शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

राम नाम सत्य है

शव यात्रा के दौरान क्यों बोलते हैं ‘राम नाम सत्य है’ (Ram Naam Satya Hai)

कलियुग एक ऐसा युग है जहां धर्म समाप्ति की ओर है और अधर्म अपनी चरम सीमा पर है। कहते हैं इस युग में केवल ‘राम नाम’ लेना ही आपका बेड़ा पार लगा देगा। कई लोग आजीवन ‘राम नाम’ का रट लगाते हैं, ताकि उनका उद्धार हो जाये लेकिन जब मृत्यु के बाद उनकी शवयात्रा निकलती है, तो वहां भी परिजन 'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है' का ही उद्घोष करते हैं।

कहते हैं कि ‘इस संसार खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाओगे’। लेकिन यह छोटी सी बात भी लोगों को समझ नहीं आती और लोग इस संसार की मोह-माया से इस कदर बंध जाते हैं कि वो न केवल जीवन कष्टमय बना लेते हैं बल्कि मृत्यु का भय भी उत्पन्न कर लेते हैं। मरते समय किसी मनुष्य को इस संसार में बिताये अपने जीवन और संबंधियों से इतना मोह हो जाता है कि वह मृत्यु को अपनाना ही नहीं चाहता। लेकिन मृत्यु जितना सच है, उतना ही सच यह बात है कि ये सब आपका इसी संसार में छूट जाने वाला है।

यह बात हमारे मानस में बार बार उतारी गई है कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु तो अटल सत्य है। कुछ मृत्यु को लेकर स्वीकृति का भाव अपनाते हैं, कुछ उसके बारे में सोचना नहीं चाहते, तो कुछ उसके आने की कल्पना से भी भयभीत हो जाते हैं।

हिंदु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी व्यक्ति जब अपने जीवन की आखिरी पल जी रहा होता है तो वह राम का नाम जप करता है। कहा जाता है कि सिर्फ राम का नाम लेने से ही जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामायण में भी राजा दशरथ ने भी अपने अंतिम समय में राम-राम बोलकर ही मोक्ष प्राप्ति की थी। शास्त्रों के अनुसार भी यदि आप राम के नाम का जाप करते हैं तो आपके कष्ट कम होते हैं।

'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है' :-
प्रत्येक संस्कृति और धर्म में मनुष्य की अंतिम क्रिया के अलग-अलग विधान हैं। हिंदू धर्म से जुड़ी कई परंपराएं सदियों से चली आ रही है और सभी परंपराओं से विशेष कारण और महत्व जुड़े होते हैं। हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी अंतिम क्रिया या अंतिम संस्कार का विधान है। अंतिम क्रिया में मृतक की शवयात्रा निकाली जाती है और शव को दाह संस्कार के लिए श्मशान ले जाया जाता है।

धर्मराज युधिष्ठिर ने बताया ‘राम नाम सत्य है’ का अर्थ
महाभारत के मुख्य पात्र और पांडवों में सबसे बड़े धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के बारे में बताया है। इस श्लोक के माध्यम से इसके सही अर्थ का पता चलता है।

'अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।'

अर्थ है -
मृतक को जब श्मशान ले जाया जाता है तब सब कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ लेकिन अंतिम संस्कार के बाद जब सब घर लौट जाते हैं तो राम नाम को भूलकर मोह माया और मृतक की संपत्ति में लिप्त हो जाते हैं। ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’। राम नाम सत्य है मृतक को सुनाने के लिए नहीं कहा जाता है बल्कि यह मृतक के साथ चल रहे परिजन और लोगों को सुनाया जाता है कि, राम का नाम ही सत्य है। जब राम बोलोगे तब ही गति होगी।

क्या है उद्देश्य?
'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है' बोलने का मतलब मृतक को सुनाना नहीं होता है बल्कि शव यात्रा में साथ में चल रहे परिजन, मित्रों और रास्ते से गुजर रहे लोगों को केवल यह समझाना होता है कि जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी केवल राम नाम ही सत्य है बाकी सब व्यर्थ है। एक दिन मृत्यु के बाद संसार में सबकुछ छोड़कर जाना है। साथ में सिर्फ हमारा कर्म ही जाता है। क्योंकि कर्म श्रीराम की तरह अमर हैं। इसलिए जीवन में रहते हुए अच्छे कर्म करें। आत्मा को गति सिर्फ और सिर्फ राम नाम से ही मिलेगी।

किसी की मृत्यु होने पर राम का नाम लिया जाता है। इसका अर्थ होता है कि जीव को मुक्ति मिल गई है। आत्मा संसार चक्र से आजाद हो गई है। एक अर्थ ये भी कि आत्मा सब कुछ छोड़ भगवान के पास चली गई है। ये परम सत्य है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार 'राम नाम सत्य है' एक बीज अक्षर है। राम नाम जपने से बुरे कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि इसको जपने से मृतक के परिजनों को मानसिक शांति मिलती है। इस दौरान राम नाम सत्य है सुनने से उन्हें ये अहसास होता है कि यह संसार व्यर्थ है।

शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ कहने के मुख्य कारण
राम नाम सत्य है कहे जाने के अन्य कारण यह भी है, यह शब्द सुनने के बाद मार्ग पर चल रहे लोगों का ध्यानाकर्षण हो और वे समझ जाए कि शवयात्रा जा रही है, जिससे शवयात्रा के लिए मार्ग खाली छोड़ दे। क्योंकि शवयात्रा को कहीं भी रोकना अशुभ माना गया है और इसलिए शवयात्रा घर से निकलने के बाद श्मशान तक लगातार चलती रहती है।

राम नाम सत्य है कहने का एक कारण यह भी है कि, मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी हमारे कुछ अंग सक्रिय होते हैं, जिनमें कान भी एक है। इसलिए अंतिम समय में अमृतरूपी राम का नाम लिया जाता है। जिससे यह शब्द मृतक के कान में जाए और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो।

'राम नाम सत्य है' का उद्घोष शस्त्रों में वर्णित है?
हमारे तंत्रों में इसका वर्णन मिलता है।

'रुद्रयामल तन्त्र’ में एक श्लोक है -

शिवे शिवे न संचारों भवत प्रेतस्य कस्यचित।
अतसिद्दाहपर्यंतम राम नाम जपो वरम।।
अर्थ :- मृत व्यक्ति के शव में कोई प्रेत आत्मा का प्रवेश ना हो, इसलिए अग्नि देने तक ‘राम’ नाम का उच्चारण करना चाहिए।

‘प्रेतसाधन-तन्त्र’ में भी कहा है -

'शवसाधनवेलायां रामनाम विवर्जयेत्।'
अर्थ :- शवसाधन करने के समय ‘राम’ नाम नहीं लिया जाता है, क्योंकि इस नाम को सुनकर प्रेत, भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि भाग जाते हैं। निकृष्ट योनि जीव भाग जाते हैं, इसी कारण से लोग शव को ले जाते अथवा दाह करते समय 'राम नाम सत्य है' ऐसा बोलते हैं। इसलिए विवाह आदि जैसे शुभ कार्यों में “राम नाम सत्य है” को अमंगल-सूचक माना जाता है। लेकिन वास्तव में राम-नाम सदा सत्य एवं पवित्र है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है। भगवान के नाम में जो कोई आक्षेप करेगा उसको अवश्य नरक की प्राप्ति होगी। 

आनंद रामायण के अनुसार :-

श्रीशब्धमाद्य जयशब्दमध्यंजयद्वेयेनापि पुनःप्रयुक्तम्। अनेनैव च मन्त्रेण जपः कार्यः सुमेधसा।
अर्थ :- बुद्धिमान लोग श्री राम जय राम जय जय राम मंत्र का जाप करतें हैं।

हम ऐसे समय यमराज जी की भी वंदना कर सकतें हैं। गरुड़ पुराण प्रेत कल्प अध्याय क्रमांक 4 के अनुसार, शव-यात्रा के समय पुत्रादिक परिजन तिल, कुश, घृत और ईंधन लेकर ‘यम-गाथा’ अथवा वेद के ‘यम-सूक्त' का पाठ करते हुए श्मशानभूमि की ओर जाएं। यम-सूक्त यजुर्वेद के पैतीसवें अध्याय में मिलेगा।

हमें वेदों में इसके कई मंत्र मिलेंगे, जब भी कभी किसी की मृत्यु का समाचार आता है उस समय भी हम “ॐ शांति शांति शांति” बोलते हैं। कई लोग तो आजकल पश्चिमी परंपरा से ग्रसित होने के कारण RIP बोलते हैं। हमारे वेद मंत्रों में ही वर्णन हैं कि मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात क्या बोलें। यजुर्वेद 40.14 के अनुसार :-

वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ꣳ शरी॑रम्। ओ३म् क्रतो॑ स्मर। क्लि॒बे स्म॑र। कृ॒तꣳ स्म॑र।
अर्थ :- इस समय गमन करता हुआ प्राण वायु अमृत (अमरता) रूप वायु को प्राप्त हो. यह देह अग्नि में हुत होकर भस्म रूप हो। हे प्रणव रूप ॐ / ब्रह्म (ब्रह्म स्वरूप आत्मा) बाल्यावस्थादि मे किए कर्मों के स्मरण पूर्वक मैं लोकादि की कामना करता हूं। इसलिए सनातनी किसी कि मृत्यु की खबर सुनकर ॐ शान्ति शान्ति शान्ति बोलते हैं
वेद मंत्र बोलना सबके बस की बात नहीं हैं इसलिए "राम नाम सत्य हैं" बोलना अधिक श्रेयस्कर है। क्योंकि राम तो सत्यस्वरूप, मर्यादा पुरुषोत्तम देवता ही हैं। उनके नाम से बढ़कर और क्या हो सकता है. उसके उच्चारण मात्र से ही हम भव सागर तर जाते हैं। तो मृत शरीर के दुर्गुणों को निरस्त करने के लिए राम नाम ही एक मात्र साधन है। उसका जाप हमें तो क्या समस्त वातावरण उससे पवित्र हो जाता है।

राम नाम सत्य है ये बोलना कब से शुरू हुआ मुरदे के पिछे राम नाम सत्य है ऐसा क्यों बोला जाता है।

एक समय कि बात जब तुलसीदास अपने गांव में रहते थे। वो हमेशा राम कि भक्ति मे लीन रहते थे उनको घरवाले ने और गांव वाले ने ढोंगी कह कर घर से बाहर निकाल दिया तो तुलसीदास गंगा जी के घाट पर रहने लगे वही प्रभु की भक्ति करने लगे।

जब तुलसीदास रामचरितमानस की रचना शुरू कर रहे थे। उसी दिन उसके गांव में एक लडके की शादी हुई और वो लडका अपनी दुल्हन को लेकर घर अपने घर आया और रात को किसी कारण वश उस लडके कि मृत्यु हो गई लडके के घर वाले रोने लगे सुबह होने पर सब लोग लडके को अर्थी पर सजाकर शमशान घाट ले जाने लगे तो उस लडके कि दुलहन भी सती होने कि इच्छा से अपने पति के अर्थी के पीछे पीछे जाने लगे लोग उसी रास्ते से जा रहे थे।

जिस रास्ते में तुलसीदास जी रहते थे, लोग जा रहे थे तो जो लडके की दुल्हन की नजर तुलसीदास पर पडी तो उस दुल्हन ने सोची अपने पति के साथ सती होने जा रही हुँ एक बार इस ब्राह्मण देवता को प्रणाम कर लेती हुँ।

वो दुल्हन नहीं जानती थी कि ये तुलसीदास है उसने तुरंत तुलसीदास को पैर छुकर प्रणाम किया तो तुलसीदास ने उसे अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। तो सब लोग हँसने लगे और बोला रे तुलसीदास हम तो सोचते थे तुम पाखंडी हो लेकिन तुम तो बहुत बडे मूर्ख भी हो इस लडकी की पति मर चुका है|

ये अखण्ड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है। सब बोलने लगे तुम भी झुठा तेरा राम भी झुठा तुलसीदास जी बोले-हम झुठे हो सकते हैं लेकिन मेरे राम कभी भी नहीं झूठे हो सकते है। तो सबने बोला परिणाम दो तो तुलसीदास जी ने अर्थी को रखवाया और उस मरे हुये लडके के पास जाकर उसके कान में बोला “राम नाम सत्य है”।

ऐसा एक बार बोला तो लडका हिलने लगा दुसरा बार फिर तुलसीदास ने लडके के कान में बोला राम नाम सत्य है। लडका को थोडा अचेत और आया तुलसीदास फिर तीसरी बार उस लडके के कान में बोला राम नाम सत्य है, और वो लडका अर्थी से निचे उठ कर बैठ गया सभी को बहुत आश्चर्य हुआ कि मरा हुआ कैसे जीवित हो सकता है।

सबने मान लिया और तुलसीदास के चरणों में दण्डवत प्रणाम करके माफी मांगने लगा तो तुलसीदास जी बोले अगर आपलोग यहाँ इस रास्ते से नहीं जाते तो मेरे राम के नाम को सत्य होने का प्रमाण कैसे मिलता ये तो सब हमारे राम कि लीला है उसी दिन से ये प्रथा चालु हो गई की मुर्दे के पिछे राम नाम सत्य है बोला जाता हैं।


शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

33 कोटि हिन्दू देवी-देवता

33 करोड़ देवता हैं या कि 33 प्रकार के, जानिए दोनों ही मतों का विश्लेषण

क्या आप इस क्रम को मानते हैं :- जड़, वृक्ष, प्राणी, मानव, पितर, देवी-देवता, भगवान और ईश्वर। सबसे बड़ा ईश्वर, परमेश्वर या परमात्मा होता है। वेदों में जिसे ब्रह्म (ब्रह्मा नहीं) कहा गया है। ब्रह्म का अर्थ है विस्तार, फैलना, अनंत, महाप्रकाश। प्रत्येक धर्म में देवी और देवता होते हैं यह अलग बात है कि हिंदू अपने देवी-देवताओं को पूजते हैं जबकि दूसरे धर्म के लोग नहीं। अत: यह कहना की हिन्दू धर्म सर्वेश्वरदावी धर्म है गलत होगा। पहले धर्म को पढ़े, समझे फिर कुछ कहें।

कुछ विद्वान कहते हैं कि हिन्दू देवी या देवताओं को 33 कोटि अर्थात प्रकार में रखा गया है और कुछ कहते हैं कि यह सही नहीं है। दरअसल वेदों में 33 कोटि देवताओं का जिक्र किया है। धर्म गुरुओं और अनेक बौद्धिक वर्ग ने इस कोटि शब्द के दो प्रकार से अर्थ निकाले हैं। कोटि शब्द का एक अर्थ करोड़ है और दूसरा प्रकार अर्थात श्रेणी भी। तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो कोटि का दूसरा अर्थ इस विषय में अधिक सत्य प्रतीत होता है अर्थात तैंतीस प्रकार की श्रेणी या प्रकार के देवी-देवता। परन्तु शब्द व्याख्या, अर्थ और सबसे ऊपर अपनी-अपनी समझ और बुद्धि के अनुरूप मान्यताए अलग-अलग हो गयीं।


शास्त्रों में 33 कोटि देवी-देवताओं का उल्लेख

ऋग्वेद - ऋग्वेद में 33 कोटि देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार :

"त्रिंशतं त्रीणि शतं स ह सप्त सधा शतम्।"

(ऋग्वेद, 1.45.2)

यजुर्वेद - यजुर्वेद में भी 33 कोटि देवी-देवताओं का वर्णन है :

"त्रिंशतं त्रीणि शतं स ह सप्त सधा शतम्।"

(यजुर्वेद, 21.31)

अथर्ववेद - अथर्ववेद में भी 33 कोटि देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है :

"त्रिंशतं त्रीणि शतं स ह सप्त सधा शतम्।"

(अथर्ववेद, 10.23.4)

वैदिक विद्वानों अनुसार :-

वेदों में जिन देवताओं का उल्लेख किया गया है उनमें से अधिकतर प्राकृतिक शक्तियों के नाम है जिन्हें देव कहकर संबोधित किया गया है। दरअसल वे देव नहीं है। देव कहने से उनका महत्व प्रकट होता है। उक्त प्राकृतिक शक्तियों को मुख्‍यत: आदित्य समूह, वसु समूह, रुद्र समूह, मरुतगण समूह, प्रजापति समूह आदि समूहों में बांटा गया हैं।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ जगह पर वैदिक ऋषि इन प्रकृतिक शक्तियों की स्तुति करते हैं और कुछ जगह पर वे अपने ही किसी महान पुरुष की इन प्रकृतिक शक्तियों से तुलना करके उनकी स्तुति करते हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर इंद्र नामक एक बिजली और एक बादल भी होता है। वहीं, इंद्र नाम से आर्यों का एक वीर राजा भी है जोकि बादलों के देश में रहता है और आकाशमार्ग से आता-जाता है। वह आर्यों की हर तरह से रक्षा करने के लिए हर समय उपस्थित हो जाता है। शक्तिशाली होने के कारण उसकी तुलना बिजली और बादल के समान की जाती है। अत: शब्दों का अर्थ देशकाल, परिस्थिति के अनुसार ग्रहण करना होता है। एक शब्द के कई-कई अर्थ होते हैं। वैदिक विद्वानों के अनुसार 33 प्रकार के अव्यय या पदार्थ होते हैं जिन्हें देवों की संज्ञा दी गई है। ये 33 प्रकार इसके अनुसार हैं :-

