रमा गति करता है। सूर्य पंचांग से इनकी गणना करना मुश्किल है, लेकिन चंद्र पंचांग से इनकी गणना आसानी से की जा सकती है। चंद्रमा 27 नक्षत्रों में गति करता है। इन्हें ही प्रधान नक्षत्र माना जाता है। इसके साथ ही एक गुप्त नक्षत्र भी माना गया है जिसे अभिजीत कहा जाता है। इस तरह इनकी संख्या 28 हो जाती है।

वेद-पुराण में नक्षत्रों का वर्णन

ऋग्वेद में सूर्य की गणना भी नक्षत्र में की गई है। भागवत पुराण के अनुसार, ये सभी नक्षत्र प्रजापति दक्ष की पुत्रियां और चंद्रमा की पत्नी हैं। शिव महापुराण में एक कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया था। लेकिन वो सभी 27 में से रोहिणी से ज्यादा प्रेम करते थे। चंद्रमा के इस व्यवहार से बाकी 26 दक्ष पुत्रियां दुखी रहती थीं। उन्होंने पिता को अपनी व्यथा बतायी। दक्ष ने चंद्रमा को समझाया लेकिन वो नहीं माने तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया।

चंद्रमा इससे घबरा कर ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा ने उन्हें शिव की स्तुति करने को कहा। तब चंद्रमा ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर घोर तप किया। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने कहा कि आज से हर मास में दो पक्ष होंगे (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) इनमें लगातार तुम्हारी रोशनी घटेगी और बढ़ेगी, और जब पूर्णिमा को तुम अपने पूर्ण रूप में रहोगे तब रोहिणी नक्षत्र में वास करोगे।

27 नक्षत्रों के नाम क्या-क्या हैं?

1 - अश्विन, 2 - भरणी, 3 - कृतिका, 4 - रोहिणी, 5 - मृगशिरा, 6 - आर्द्रा, 7 - पुनर्वसु, 8 - पुष्य, 9 - अश्लेषा, 10 - मघा, 11 - पूर्वा फाल्गुनी, 12 - उत्तरा फाल्गुनी, 13 - हस्त, 14 - चित्रा, 15 - स्वाति, 16 - विशाखा, 17 - अनुराधा, 18 - ज्येष्ठा, 19 - मूल, 20 - पूर्वाषाढ़ा, 21 - उत्तराषाढ़ा, 22 - श्रवण, 23 - धनिष्ठा, 24 - शतभिषा, 25 - पूर्वा भाद्रपद, 26 - उत्तरा भाद्रपद और 27 - रेवती, 28 - अभिजीत।

ऐसे बनता है वर्षा का योग

ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र स्त्री और कुछ पुरुष नक्षत्र होते हैं। इसके अलावा कुछ नपुंसक नक्षत्र भी होते हैं। सूर्य और चंद्रमा के परस्पर विपरीत नक्षत्रों (स्त्री-पुरुष नक्षत्र में) में होने से वर्षा का योग बनता है। लेकिन सूर्य और चंद्र दोनों के स्त्री-स्त्री अथवा स्त्री-नपुंसक के नक्षत्र में होने पर वर्षा न होकर बादलों का आवागमन रहता है। अगर सूर्य व चंद्र पुरुष-पुरुष नक्षत्र में होते हैं तो वर्षा नहीं होती मौसम साफ रहता है।

ग्रहों का भी रहता है प्रभाव

शास्त्रों के अनुसार, पूर्व तथा उत्तर की वायु चलने पर वर्षा तुरंत होती है और वायव्य दिशा की ओर अगर बारिश होती है तो तूफानी वर्षा होती है। नवग्रहों का भी अच्छी बारिश के योग में महत्वपूर्ण प्रभाव बना रहता है। अगर बुध और शुक्र एक राशि में मौजूद हैं और उन पर गुरु ग्रह की दृष्टि पड़े तो अच्छी बारिश के योग बनते हैं। वहीं अगर गुरु और शुक्र ग्रह एक राशि में हैं और उस पर बुध ग्रह की दृष्टि हो तो क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर बाढ़ व भूस्खलन जैसी स्थिति बनती हैं।

कहावतों में हथिया का कैसा है वर्णन?

मानसून की विदाई की बेला में शुरू हुई बारिश ने कवि घाघ की कहावत को सच साबित किया है। कवि घाघ ने अपनी रचना में लिखा है, ‘हथिया पुरवाई पावै, लौट चौमास लगावै। मौजूदा समय में हथिया नक्षत्र चल रहा है और पुरवाई पिछले कई दिनों से लगातार बह रही है। पुरवाई का साथ पाते ही मानसून ने जोरदार दस्तक दी है। पितृपक्ष का समय मानसून की विदाई का होता है। कहावत है - बोली लुखरी फूला कास, अब छोड़ो वर्षा की आस। इस समय में शाम होते ही लुखरी, यानी लोमड़ी की आवाज गूंजने लगती थी और कास भी जमकर फूलने लगा करते थे। किसान वर्षा की उम्मीद छोड़ चुके होते थे। लेकिन पितृपक्ष के हथिया नक्षत्र ने किसानों की उम्मीदें जगा दी हैं। हथिया नक्षत्र ने पुरवाई का साथ पाकर पिछले 48 घंटे से बरसात का माहौल बना दिया है। रुक-रुककर बदरा झूमझूम के बरस रहे हैं। किसानों के चेहरों पर मुस्कान छा गई है। किसानों के लिए पितृपक्ष में यह बरसात आगामी रबी की फसलों के लिए बहुत लाभदायक साबित होगी।

