शव यात्रा के दौरान क्यों बोलते हैं ‘राम नाम सत्य है’ (Ram Naam Satya Hai)
कलियुग एक ऐसा युग है जहां धर्म समाप्ति की ओर है और अधर्म अपनी चरम सीमा पर है। कहते हैं इस युग में केवल ‘राम नाम’ लेना ही आपका बेड़ा पार लगा देगा। कई लोग आजीवन ‘राम नाम’ का रट लगाते हैं, ताकि उनका उद्धार हो जाये लेकिन जब मृत्यु के बाद उनकी शवयात्रा निकलती है, तो वहां भी परिजन 'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है' का ही उद्घोष करते हैं।
कहते हैं कि ‘इस संसार खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाओगे’। लेकिन यह छोटी सी बात भी लोगों को समझ नहीं आती और लोग इस संसार की मोह-माया से इस कदर बंध जाते हैं कि वो न केवल जीवन कष्टमय बना लेते हैं बल्कि मृत्यु का भय भी उत्पन्न कर लेते हैं। मरते समय किसी मनुष्य को इस संसार में बिताये अपने जीवन और संबंधियों से इतना मोह हो जाता है कि वह मृत्यु को अपनाना ही नहीं चाहता। लेकिन मृत्यु जितना सच है, उतना ही सच यह बात है कि ये सब आपका इसी संसार में छूट जाने वाला है।
यह बात हमारे मानस में बार बार उतारी गई है कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु तो अटल सत्य है। कुछ मृत्यु को लेकर स्वीकृति का भाव अपनाते हैं, कुछ उसके बारे में सोचना नहीं चाहते, तो कुछ उसके आने की कल्पना से भी भयभीत हो जाते हैं।
हिंदु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी व्यक्ति जब अपने जीवन की आखिरी पल जी रहा होता है तो वह राम का नाम जप करता है। कहा जाता है कि सिर्फ राम का नाम लेने से ही जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामायण में भी राजा दशरथ ने भी अपने अंतिम समय में राम-राम बोलकर ही मोक्ष प्राप्ति की थी। शास्त्रों के अनुसार भी यदि आप राम के नाम का जाप करते हैं तो आपके कष्ट कम होते हैं।
'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है' :-
प्रत्येक संस्कृति और धर्म में मनुष्य की अंतिम क्रिया के अलग-अलग विधान हैं। हिंदू धर्म से जुड़ी कई परंपराएं सदियों से चली आ रही है और सभी परंपराओं से विशेष कारण और महत्व जुड़े होते हैं। हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी अंतिम क्रिया या अंतिम संस्कार का विधान है। अंतिम क्रिया में मृतक की शवयात्रा निकाली जाती है और शव को दाह संस्कार के लिए श्मशान ले जाया जाता है।
धर्मराज युधिष्ठिर ने बताया ‘राम नाम सत्य है’ का अर्थ
महाभारत के मुख्य पात्र और पांडवों में सबसे बड़े धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के बारे में बताया है। इस श्लोक के माध्यम से इसके सही अर्थ का पता चलता है।
'अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।'
अर्थ है -
मृतक को जब श्मशान ले जाया जाता है तब सब कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ लेकिन अंतिम संस्कार के बाद जब सब घर लौट जाते हैं तो राम नाम को भूलकर मोह माया और मृतक की संपत्ति में लिप्त हो जाते हैं। ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’। राम नाम सत्य है मृतक को सुनाने के लिए नहीं कहा जाता है बल्कि यह मृतक के साथ चल रहे परिजन और लोगों को सुनाया जाता है कि, राम का नाम ही सत्य है। जब राम बोलोगे तब ही गति होगी।
क्या है उद्देश्य?