प्रारंभ में ऋषियों ने 33 प्रकार के अव्यय जाने थे। परमात्मा ने जो 33 अव्यय बनाए हैं वैदिक ऋषि उसी की बात कर रहे हैं। उक्त 33 अव्यवों से ही प्रकृति और जीवन का संचालन होता है। वेदों के अनुसार हमें इन 33 पदार्थों या अव्ययों को महत्व देना चाहिए। इनका ध्यान करना चाहिए तो ये पुष्ट हो जाते हैं।

1. इन 33 में से 8 वसु है। वसु अर्थात हमें वसाने वाले आत्मा का जहां वास होता है। ये आठ वसु हैं :- धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य और नक्षत्र। ये आठ वसु प्रजा को वसाने वाले अर्थात धारण या पालने वाले हैं। 

2. इसी तरह 11 रुद्र आते हैं। इन रुद्रों ने नाम हैं :- प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कुर्म, किरकल, देवदत्त और धनंजय। प्रथम पांच प्राण और दूसरे पांच उपप्राण हैं अंत में 11वां जीवात्मा हैं। दरअसल यह रुद्र शरीर के अव्यय है। जब तक ये शरीर मे विद्यमान है, हमारा शरीर गतिमान है। जब यह अव्यय एक-एक करके शरीर से निकल जाते हैं तो यह रोदन कराने वाले होते हैं। अर्थात जब मनुष्य मर जाता है तो उसके भीतर के यह सभी 11 रुद्र निकल जाते हैं जिनके निकलने के बाद उसे मृत मान लिया जाता है। तब उसके सगे-संबंधी उसके समक्ष रोने लग जाते हैं। इसीलिए इन्हें कहते हैं रुद्र। रुद्र अर्थात रुलाने वाला।

ये सभी शरीर के अलग-अलग भागों में स्थित होते हैं तथा अलग-अलग अंगों व क्रियाओं को संचालित करते हैं। ये इस प्रकार है

1. प्राण :- प्राण गले से लेकर हृदय तक के अंगों एवं स्वर तंत्र, श्वसन तंत्र, भोजन नली, श्वास नली, फेफड़े-हृदय आदि को स्वस्थ रखता है। यह हृदय में स्थित होता है।

2. अपान :- अपान का कार्य मल-मूत्र त्याग, प्रसव आदि क्रियाओं को संचालित करता है। यह गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।3. व्यान :- यह शरीर में रक्त संचार करता है। इसका स्थान मष्तिष्क का मध्य भाग है।

4. उदान :- उदान गले के ऊपर के अंगों मुंह, दांत, नाक, आंख, कान, माथा, मस्तिष्क आदि का संचालन करता है। उदान विविध वस्तुएँ बाहर से शरीर के भीतर ग्रहण करता है। यह कंठ में स्थित होता है।

5. समान :- इसका स्थान नाभि में होता है, पाचक रसों का उत्पादन और उनका स्तर उपयुक्त बनाये रहना इसी का काम है।

6. नाग :- नाग का कार्य वायु सञ्चार, डकार, हिचकी, गुदा वायु का उत्तसर्जन करना। यह “प्राण” का “उपप्राण” है तथा यह भी हृदय में स्थित होता है।

7. कूर्म्म :- कूर्म से पलक मारने और बन्द होने की क्रिया होती है। यह “अपान” का “उपप्राण” है तथा यह भी गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।

8. कृकल :- कृकल का कार्य भूख-प्यास को संचारित करना है। यह “समान” का “उपप्राण” है यह भी नाभि में स्थित होता है।

9. देवदत्त :- यह छींक आने और अंगड़ाई आने की क्रिया है। यह “उदान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी कंठ में होता है।

10. धनञ्जय :- धनञ्जय जीवित अवस्था में शरीर का पोषण करता है और मरने पर देह सड़ा-गला कर शीघ्र नष्ट करने का प्रबन्ध करता है। इसका प्रधान केन्द्र मस्तिष्क का मध्य भाग है। यह “व्यान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी मष्तिष्क का मध्य भाग होता है।

11. जीवात्मा :- इसके निकलते ही शरीर क्रिया करना बंद कर देता है।

3. 12 आदित्य होते हैं। आदित्य का अर्थ यहाँ भगवान सूर्य से है। सूर्य भगवान प्रत्येक राशि मे एक माह के लिए विचरण करते है फिर दूसरी राशि मे प्रवेश करते है। इस प्रकार 12 माह मे 12 राषियो मे चक्कर लगाते है। समय के 12 माह को 12 आदित्य कहते हैं। इसी आधार पर हमारा हिन्दू कलैण्डर बनाया जाता है इसलिए इन्हे 12 प्रकार से व्यक्त किया जाता है इन्हें आदित्य इसलिए कहते हैं क्योंकि यह हमारी आयु को हरते हैं क्योकि जैसे-जैसे दिन बढ़ते है। हमारी आयु भी कम होती जाती है। 8 वसु, 11 रुद्र और 12 आदित्य को मिलाकर कुल हुए 31 अव्यय।

4. 32वां है इंद्र। इंद्र का अर्थ बिजली या ऊर्जा। 33वां है यज्ज। यज्ज अर्थात प्रजापति, जिससे वायु, दृष्टि, जल और शिल्प शास्त्र हमारा उन्नत होता है, औषधियां पैदा होती है।

ये 33 कोटी अर्थात 33 प्रकार के अव्यव हैं जिन्हें देव कहा गया। देव का अर्थ होता है दिव्य गुणों से युक्त। हमें ईश्वर ने जिस रूप में यह 33 पदार्थ दिए हैं उसी रूप में उन्हें शुद्ध, निर्मल और पवित्र बनाए रखना चाहिए।

उपरोक्त मत का खंडन :-

पहले तो कोटि शब्द को समझें। कोटि का अर्थ प्रकार लेने से कोई भी व्यक्ति 33 देवता नहीं गिना पाएगा। कारण, स्पष्ट है कि कोटि यानी प्रकार यानी श्रेणी। अब यदि हम कहें कि आदित्य एक श्रेणी यानी प्रकार यानी कोटि है, तो यह कह सकते हैं कि आदित्य की कोटि में 12 देवता आते हैं जिनके नाम अमुक-अमुक हैं। लेकिन आप ये कहें कि सभी 12 अलग-अलग कोटि हैं, तो जरा हमें बताएं कि पर्जन्य, इन्द्र और त्वष्टा की कोटि में कितने सदस्य हैं?

ऐसी गणना ही व्यर्थ है, क्योंकि यदि कोटि कोई हो सकता है तो वह आदित्य है। आदित्य की कोटि में 12 सदस्य, वसु की कोटि या प्रकार में 8 सदस्य, रुद्र की कोटी में 11 सदस्य, अन्य तो कोटी इंद्र और यज्ज। इस तरह देखा जाए तो कुल 5 कोटी ही हुई। तब 33 कोटी कहने का क्या तात्पर्य?