जलवायु परिवर्तन से बदल सकता है मौसम पूर्वानुमान

मौसम विभाग के अनुमान से लेकर ज्योतिष गणना तक पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। खुद विज्ञान भी वैज्ञानिक आधार पर अपने पूर्वानुमानों को सटीक होने का दावा नहीं करता, तो हाल में हुए कई शोध यह भी बताने लगे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पूर्वानुमान और ज्यादा मुश्किल होता जाएगा। दूसरी ओर ज्योतिषीय गणना भी कई बार सटीक नहीं हो पाती है।



गुरुवार, 12 सितंबर 2024

84 लाख योनियां

84 लाख योनियों के प्रकार और गतियां

हिंदू-धर्म ग्रंथों, वेदों और पुराणों में सभी योनियों के बारे में बताया गया है। 84 लाख योनियां अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग बताई गई हैं, लेकिन हैं सभी एक ही। अनेक आचार्यों ने इन 84 लाख योनियां, अर्थात सृष्टि में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु। इन्हें दो भागों में बांटा है। पहला योनिज तथा दूसरा आयोनिज अर्थात 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया।

इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा गया है -

1. जलचर : जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर : पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर : आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।

उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।

1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।

पद्म पुराण के अनुसार

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित पद्म पुराण के अनुसार, यह माना गया है कि हर प्राणी को उसके कर्म के अनुसार ही अगला जन्म मिलता है। व्यक्ति के उच्च कर्म ही उसे इन जन्म चक्र से मुक्त कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

पद्म पुराण (Padma Purana) के एक श्लोकानुसार...
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। - (78:5 पद्मपुराण)

अर्थात जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के। कुल 84 लाख।

आप इसे इस तरह समझें

1. पानी के जीव-जंतु - 9 लाख
2. पेड़-पौधे - 20 लाख
3. कीड़े-मकौड़े - 11 लाख
4. पक्षी - 10 लाख
5. पशु - 30 लाख
6. देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि - 4 लाख

कुल योनियां - 84 लाख।

'प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प' ग्रंथ में शरीर रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके अनुसार -

1. एक शफ (एक खुर वाले पशु) - खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि।
2. द्विशफ (दो खुर वाले पशु) - गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि।
3. पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु - सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि। (प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प- पेज 107-110)

अंत में मिलती है मानव की योनि

यानी कि जन्म के बाद किसी भी जीव को बारी-बारी से एक खास योनी में जन्म लेकर चक्र पूरा करना पड़ता है। उस जन्म के निर्धारित चक्र पूरे होने के बाद उसे दूसरी योनि में भेज दिया जाता है। वहां पर उसे निर्धारित अवधि के मुताबिक बार-बार जन्म लेकर चक्र पूरा करना पड़ता है। अंत में वह कर्मों के आधार पर देवता, दैत्य या मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। इस योनि में आने के बाद आत्मा 4 लाख बार इसी योनि में जन्म लेती रहती है।

क्यों श्रेष्ठ है मनुष्य योनि?

आत्मा को 52 अरब वर्ष एवं 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मानव शरीर मिलता है। इसलिए मानव तन को दुर्लभ माना जाता है। क्योंकि इतनी योनियों में एक मनुष्य योनि ही है जिसमें विवेक जैसा दुर्लभ गुण पाया जाता है।

पद्म पुराण में किया गया है वर्णन - मनुष्य जन्म कब मिलता है : 
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार एक आत्मा को कर्मगति अनुसार 30 लाख बार वृक्ष योनि में जन्म होता है। उसके बाद जलचर प्राणियों के रूप में 9 लाख बार जन्म होता है। उसके बाद कृमि योनि में 10 लाख बार जन्म होता है। और फिर 11 लाख बार पक्षी योनि में जन्म होता है। उसके बाद 20 लाख बार पशु योनि में जन्म लेना होता है अंत में कर्मानुसार गौ का शरीर प्राप्त करके आत्मा मनुष्य योनि प्राप्त करता है और तब 4 लाख बार मानव योनि में जन्म लेने के बाद पितृ या देव योनि प्राप्त होती है। इसके साथ ही वह जन्म-जन्मांतर से मुक्त होकर बैकुंठ धाम चली जाती है। यह सभी कर्मानुसार चलता है। जबकि नीच कर्म करने वाली आत्मा को फिर से 84 लाख योनियों में जन्म लेने के लिए नीचे भेज दिया जाता है। अर्थात उल्टेक्रम में गति करता है। वेद-पुराणों में इसे दुर्गति कहा गया है, यानी कि किसी आत्मा के फिर से जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसने का फेर, जिसे एक आदर्श स्थिति नहीं मानी जाती।

मनुष्य का पतन कैसे होता है : 
कठोपनिषद अध्याय 2 वल्ली 2 के 7वें मंत्र में यमराजजी कहते हैं कि अपने-अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार शास्त्र, गुरु, संग, शिक्षा, व्यवसाय आदि के द्वारा सुने हुए भावों के अनुसार मरने के पश्चात कितने ही जीवात्मा दूसरा शरीर धारण करने के लिए वीर्य के साथ माता की योनि में प्रवेश कर जाते हैं। जिनके पुण्य-पाप समान होते हैं, वे मनुष्य का और जिनके पुण्य कम तथा पाप अधिक होते हैं, वे पशु-पक्षी का शरीर धारण कर उत्पन्न होते हैं और कितने ही जिनके पाप अत्यधिक होते हैं, स्थावर भाव को प्राप्त होते हैं अर्थात वृक्ष, लता, तृण आदि जड़ शरीर में उत्पन्न होते हैं। 

अंतिम इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित जीन्स जिस जीव के जीन्स से मिल जाते हैं, उसी ओर ये आकर्षित होकर वही योनि धारण कर लेते हैं। 84 लाख योनियों में भटकने के बाद वह फिर मनुष्य शरीर में आता है।