'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है' बोलने का मतलब मृतक को सुनाना नहीं होता है बल्कि शव यात्रा में साथ में चल रहे परिजन, मित्रों और रास्ते से गुजर रहे लोगों को केवल यह समझाना होता है कि जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी केवल राम नाम ही सत्य है बाकी सब व्यर्थ है। एक दिन मृत्यु के बाद संसार में सबकुछ छोड़कर जाना है। साथ में सिर्फ हमारा कर्म ही जाता है। क्योंकि कर्म श्रीराम की तरह अमर हैं। इसलिए जीवन में रहते हुए अच्छे कर्म करें। आत्मा को गति सिर्फ और सिर्फ राम नाम से ही मिलेगी।
किसी की मृत्यु होने पर राम का नाम लिया जाता है। इसका अर्थ होता है कि जीव को मुक्ति मिल गई है। आत्मा संसार चक्र से आजाद हो गई है। एक अर्थ ये भी कि आत्मा सब कुछ छोड़ भगवान के पास चली गई है। ये परम सत्य है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार 'राम नाम सत्य है' एक बीज अक्षर है। राम नाम जपने से बुरे कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि इसको जपने से मृतक के परिजनों को मानसिक शांति मिलती है। इस दौरान राम नाम सत्य है सुनने से उन्हें ये अहसास होता है कि यह संसार व्यर्थ है।
शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ कहने के मुख्य कारण
राम नाम सत्य है कहे जाने के अन्य कारण यह भी है, यह शब्द सुनने के बाद मार्ग पर चल रहे लोगों का ध्यानाकर्षण हो और वे समझ जाए कि शवयात्रा जा रही है, जिससे शवयात्रा के लिए मार्ग खाली छोड़ दे। क्योंकि शवयात्रा को कहीं भी रोकना अशुभ माना गया है और इसलिए शवयात्रा घर से निकलने के बाद श्मशान तक लगातार चलती रहती है।
राम नाम सत्य है कहने का एक कारण यह भी है कि, मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी हमारे कुछ अंग सक्रिय होते हैं, जिनमें कान भी एक है। इसलिए अंतिम समय में अमृतरूपी राम का नाम लिया जाता है। जिससे यह शब्द मृतक के कान में जाए और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो।
'राम नाम सत्य है' का उद्घोष शस्त्रों में वर्णित है?
हमारे तंत्रों में इसका वर्णन मिलता है।
'रुद्रयामल तन्त्र’ में एक श्लोक है -
शिवे शिवे न संचारों भवत प्रेतस्य कस्यचित।
अतसिद्दाहपर्यंतम राम नाम जपो वरम।।
अर्थ :- मृत व्यक्ति के शव में कोई प्रेत आत्मा का प्रवेश ना हो, इसलिए अग्नि देने तक ‘राम’ नाम का उच्चारण करना चाहिए।
‘प्रेतसाधन-तन्त्र’ में भी कहा है -
'शवसाधनवेलायां रामनाम विवर्जयेत्।'
अर्थ :- शवसाधन करने के समय ‘राम’ नाम नहीं लिया जाता है, क्योंकि इस नाम को सुनकर प्रेत, भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि भाग जाते हैं। निकृष्ट योनि जीव भाग जाते हैं, इसी कारण से लोग शव को ले जाते अथवा दाह करते समय 'राम नाम सत्य है' ऐसा बोलते हैं। इसलिए विवाह आदि जैसे शुभ कार्यों में “राम नाम सत्य है” को अमंगल-सूचक माना जाता है। लेकिन वास्तव में राम-नाम सदा सत्य एवं पवित्र है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है। भगवान के नाम में जो कोई आक्षेप करेगा उसको अवश्य नरक की प्राप्ति होगी।
आनंद रामायण के अनुसार :-
श्रीशब्धमाद्य जयशब्दमध्यंजयद्वेयेनापि पुनःप्रयुक्तम्। अनेनैव च मन्त्रेण जपः कार्यः सुमेधसा।
अर्थ :- बुद्धिमान लोग श्री राम जय राम जय जय राम मंत्र का जाप करतें हैं।
हम ऐसे समय यमराज जी की भी वंदना कर सकतें हैं। गरुड़ पुराण प्रेत कल्प अध्याय क्रमांक 4 के अनुसार, शव-यात्रा के समय पुत्रादिक परिजन तिल, कुश, घृत और ईंधन लेकर ‘यम-गाथा’ अथवा वेद के ‘यम-सूक्त' का पाठ करते हुए श्मशानभूमि की ओर जाएं। यम-सूक्त यजुर्वेद के पैतीसवें अध्याय में मिलेगा।