द्वितीय, उन्हें कैसे ज्ञात कि यहां कोटि का अर्थ प्रकार ही होगा, करोड़ नहीं? प्रत्यक्ष है कि देवता एक स्थिति है, योनि हैं जैसे मनुष्य आदि एक स्थिति है, योनि है। मनुष्य की योनि में भारतीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, रूसी, जापानी आदि कई कोटि यानी श्रेणियां हैं जिसमें इतने-इतने कोटि यानी करोड़ सदस्य हैं। देव योनि में मात्र यही 33 देव नहीं आते। इनके अलावा मणिभद्र आदि अनेक यक्ष, चित्ररथ, तुम्बुरु, आदि गंधर्व, उर्वशी, रम्भा आदि अप्सराएं, अर्यमा आदि पितृगण, वशिष्ठ आदि सप्तर्षि, दक्ष, कश्यप आदि प्रजापति, वासुकि आदि नाग, इस प्रकार और भी कई जातियां देवों में होती हैं जिनमें से 2-3 हजार के नाम तो प्रत्यक्ष अंगुली पर गिनाए जा सकते हैं।

प्रमुख देवताओं के अलावा भी अन्य कई देवदूत हैं जिनके अलग-अलग कार्य हैं और जो मानव जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। इनमें से कई ऐसे देवता हैं जो आधे पशु और आधे मानव रूप में हैं। आधे सर्प और आधे मानव रूप में हैं। माना जाता है कि सभी देवी और देवता धरती पर अपनी शक्ति से कहीं भी आया-जाया करते थे। यह भी मान्यता है कि संभवत: मानवों ने इन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा है और इन्हें देखकर ही इनके बारे में लिखा है। अज एकपाद' और 'अहितर्बुध्न्य' दोनों आधे पशु और आधे मानवरूप हैं। मरुतों की माता की 'चितकबरी गाय' है। एक इन्द्र की 'वृषभ' (बैल) के समान था।

पौराणिक मत :-

निश्चित ही प्राकृतिक शक्तियों के कई प्रकार हो सकते हैं लेकिन हमें यह नहीं भुलना चाहिए की इन प्राकृतिक शक्तियों के नाम हमारे देवताओं के नाम पर ही रखे गए हैं। जैसे चंद्र नामक एक देव है और चंद्र नामक एक ग्रह भी है। इस ग्रह का नामकरण चंद्र नामक देव के नाम पर ही रखा गया है। इस तरह के देवों का उनके नाम के ग्रहों पर आधिपत्य रहा है।

इसी तरह ये रहे प्रमुख 33 देवता :-

12 आदित्य :- 1. अंशुमान (यह प्राण वायु का प्रतिनिधित्व करते है), 2. अर्यमन (यह प्रातः और रात्रि के चक्र को दर्शाते है), 3. इन्द्र (यह देवो के राजा है समस्त इन्द्रियों पर इन्ही का अधिकार है), 4. त्वष्टा (यह वनस्पति और औषधियों का प्रतिनिधत्व करते है), 5. धातु (यह प्रजापति के रूप है इन्हे सृष्टिकर्ता भी कहाँ जाता है), 6. पर्जन्य (यह मेघों का प्रतिनिधित्व करते है जो वर्षा के कारक है), 7. पूषा (यह अन्न का प्रतीक है तथा उसमे उपस्थित ऊर्जा, स्वाद और रस को दर्शाते है), 8. भग (यह शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति को दर्शाते है), 9. मित्र (यह सृष्टि के विकास के कर्म को दर्शाते है), 10. वरुण (यह जल का प्रतिनिधित्व करते है तथा भाग्य को भी दर्शाते है), 11. विवस्वान (यह तेज और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते है) और 12. विष्णु (यह ब्रह्माण्डीय कानून और उसके संचालन का प्रतिनिधत्व करते है)। 

8 वसु :- 1. आप (जल), 2. ध्रुव (ध्रुव तारा), 3. सोम (चन्द्रमा), 4. धर (पृथ्वी), 5. अनिल (वायु), 6. अनल (अग्नि), 7. प्रत्यूष (अंतरिक्ष) और 8. प्रभाष (अरुणोदय या सूर्योदय)। 

11 रुद्र :- 1. शम्भु, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व और 11. कपाली।

2 अश्विनी कुमार :- 1. नासत्य और 2. द्स्त्र। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। अश्वनीकुमार त्वष्टा की पुत्री और सूर्य देव की संतान है जिन्हे आयूर्वेद का आदि आचार्य माना जाता है इनके नाम इस प्रकार है।

इस प्रकार हिन्दू धर्म में वर्णित 33 कोटि देवताओं का योग इस प्रकार है –   

33 कोटि देवता = 8 (वसु) + 12 (आदित्य) + 11 (रूद्र) + 2 (अश्वनीकुमार) = 33

इसके अलावा ये भी हैं देवता :-

49 मरुतगण : मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र कहा गया है तो पुराणों में कश्यप और दिति का पुत्र माना गया है। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें 49 प्रमुख हैं। उनमें भी 7 सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं। वेदों में मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है।- (ऋ. 1.85.4)। पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। अस्त्र-शस्त्र से लैस मरुतों के पास विमान भी होते थे। ये फूलों और अंतरिक्ष में निवास करते हैं।

7 मरुतों के नाम निम्न हैं - 1. आवह, 2. प्रवह, 3. संवह, 4. उद्वह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह। यह वायु के नाम भी है। इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं - ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।

12 साध्यदेव : अनुमन्ता, प्राण, नर, वीर्य्य, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव और विभु ये 12 साध्य देव हैं, जो दक्षपुत्री और धर्म की पत्नी साध्या से उत्पन्न हुए हैं। इनके नाम कहीं कहीं इस तरह भी मिलते हैं :- मनस, अनुमन्ता, विष्णु, मनु, नारायण, तापस, निधि, निमि, हंस, धर्म, विभु और प्रभु।

64 अभास्वर : तमोलोक में 3 देवनिकाय हैं - अभास्वर, महाभास्वर और सत्यमहाभास्वर। ये देव भूत, इंद्रिय और अंत:करण को वश में रखने वाले होते हैं।

12 यामदेव : यदु ययाति देव तथा ऋतु, प्रजापति आदि यामदेव कहलाते हैं।

10 विश्वदेव : पुराणों में दस विश्‍वदेवों को उल्लेख मिलता है जिनका अंतरिक्ष में एक अलग ही लोक है।

220 महाराजिक :

30 तुषित : 30 देवताओं का एक ऐसा समूह है जिन्होंने अलग-अलग मन्वंतरों में जन्म लिया था। स्वारोचिष नामक द्वितीय मन्वंतर में देवतागण पर्वत और तुषित कहलाते थे। देवताओं का नरेश विपश्‍चित था और इस काल के सप्त ऋषि थे- उर्ज, स्तंभ, प्रज्ञ, दत्तोली, ऋषभ, निशाचर, अखरिवत, चैत्र, किम्पुरुष और दूसरे कई मनु के पुत्र थे।

पौराणिक संदर्भों के अनुसार चाक्षुष मन्वंतर में तुषित नामक 12 श्रेष्ठगणों ने 12 आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया। पुराणों में स्वारोचिष मन्वंतर में तुषिता से उत्पन्न तुषित देवगण के पूर्व व अपर मन्वंतरों में जन्मों का वृत्तांत मिलता है। स्वायम्भुव मन्वंतर में यज्ञपुरुष व दक्षिणा से उत्पन्न तोष, प्रतोष, संतोष, भद्र, शांति, इडस्पति, इध्म, कवि, विभु, स्वह्न, सुदेव व रोचन नामक 12 पुत्रों के तुषित नामक देव होने का उल्लेख मिलता है। बौद्ध धर्मग्रंथों में भी वसुबंधु बोधिसत्व तुषित के नाम का उल्लेख मिलता है। तुषित नामक एक स्वर्ग और एक ब्रह्मांड भी है।
 
अन्य देव - ब्रह्मा (प्रजापति), विष्णु (नारायण), शिव (रुद्र), गणाधिपति गणेश, कार्तिकेय, धर्मराज, चित्रगुप्त, अर्यमा, हनुमान, भैरव, वन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, यम, हिरण्यगर्भ, शनि, सोम, ऋभुः, ऋत, द्यौः, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, धेनु, इन्द्राग्नि, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला, जय, विजय, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य, अपांनपात, त्रिप, वामदेव, कुबेर, मातृक, मित्रावरुण, ईशान, चंद्रदेव, बुध, शनि आदि।

अन्य देवी - दुर्गा, सती-पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, भैरवी, यमी, पृथ्वी, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, दस महाविद्या, आदि।

निष्कर्ष : वेदों के कोटि शब्द को अधिकतर लोगों ने करोड़ समझा और यह मान लिया गया कि 33 करोड़ देवता होते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। यह भी सच नहीं है कि देवता 33 प्रकार के होते हैं। पदार्थ अलग होते हैं और देवी या देवता अलग होते हैं। यह सही है कि देवी  और देवता 33 करोड़ नहीं होते हैं लेकिन 33 भी नहीं। देवी और देवताओं की संख्या करोड़ों में तो नहीं लेकिन हजारों में जरूर है और सभी का कार्य नियुक्त है।

इसके अलावा ये भी जानें -

दो पक्ष :- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष

तीन ऋण :- देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण

चार युग :- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग

चार धाम :- द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम धाम

चार पीठ :- शारदा पीठ (द्वारिका) ज्योतिष पीठ (जोशीमठ बद्रिधाम) गोवर्धन पीठ (जगन्नाथपुरी) शृंगेरी पीठ

चार वेद :- ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद, सामवेद

चार आश्रम :- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास

चार अंत :- करण: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार

पंच गव्य :- गाय का घी, दूध, दही, गो मूत्र, गोबर

पंच तत्त्व :- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

छह दर्शन :- वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा, दक्षिण मिसांसा

सप्त ऋषि :- विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप

सप्त पुरी :- अयोध्या पुरी, मथुरा पुरी, माया पुरी (हरिद्वार), काशी, कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका और द्वारिकापुरी

आठ योग :- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि

10 दिशाएं :- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, अग्नि, आकाश एवं पाताल

12 मास :- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन

15 तिथियां :- प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या

समृतियां :- मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ।




गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

कार्तियानी अम्मा, केरल


96 साल की महिला ने परीक्षा में किया टॉप, आए 100 में से 98 नंबर

किसी भी चीज को करने, सीखने और समझने के लिए जुनून की जरूरत होती है और ऐसा ही कमाल का जुनून देखने को मिला केरल के अलाप्पुझा जिले के चेप्पड़ गांव के मुत्तोम निवासी कार्तियानी अम्मा के अंदर। जिन्होंने 96 साल की उम्र में साक्षरता परीक्षा दी। इस बुजुर्ग महिला ने ना सिर्फ ये परीक्षा दी बल्कि 100 में से 98 नंबर लाकर पहला स्थान भी हासिल किया। कार्त्यायनी अम्मा ने न केवल दक्षिणी राज्य के साक्षरता मिशन के तहत 96 साल की उम्र में सबसे उम्रदराज छात्रा होने के लिए प्रसिद्धि हासिल की थी, बल्कि चौथी कक्षा के समकक्ष परीक्षा 'अक्षरलक्षम' परीक्षा में उच्चतम अंक हासिल करने के लिए भी प्रसिद्धि हासिल की थी।

42 हजार उम्मीदवारों में से बनी थीं टॉपर

साक्षरता परीक्षा (लिटरेसी परीक्षा) की आयोजन 5 अगस्त 2018 को हुआ था जिसमें करीब 42933 लोगों ने हिस्सा लिया था। जिसमें नागरिकों की साक्षरता की जांच की जाती है। अम्मा उन्हीं लोगों में से सबसे उम्रदराज महिला थीं।

रातों रात मशहूर हुईं थी अम्मा

कार्तियानी अम्मा 'चेप्पाड राजकीय एलपी स्कूल' में परीक्षा में बैठी थीं। पढ़ने-लिखने को प्रेरित इस बुजुर्ग महिला ने 6 महीने पहले राज्य साक्षरता मिशन के एक कार्यक्रम में नामांकन कराया था। इस परीक्षा को उन्होंने पास कर लिया और उन्हें योग्यता मुताबिक चौथी कक्षा में पढ़ने के लिए भेजा गया। शुरू से ही उनकी पढ़ने और लिखने में बहुत रुचि थी। परीक्षा में भाग लेने के बाद से ही वह रातों रात सोशल मीडिया पर मशहूर हो गईं।

इस परीक्षा में 100 अंकों के सवाल पूछे गए थे, जिसमें लिखने, पढ़ने और गणित की समझ की जांच की गई थी। उन्होंने अपनी रीडिंग टेस्ट में 30 में से 30 अंक, मलयालम लेखन में 40 में से 40 अंक और गणित में 30 में से 28 अंक प्राप्त किए। बता दें रिजल्ट बुधवार को जारी हुआ था। वहीं इस परीक्षा में कई जेलों के कैदियों ने भी हिस्सा लिया था।

अपनी उपलब्धि पर टिप्पणी करते हुए, कार्थ्ययनी अम्मा ने मीडिया को बताया कि प्रश्नपत्र में कुछ ऐसे भाग शामिल नहीं थे जो उन्होंने परीक्षा के लिए पढ़े थे। उन्होंने कहा, "मैंने बिना किसी कारण के बहुत कुछ सीखा। मेरे लिए परीक्षाएँ बहुत आसान थीं।" 'अक्षरालक्षम' परीक्षा के लिए कार्थ्ययनी अम्मा के पास बैठे रामचंद्रन पिल्लई ने 100 में से 88 अंक प्राप्त किए।

अम्मा ने 100 में से 98 अंक लाकर उन सभी लोगों को चौंका दिया जो ये सोचते हैं कि पढ़ने- लिखने की एक उम्र तय है। उन्होंने  96 साल की उम्र में सभी को पीछे छोड़ दिया।

कुल 42,933 ने ये परीक्षा दी। जिसमें SC वर्ग के 8,215, ST वर्ग के 2,882 उम्मीदवार शामिल थे। जिनमें  37,166 उम्मीदवार महिलाएं हैं।

केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण (केएसएलएमए) की परियोजना 'अक्षरलक्षम', जिसका उद्देश्य केरल के वृद्ध और वंचित लोगों के बीच निरक्षरता को समाप्त करना है, ने इस वर्ष 99.08 प्रतिशत सफलता प्राप्त की है, क्योंकि 43,330 उम्मीदवारों में से 42,933 उम्मीदवार परीक्षा में सफल हुए हैं। 'अक्षरलक्षम' कार्यक्रम की शुरुआत केरल सरकार ने 26 जनवरी 2018 को की थी।

बता दें कि केरल सरकार ने 'अक्षरालक्षम साक्षरता मिशन' नाम का अभियान चलाया था, जिसका उद्देश्य केरल में 100 फीसदी साक्षरता करना है।

60 साल की बेटी से ली प्रेरणा

शहर से करीब एक घंटे की ड्राइव पर स्थित कार्थायिनी अम्मा ने जनवरी 2018 में अपनी स्कूली शिक्षा तब शुरू की, जब ग्राम पंचायत की साक्षरता मिशन ब्रिगेड सरकारी आवास योजना के तहत लक्षम वीडू कॉलोनी में उनके घर पहुंची। लेकिन साक्षरता मिशन के लोगों के उनके पास आने से पहले ही कार्थायिनी अम्मा को पढ़ाई में रुचि थी। कार्तियानी अम्मा कहती हैं कि उन्हें उनकी बेटी ने प्रेरित किया था। दो साल से भी ज़्यादा समय पहले, उनकी 60 वर्षीय बेटी अम्मिनी अम्मा ने साक्षरता मिशन का कोर्स साल 2016 में पास किया, जो औपचारिक शिक्षा प्रणाली में कक्षा 10 के बराबर है। अपनी बेटी को बैग पैक करते और स्कूल के लिए निकलते देखकर कार्थायिनी अम्मा को भी कलम और कागज़ उठाने की प्रेरणा मिली।

अम्मा तो जब साक्षरता मिशन जैसे प्रोग्राम के बारे में पता चला तो उन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया और मेहनत के साथ पढ़ना और लिखना सीखा। खास बाात ये है कि अम्मा के बारे में जानकर 90 साल की उम्र के करीब के 30 और बुजुर्गों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और पढ़ना शुरू किया।

अम्मा बताती हैं, "पैसों की तंगी के कारण मैं स्कूल नहीं जा पाई थी। मैंने अपने बच्चों की देखभाल की। जब मेरी बेटी ने दसवीं की परीक्षा पास की, मैंने भी वैसा ही करने का सोचा। मैं 100 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पास कर लूंगी।" कुछ महीने पहले ही अक्षरलक्षम मिशन के तहत एक और परीक्षा में अम्मा ने पूरे नंबर हासिल किए थे। कार्तियानी अम्मा ने साक्षरता परीक्षा में 100 में 98 अंक आने पर वह काफी खुश हैं। उन्होेंने कहा वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं।

कभी नहीं स्कूल, करती थीं घरों में काम

कार्तियानी अम्मा का मन शुरू से ही पढ़ाई- लिखाई में लगता था। आपको जानकर हैरानी होगी वह कभी भी अपने जीवन में स्कूल नहीं गईं। वहीं अपने संभालने के लिए स्वीपर और दूसरों के घरों में काम किया। वह अपने बच्चों और पोते-पोते के साथ रहती हैं। उनके पति की 1961 में मृत्यु हो गई। उनकी बेटी अम्मिनिअम्मा, जो खुद भी स्कूल छोड़ चुकी थीं, ने अपनी मां को कक्षाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