हमें वेदों में इसके कई मंत्र मिलेंगे, जब भी कभी किसी की मृत्यु का समाचार आता है उस समय भी हम “ॐ शांति शांति शांति” बोलते हैं। कई लोग तो आजकल पश्चिमी परंपरा से ग्रसित होने के कारण RIP बोलते हैं। हमारे वेद मंत्रों में ही वर्णन हैं कि मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात क्या बोलें। यजुर्वेद 40.14 के अनुसार :-
वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ꣳ शरी॑रम्। ओ३म् क्रतो॑ स्मर। क्लि॒बे स्म॑र। कृ॒तꣳ स्म॑र।
अर्थ :- इस समय गमन करता हुआ प्राण वायु अमृत (अमरता) रूप वायु को प्राप्त हो. यह देह अग्नि में हुत होकर भस्म रूप हो। हे प्रणव रूप ॐ / ब्रह्म (ब्रह्म स्वरूप आत्मा) बाल्यावस्थादि मे किए कर्मों के स्मरण पूर्वक मैं लोकादि की कामना करता हूं। इसलिए सनातनी किसी कि मृत्यु की खबर सुनकर ॐ शान्ति शान्ति शान्ति बोलते हैं।
वेद मंत्र बोलना सबके बस की बात नहीं हैं इसलिए "राम नाम सत्य हैं" बोलना अधिक श्रेयस्कर है। क्योंकि राम तो सत्यस्वरूप, मर्यादा पुरुषोत्तम देवता ही हैं। उनके नाम से बढ़कर और क्या हो सकता है. उसके उच्चारण मात्र से ही हम भव सागर तर जाते हैं। तो मृत शरीर के दुर्गुणों को निरस्त करने के लिए राम नाम ही एक मात्र साधन है। उसका जाप हमें तो क्या समस्त वातावरण उससे पवित्र हो जाता है।
राम नाम सत्य है ये बोलना कब से शुरू हुआ मुरदे के पिछे राम नाम सत्य है ऐसा क्यों बोला जाता है।
एक समय कि बात जब तुलसीदास अपने गांव में रहते थे। वो हमेशा राम कि भक्ति मे लीन रहते थे उनको घरवाले ने और गांव वाले ने ढोंगी कह कर घर से बाहर निकाल दिया तो तुलसीदास गंगा जी के घाट पर रहने लगे वही प्रभु की भक्ति करने लगे।
जब तुलसीदास रामचरितमानस की रचना शुरू कर रहे थे। उसी दिन उसके गांव में एक लडके की शादी हुई और वो लडका अपनी दुल्हन को लेकर घर अपने घर आया और रात को किसी कारण वश उस लडके कि मृत्यु हो गई लडके के घर वाले रोने लगे सुबह होने पर सब लोग लडके को अर्थी पर सजाकर शमशान घाट ले जाने लगे तो उस लडके कि दुलहन भी सती होने कि इच्छा से अपने पति के अर्थी के पीछे पीछे जाने लगे लोग उसी रास्ते से जा रहे थे।
जिस रास्ते में तुलसीदास जी रहते थे, लोग जा रहे थे तो जो लडके की दुल्हन की नजर तुलसीदास पर पडी तो उस दुल्हन ने सोची अपने पति के साथ सती होने जा रही हुँ एक बार इस ब्राह्मण देवता को प्रणाम कर लेती हुँ।
वो दुल्हन नहीं जानती थी कि ये तुलसीदास है उसने तुरंत तुलसीदास को पैर छुकर प्रणाम किया तो तुलसीदास ने उसे अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। तो सब लोग हँसने लगे और बोला रे तुलसीदास हम तो सोचते थे तुम पाखंडी हो लेकिन तुम तो बहुत बडे मूर्ख भी हो इस लडकी की पति मर चुका है|
ये अखण्ड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है। सब बोलने लगे तुम भी झुठा तेरा राम भी झुठा तुलसीदास जी बोले-हम झुठे हो सकते हैं लेकिन मेरे राम कभी भी नहीं झूठे हो सकते है। तो सबने बोला परिणाम दो तो तुलसीदास जी ने अर्थी को रखवाया और उस मरे हुये लडके के पास जाकर उसके कान में बोला “राम नाम सत्य है”।
ऐसा एक बार बोला तो लडका हिलने लगा दुसरा बार फिर तुलसीदास ने लडके के कान में बोला राम नाम सत्य है। लडका को थोडा अचेत और आया तुलसीदास फिर तीसरी बार उस लडके के कान में बोला राम नाम सत्य है, और वो लडका अर्थी से निचे उठ कर बैठ गया सभी को बहुत आश्चर्य हुआ कि मरा हुआ कैसे जीवित हो सकता है।
सबने मान लिया और तुलसीदास के चरणों में दण्डवत प्रणाम करके माफी मांगने लगा तो तुलसीदास जी बोले अगर आपलोग यहाँ इस रास्ते से नहीं जाते तो मेरे राम के नाम को सत्य होने का प्रमाण कैसे मिलता ये तो सब हमारे राम कि लीला है उसी दिन से ये प्रथा चालु हो गई की मुर्दे के पिछे राम नाम सत्य है बोला जाता हैं।