उन्हें मार्च 2020 में, उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार मिला। केरल ने इस वर्ष की शुरुआत में गणतंत्र दिवस परेड में "नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण की लोक परंपराओं" की एक झांकी प्रस्तुत की, जिसमें कार्त्यायनी शामिल थीं।

2019 में, कनाडा की एक संस्था 'कॉमनवेल्थ लर्निंग' ने कार्तियानी अम्मा को अपना गुडविल एंबेसडर नियुक्त किया। जिसमें लगभग 53 देश शामिल हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत में उन्होंने 10वीं कक्षा पूरी करने की इच्छा व्यक्त की थी, साथ ही उन्होंने आगे पढ़ाई करने में भी रुचि दिखाई थी - विशेष रूप से कंप्यूटर की मूल बातें सीखने में।

शेफ-लेखक विकास खन्ना ने कार्त्यायनी अम्मा की प्रेरणादायक कहानी पर एक समीक्षकों द्वारा प्रशंसित वृत्तचित्र और उनकी उल्लेखनीय जीवन यात्रा पर एक सचित्र बच्चों की किताब का निर्देशन किया।

डॉक्यूमेंट्री से लिया गया शीर्षक ' बेयरफुट एम्प्रेस' ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशित किया गया है।

गुरुवार 01 नवंबर केरल के मुख्यमंत्री सेमिनार हॉल में होने वाले सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री पिनरई विजयन 96 वर्षीय, देश के लिए मिसाल बन चुकी वृद्ध करथियानी अम्मा को सम्मानित किया। अम्मा ने कहा- ‘मुझे पता था जितना ज्यादा में पढ़ाई करूंगी उससे ज्यादा मेरे नंबर आएंगे।’ उन्होंने कहा- मैं छोटे बच्चों को पढ़ाई करती देखती थी। मैं भी चाहती थी कि पढ़ाई करूं। जब बच्चों ने पूछा तो मैंने कहा क्यों नहीं, मैं भी पढ़ूंगी। उन्होंने कहा- 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद मैं कंप्यूटर सीखना चाहती हूं। खाली समय में मैं कंप्यूटर चलाउंगी और टाइपिंग करूंगी। जब मुझे पढ़ाई करना चाहिए था तब मैं नहीं कर पाई। लेकिन खुशी है कि अब पढ़ाई पूरी कर रही हूं।’ कार्तियानी अम्मा 96 की उम्र में भी स्वस्थ हैं, कुछ भी हो लेकिन दिन में दो बार चाय पीना नहीं भूलती हैं।

96 साल की उम्र में साक्षरता परीक्षा में टॉप करने वाली कार्तियानी अम्मा को केरल के एजुकेशन मिनिस्टर सी. रवींद्रनाथ ने लैपटॉप गिफ्ट किया है। उन्होंने अलपुझा जिले के चेप्पाड गांव में अम्मा के घर जाकर एक नया लैपटॉप दिया। जिसे पाने की खुशी अम्मा के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। बता दें, उन्हें 'Dell' कंपनी का लैपटॉप गिफ्ट किया गया है जिसकी कीमत 25, 000 हजार रुपये है। सरप्राइज गिफ्ट से खुश अम्मा ने शिक्षा मंत्री के सामने ही अंग्रेजी में अपना नाम टाइप कर मंत्री को आश्चर्यचकित कर दिया। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक शिक्षामंत्री उस क्षेत्र के आधिकारिक दौरे पर थे। किसी ने उन्हें बताया कि अम्मा कंप्यूटर सीखना चाहती हैं। इतना सुनते ही मंत्री लैपटॉप की शॉप पर गए और 25 हजार का लैपटॉप खरीद कर अम्मा को गिफ्ट कर दिया।

केरल राज्य साक्षरता मिशन के तहत सबसे बुजुर्ग शिक्षार्थी बनकर 2018 में सुर्खियाँ बटोरने वाली कार्तियानी अम्मा का मंगलवार, 10 अक्टूबर को तटीय जिले अलप्पुझा में उनके निवास पर निधन हो गया। वह 101 वर्ष की थीं। बताया जाता है कि स्ट्रोक के कारण वह कुछ समय तक बिस्तर पर रहीं।

गणतंत्र दिवस 2018 पर केरल राज्य साक्षरता मिशन अथॉरिटी ने 'अक्षरालाक्षम' परियोजना शुरू की थी जिसका उद्देश्य केरल में 100 फीसदी साक्षरता करना है। इसके जरिए आदिवासियों, मछुआरों और गरीब लोगों के बीच साक्षरता का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। 

2018 में गणतंत्र दिवस पर केरल सरकार द्वारा शुरू की गई 'अक्षरलक्षम' साक्षरता परियोजना राज्य भर में 20,86 मान्यता प्राप्त शिक्षण केंद्रों के माध्यम से संचालित होती है। केरल के 21,908 वार्डों में किए गए परीक्षण सर्वेक्षण के बाद शिक्षण केंद्रों की स्थापना की गई।

केएसएलएमए की अध्यक्ष पीएस श्रीकला ने कहा, "हम उन लोगों को बेहतर शिक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए तत्पर हैं, जिन्हें विभिन्न कारणों से अपनी स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ी।" "वित्तीय और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, आस-पास के क्षेत्रों में स्कूलों की कमी, माता-पिता से समर्थन की कमी और स्कूल में बुरे अनुभवों ने उन्हें अपनी शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर किया होगा। यह 'अक्षरलक्षम' परियोजना का केवल पहला चरण है। हमारा लक्ष्य केरल में 4 वर्षों के भीतर सभी 18.5 लाख पहचाने गए निरक्षरों को साक्षर बनाना है," उन्होंने कहा।



बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

कुट्टियाम्मा (Kuttiyamma), केरल


केरल में 104 साल की बुर्जुग महिला ने किया कमाल, राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 89 अंक हासिल किए

कहते हैं पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती और भारत के सबसे दक्षिणी राज्य केरल की एक बूढ़ी दादी अम्मा ने ये साबित कर दिखा दिया है। केरल (Kerala) के कोट्टयम (Kottayam) में रहने वाली एक 104 वर्षीय सबसे उम्रदराज महिला ने राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा (State Education Exam) में 89 अंक हासिल किए हैं। जिस उम्र में इंसान को दिखाई भी देना बंद हो जाता है , चलने फिरने में परेशानी होती है उस उम्र में केरल की इस दादी अम्मा ने साक्षरता परीक्षा पास कर गजब का रिकॉर्ड बनाया है। बुजुर्ग महिला का नाम कुट्टियाम्मा (Kuttiyamma) है। उनकी शिक्षिका रेहना ने बताया कि कुट्टियाम्मा को पढ़ाई का शौक है। वह सीखती और लिखती हैं, उन्होंने केरल राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 100 में से 89 अंक प्राप्त किए। इस परीक्षा में उन्होंने काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया है। कुट्टियाम्मा ने कारनामा करके लोगों के सामनें एक मिशाल पेश की है। साक्षरता टेस्ट के बाद अब उनका लक्ष्य इक्विवेलेंस टेस्ट पास करना है। इसके लिए वो अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही हैं। इसके लिए वो रोजाना 2 घंटे पेपर पढ़ती हैं।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि, उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है। उन्होंने अपनी साक्षरता परीक्षा की तैयारी करते समय पहली बार पेन और पेपर उठाया था। पहले वह सिर्फ पढ़ सकती थीं, लेकिन साक्षरता प्रेरक रेहना की मदद से, उसने लिखना सीखा और अपने घर पर प्रत्येक सुबह और शाम आयोजित होने वाली कक्षाओं में कर्तव्यनिष्ठा से भाग लिया। कुट्टियाम्मा को अक्षरों में से रूबरू कराने वाली रिहाना जान बताती है कि साक्षरता टेस्ट के बाद इक्विवेलेंसी टेस्ट पास करके वो चौथी कक्षा की पढ़ाई शुरू करेंगी।

104 साल की महिला को परीक्षा में 89 अंक मिले

कोट्टायम की रहने वाली बुजुर्ग महिला कुट्टियम्मा ने जब केरल राज्य साक्षरता मिशन के टेस्ट में 89 प्रतिशत अंक हासिल किए तो हर जगह से उनकी सराहना होने लगी। केरल के शिक्षा मंत्री वासुदेवन शिवनकुट्टी के साथ-साथ आम लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनकी तारीफ कर रहे हैं। केरल के शिक्षा मंत्री वायुदेवन शिवनकुट्टी (Vasudevan Sivankutty) ने एक खुशमिजाज कुट्टियम्मा की तस्वीर ट्वीट की और उन्हें 100 में से 89 अंक प्राप्त करने के लिए शुभकामनाएं दीं। ये साक्षरता टेस्ट कोट्टायम जिले के अयारकुन्नम पंचायत द्वारा आयोजित किया गया था। सुबह और शाम की शिफ्ट में कुट्टियम्‍मा के घर पर ही कक्षाएं लगाई गईं।

जैसे ही परीक्षा (केरल स्‍टेट लिटरेसी मिशन टेस्ट) शुरू हुई, कुट्टियम्मा, जो कम सुन पाती हैं, ने निरीक्षकों को याद दिलाया - "जो भी बोलो, जोर से बोलो।"

उनसे पहला सवाल यह था कि ये पंक्तियाँ किसने कही थीं - 'ओर्कुका, जीविकालय सर्व जीविकालुम् भूमियुदे अवकाशकाल'? और कुट्टियाम्मा ने अपना स्कोर कार्ड सही उत्तर वैकोम मुहम्मद बशीर के साथ खोला। जब उनसे उनकी पाठ्य पुस्तक में किसी कविता की पहली चार पंक्तियां गाने के लिए कहा गया, तो कुट्टियम्मा ने 'मावेली नाडु वान्निदुम कालम...' का पूरा गीत गाया।

परीक्षा के बाद उससे पूछा गया कि उसे कितने अंक मिलेंगे। कुट्टियाम्मा ने बिना दांत वाली मुस्कान बिखेरते हुए कहा - "मैंने वह सब लिख दिया है जो मुझे आता है। अब आप अंक दीजिए।" उनके त्वरित उत्तर से कुन्नुमपुरम आंगनवाड़ी में हंसी की लहर दौड़ गई।

युवाओं का हौसला बढ़ाते हुए कुट्टियम्मा कहती है कि वह अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी किए बगैर दुनिया से विदा नहीं लेंगी।

कुट्टियम्‍मा की 16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। उनके पति का नाम टी के कोन्ति था। वह आयुर्वेद‍िक दवा बेचने वाली एक दुकान में काम करते थे। 2002 में कोन्ति का निधन हो गया था। कुट्टियम्‍मा के पांच बच्‍चे हुए। जानकी, गोपालन, राजप्‍पन, गोपी और रवींद्रन। गोपी आज दुनिया में नहीं हैं। कुट्टियम्‍मा अभी अपने बेटे गोपालन के साथ रहती हैं। खाना पकाने और घर के कामों में दशकों बीत गए, और कुट्टियामा कहती हैं कि वह संतुष्ट थीं लेकिन हमेशा महसूस करती थीं कि कुछ कमी रह गई है।

एक साल पहले ही कुट्टियाम्मा को उनकी पड़ोसी रेहाना जॉन, जो 34 वर्षीय साक्षरता प्रशिक्षक हैं, के प्रोत्साहन से पढ़ना सीखने के लिए राजी किया गया था। जॉन ने कुट्टियाम्मा की अपने पोते-पोतियों की पढ़ाई के प्रति जिज्ञासा को देखा था और उन्हें कुछ किताबें देने की पेशकश की थी। इससे पहले, जॉन की सबसे बुजुर्ग छात्रा 85 वर्ष की थी।

कुछ सौम्य प्रोत्साहन के बाद, वे हर शाम मिलने लगे और साथ मिलकर साक्षरता पुस्तकों पर गहन अध्ययन करने लगे। जॉन ने कहा, "बहुत कम दृष्टि और सुनने की समस्याओं को छोड़कर, वह एक आदर्श और कभी-कभी शरारती छात्रा थी, जिसने मेरे शिक्षण को सार्थक बना दिया।" "मेरे घर पहुँचने से पहले वह हमेशा अपनी पाठ्यपुस्तक, नोटबुक और पेन तैयार रखती है। इसके अलावा, वह मुझे देने के लिए घर पर पकाए गए व्यंजनों में से कुछ अतिरिक्त रखती है।"

कुट्टियाम्मा ने सोमवार को समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, "शिक्षक ने मुझे मलयालम में पत्र पढ़ना और लिखना जैसी हर चीज सिखाई।" उसकी शिक्षिका फेहरा जॉन ने कहा, "वह अब पत्र लिख सकती है और बहुत खुश है।" कुट्टियम्मा को अनेक प्रार्थना गीत गाने में आनंद आता है तथा वह प्रतिदिन समाचार पत्र भी पढ़ती हैं।

104 साल की उम्र में भी बिल्कुल स्वस्थ हैं। कुट्टियम्मा बताती हैं कि अपना काम खुद से करने और आयुर्वेद के चलते वह बिल्कुल फिट हैं। वह बताती है कि उनके जमाने में लड़कियों के पढ़ाई पर जोर नहीं दिया जाता था बल्कि लड़के भी चौथी कक्षा से ज्यादा नहीं पढ़ते थे। उनके पिता एक भूमिहीन किसान थे उस समय पढ़ाई लिखाई पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता था।

केरल के शिक्षा मंत्री ने दी बधाई

केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने शुक्रवार, 12 नवंबर को सोशल मीडिया पर ट्वीट किया, "कोट्टायम की 104 वर्षीय कुट्टियाम्मा ने केरल राज्य साक्षरता मिशन की परीक्षा में 89/100 अंक हासिल किए हैं। ज्ञान की दुनिया में प्रवेश करने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है। अत्यंत सम्मान और प्यार के साथ, मैं कुट्टियम्मा समेत सभी नए सीखने वालों को उनके सुखद भविष्य की कामना करता हूं।''

खबर वायरल होने के बाद कुट्टियम्मा एक तरह से स्थानीय स्टार बन गई हैं और सोशल मीडिया पर भी उन पर प्यार बरस रहा है। कुट्टियम्मा की इस उपलब्धि से लोग प्रेरित और भावुक हो गए। एक यूजर ने ट्वीट किया, "मैं पूरे सम्मान के साथ कुट्टियम्मा को उनके समर्पण के लिए सलाम करता हूं। यह निश्चित रूप से दूसरों को प्रेरित करेगा।" एक अन्य ने तो यहां तक ​​कहा, "मुझे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करने के लिए धन्यवाद"। एक अन्य यूजर ने लिखा, " भगवान उसका भला करे, अगर आपके पास कुछ करने की इच्छाशक्ति है तो उम्र मायने नहीं रखती।" एक उपयोगकर्ता ने टिप्पणी की, "यह देखकर बहुत खुशी हुई, इसे आयोजित करने वाले समर्थकों को बधाई।"

इससे पहले भी कई वर्षों में बुजुर्ग महिलाएं इन परीक्षाओं में असाधारण रूप से सफल रही हैं। केरल की सौ वर्षीय भागीरथी अम्मा और 96 वर्षीय कार्तियिनी अम्मा को महिला सशक्तिकरण में उनके असाधारण योगदान के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2019 के लिए नारी शक्ति पुरस्कार के लिए संयुक्त रूप से चुना गया था। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कुट्टियाम्मा की तरह, उन्होंने भी केरल साक्षरता मिशन परीक्षा में असाधारण रूप से अच्छा स्कोर किया था। उनसे पहले, अलप्पुझा की कार्तियानी अम्मा ने अक्टूबर 2018 में केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण के एक प्रमुख कार्यक्रम “अक्षरालक्षम” में 100 में से 98 अंक हासिल किए थे।

केरल राज्य साक्षरता मिशन का उद्देश्य क्या है?

1998 में स्थापित केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण (Kerala State Literacy Mission Authority) (केएसएलएमए) राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित है और इसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए साक्षरता, सतत शिक्षा और आजीवन सीखने को बढ़ावा देना है। यह एक स्वायत्त संस्था है जिसे राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित किया जाता है। इस संस्था को केंद्र सरकार के राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तहत शुरू किया गया था। वर्तमान में यह चौथी, सातवीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए समकक्ष शिक्षा कार्यक्रम चलाता है।

साक्षरता कार्यक्रम के मुख्य लाभार्थी निरक्षर, नव-साक्षर, स्कूल छोड़ चुके लोग तथा आजीवन शिक्षा में रुचि रखने वाले व्यक्ति हैं।

भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण द्वारा 'घरेलू सामाजिक उपभोग: भारत में शिक्षा' पर प्रकाशित की गयी रिपोर्ट के अनुसार केरल में 96.2% साक्षरता दर के इस साथ सूची में सबसे ऊपर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लगभग 96.11% पुरुष और 92.07% महिलाएं साक्षर थीं।



रविवार, 29 सितंबर 2024

शिवलिंग, आयरलैंड


आयरलैंड के कई सौ साल पुराने शिवलिंग का रहस्य क्या है

क्या आप दुनिया के सबसे रहस्यमय शिव लिंग (Shiv Linga) के बारे में जानते हैं? ये आयरलैंड (Ireland) में है। वहां की एक पहाड़ी इलाके में इसे गोलघेरे के बीच लगाया गया है। एक लंबे शिव लिंग सरीखा है। कहा जाता है कि इसे आयरलैंड में खास जादुई ताकत रखने वालों ने सैकड़ों साल पहले स्थापित किया था। इसे कई बार नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की गई लेकिन इसका कुछ नहीं बिगड़ा।

आयरलैंड की काउंटी मीथ के तारा (स्टार) की पहाड़ी पर एन फ़ोराध (राजा की सीट) के ऊपर स्थित है। स्टार, जिसका अर्थ संस्कृत में ‘तारा’ है, भगवान शिव की पत्नी का दूसरा नाम है। इसी इलाके में पत्थर के चौड़े ईंटों का घेरा बनाकर उसे स्थापित किया गया था। कब स्थापित किया गया था, इसके बारे में लोगों को सही सही अंदाज नहीं है। वहां के लोग इसे रहस्यमय पत्थर के रूप में जानते हैं। इसे लिआ फेइल (Lia Fail), जिसे (भाग्य का पत्थर) (Stone of Destiny) कहा जाता है। लोग इसकी पूजा करते हैं।

वैदिक परंपरा के अभ्यासकर्ताओं के लिए लिया फेल, शिव लिंगम (Shiva Lingam) से बहुत मेल खाता है। यह शिवलिंग 5500 साल पुराना है। उस समय कोई अन्य धर्म अस्तित्व में भी नहीं था।

1632 से 1636 ईसवीं के बीच लिखा गया फ्रांसीसी भिक्षुओं के एक प्राचीन दस्तावेज - द माइनर्स ऑफ द फोर मास्टर्स के अनुसार, कुछ खास जादुई ताकत रखने वाले एक ग्रुप (चार अलौकिक लोगों) के नेता तुथा डि देनन (Tuatha Dé Danann) ने इसे स्थापित किया था। वे पूर्व-ईसाई गेलिक आयरलैंड के मुख्य देवता थे। लिया फ़ेल, तुआथा डे दानन द्वारा आयरलैंड में लाई गई चार रहस्यमयी वस्तुओं में से एक थी। कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है आयरलैंड में कांस्य बनाना इसी ग्रुप के लोगों ने किया था।

माना जाता है कि Tuatha Dé Danann जो लोग इस पत्थर को आइरलैंड में लेकर आये थे, वह एक जंग हार गये थे। जिस कारण इन्हें आइयरलैंड़ में ही रूकना पड़ा था। किंवदंती के अनुसार, उन्हें आयरलैंड में केवल 'एस सिधे' - परी टीलों के लोगों के रूप में जमीन के नीचे रहने की अनुमति थी।

यह बहुत खास पत्थर था

तुथा डि देनन का मतलब होता है देवी दानू के बच्चे, उन्होंने 1897 बीसी से 1700 बीसी तक आयरलैंड पर शासन किया था। ईसाई भिक्षुओं ने पत्थर को प्रजनन क्षमता की प्रतीक (उर्वरता का प्रतीक) मूर्ति के रूप में देखा। यह इतना महत्वपूर्ण पत्थर था कि इसका उपयोग 500 ईस्वी तक सभी आयरिश राजाओं के राज्यभिषेक के अवसर पर किया गया।

इसकी ऊंचाई तीन फीट तीन इंच है। इस पत्थर को लेकर मान्यताएं है कि जब आयरलैंड के राजा ने इस पर पैर रखा था, तो खुशी से यह पत्थर दहाड़ने लगा था।

यूरोप में देवी दानू थीं और वैदिक परंपरा में भी

यूरोपीय परंपरा में देवी दानू को नदीयों की देवी कहा जाता है। हम उनके नाम से कई नदियों में खोज सकते हैं, जैसे कि देन्यूब, दोन, डनीपर और डिनिएस्टर यह सभी युरोप कि नदियाँ हैं। कुछ आयरिश ग्रंथों में इस देवी के पिता को दागदा (Dagda) के नाम से जाना जाता है, जो आयरलैंड में पिता का प्रतीक माने जाते हैं, इन्हें वहां के लोग एक अच्छा देवता भी मानते हैं।

वैदिक परंपरा में दानू देवी का जिक्र मिलता है, जो दक्ष की बेटी और कश्यप मुनि की पत्नी थीं, जो नदियों की देवी थीं। संस्कृत में दानू शब्द का अर्थ है 'बहने वाला पानी'। दक्ष की दो बेटियां थीं, उनकी दूसरी बेटी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। वैदिक परंपरा को मानने वालों के लिए लिआ फैल नाम शिव लिंग से बहुत मेल खाता है।

कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई

हाल के वर्षों में आयरलैंड के शिवलिंग को कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। जून 2012 में एक व्यक्ति ने पत्थर पर 11 बार आक्रमण किया।

फिर, मई 2014 में किसी ने सतह पर लाल और हरा रंग डालकर खराब करने की कोशिश की। यह बहुत अमानवीय कृत्य था।

पर दुखद स्थिति यह है कि हाल के ही कुछ वर्षों में इस पवित्र पत्थर को अपवित्रता के अधीन कर दिया गया है।  यहां लोग काला जादू और तांत्रिक क्रियाएं करने आते रहते हैं। हैरानी में डालने वाला तथ्य तो यह है कि इस पवित्र पत्थर जो कि हजारों वर्ष पुराना है उसकी देखभाल वहां पर कोई नहीं करता है।

दुनियाभर में शिव की पूजा का प्रचलन था, इस बात के हजारों सबूत बिखरे पड़े हैं। हाल ही में इस्लामिक स्टेट द्वारा नष्ट कर दिए गए प्राचीन शहर पलमायरा, नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा के प्रचलन के अवशेष मिलते हैं।

भारत के बाहर शिवलिंग कहां कहां

- ग्लासगो, स्काटलैंड में सोने के शिवलिंग है।

- तुर्किस्तान के शहर में बारह सौ फुट ऊंचा शिवलिंग है।

- हेड्रोपोलिस शहर में तीन सौ फुट ऊंचा शिवलिंग है।

- दक्षिण अमेरिका के ब्राजील देश में अनेक शिवलिंग हैं।

- कारिथ, यूरोप में पार्वती का मंदिर है।

- मेक्सिको में अनेक शिवलिंग हैं।

- कम्बोडिया में प्राचीन शिवलिंग है।

- जावा और सुमात्रा प्रदेशों में भी कई अनेकों शिवलिंग हैं।

- इंडोनेशिया में अनेक भव्य देवालय एवं प्राचीन शिलालेश हैं। इन शिलालेखों में शिव-विषयक लेख ही अधिक हैं। जिनके आरम्भ में लिखा रहता है - ॐ नम: शिवाय।

- इजिप्ट का सुप्रसिद्ध स्थल और आयरलैंड का धर्मस्थल शंकर का स्मारक लिंग ही है।

- नेपाल, पाकिस्तान और भूटान आदि कई देशों में ईश्वर शिवलिंग के प्रमाण मिलते हैं।

- चीन में नीलसरस्वती का मंदिर है।

शिवलिंग :-

शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठों ओर एक समान सतह बनी होती है। अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है। इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है।

ये तीन भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं। शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए एक मार्ग से निकल जाता है। शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) और एक बिंदू होता है, ये रेखाएं शिवलिंग पर समान रूप से अंकित होती हैं।

सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है। प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है।

शिवलिंग आखिर कितने पुराने

पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं। इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं।

सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं। इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है।

ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबीलोनिया, 2000-250 ईसापूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं थीं।

प्रमुख रूप से शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं - पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग।

पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं

1. देव लिंग :- जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं।

2. असुर लिंग :- असुरों द्वारा जिसकी पूजा की जाए, वह असुर लिंग । रावण ने एक शिवलिंग स्थापित किया था, जो असुर लिंग था।

3. अर्श लिंग :- प्राचीनकाल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित इस तरह के लिंग की पूजा की जाती थी।

4. पुराण लिंग :- पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है।

5. मनुष्य लिंग :- प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है।

6. स्वयंभू लिंग :- भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं। इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। भारत में स्वयंभू शिवलिंग कई जगहों पर हैं।